शबे-बारात क्या है ? शबे-बारात की हकीकत

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इस आर्टिकल में हम बात कर कर रहे हैं शबे-बारात के बारे में शबे-बारात क्या है, शबे-बारात कब मनाया जाता हैं और शबे-बारात क्यों मनाया जाता है, शबे-बारात की हकीकत क्या है? शबे-बारात का वाकिया क्या हैं, शबे-बारात में क्या पढ़ना चाहिए, शबे-बारात की नमाज कैसे पढ़ें ? शबे-बारात का रोजा रखना कैसा है? शबे बरात में हलवा क्यों बनाया जाता है? शबे-कदर या लैलातुल कादर की रात क्या है? शबे-बारात की रात को कब्रिस्तान में जाना कैसा है?

शबे-बारात की रात को आतिशबाजी करना कैसा है? सलातुल तस्बीह की नमाज पढ़ना कैसा है ? शबे-बारात मनाना चाहिए या नहीं आज इन सभी सवालो का ज़बाब आपको इस आर्टिकल में मिलेंगे। आखिर शबे-बारात की रात इतना अहमीयत क्यू हैं? आये जानते हैं कुरान और हदीस की रोशनी में शबे-बारात के बारे में क्या कहा गया है। तो इस आर्टिकल को आखिर तक पढ़िए और समझिए शबे-बारात की हकीकत क्या है?

शबे-बारात की वीडियो देखें हिंदी में

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शबे-बारात कब मनाया जाता हैं

शबे-बारात 2022 में 18 मार्च को है 18 मार्च को इस्लामिक तारीख के हिसाब से 14वीं शब है; और शाम को मगरिब के बाद 15वीं शब शुरू होती है, और उस रात शबे बरात मनाया जाता है। पन्द्रह शअबान को पुरे हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में बडे ज़ोर शोर से शबे-बारात मनायी जाती है । ये त्योहार कुछ मुसलमान बहुत धुम-धाम से मनाते है।

शबे-बारात क्या है

शबे-बारात से जुड़ी हुई काफी बातें लोगों को बड़ा कंफ्यूजन पैदा कर रही है। जैसे कि कुछ लोग शबे-बारात नहीं मनाना चाहिए ये एक बिदअत है, और कुछ लोग कहते हैं शबे-बारात खूब अच्छे से मनाओ इनके बीच आम मुसलमान वह क्या करें? शबे-बारात मनाएं या ना मनाएं ? तो इसी सिलसिले में मैं आपके सामने कुछ बातें रखूंगा जो कि मैंने अभी तक रिसर्च करके पाया है? वह बातें सुनने के बाद आप खुद फैसला करें शबे-बारात मनाना चाहिए या नहीं तो चलिए सबसे पहले जानते हैं शबे-बारात का मतलब क्या होता है ?

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शबे-बरात का मतलब क्या होता है

शबे-बारात का मतलब होता हैं शबे माने रात होती है और बारात मतलब बरि होना बात करें शबे-बरात की हिस्ट्री कि इसकी हिस्ट्री हमें क्लियर नहीं मिलती है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शबे-बारात कभी नहीं मनाई उसके बाद बात करें सहाबा रजिल्लाह अनहु जिसमें हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु, हजरत उमर रजिल्लाह अन्हु व हजरत उस्मान रजिल्लाह अन्हु, हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु उन्होंने शबे- बारात मानाई हो ऐसा हमें कोई सबूत नहीं मिलता तो इससे हम ये बात समझ सकते हैं कि इसमें कुछ न कुछ झोल है।

शबे-बारात क्यों मनाई जाती है

शबे-बारात मनाने वाले यह बोलते हैं कि इस रात में अल्लाह ताला गुनाहों को माफ करते हैं। इस रात में लोगों का साल भर का हिसाब-किताब होता है वह लिखा जाता है। इसलिए लोग इस रात में इबादत करते हैं। और जागते हैं और इस रात में जागने वालों की मदद भी करते हैं। चलिए आगे बढ़ते हैं और बात करते हैं शबे-बारात का वाकिया

शबे-बारात का वाकिया

शबे-बारात के वाकिया के बारे में लोग एक बात यह बोलते हैं कि एक बार नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हजरत आयशा रदियल्लाहो तअला अन्हो के हुजरे से तशरीफ़ ले गया और जन्नतुल बकी जो मदीना का कब्रिस्तान था वहां गए और वहां नबी करीम सल्लल्लाहु वसल्लम ने अहले कब्रिस्तान के लिए दुआ ए मगफिरत कि हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की आंख खुल गई और उन्होंने फिर जा करके देखा पीछे से तो उनको यह पता चला कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दुआ ए मगफिरत कर रहे हैं।

इस वाकिया के सिलसिले में जो हदीस आती है हदीस के माहिर उलेमा है वह बताते हैं कि यह हदीस जो रिवायत हिसाब से बहुत ही मजबूत नहीं है इसी सिलसिले में एक और रिवायत है। जिसे इमाम तिर्मिज़ी रह० ने रिवायत किया है जिसमें कहा गया है कि अल्लाह तआला बनू कल्ब की बकरियों से ज़्यादा अपने गुनाहगार बन्दों को माफ़ करता है यह रिवायत सख्त ज़ईफ़ और मुनकता यानी कि यह रिवायत भी मजबूत नहीं है।

बल्कि बहुत ही कमजोर है इसकी जो सही बात है वह यह है कि अल्लाह तआला पन्द्र्ह शअबान को ही नहीं बल्कि रोज़ाना दो तिहाई रात गुज़रने के बाद आसमाने दुनिया पर नुजूल (आता है) फ़रमाता है और कहता है :-  है कोई मुझसे दुआ करने वाला कि मैं उसकी दुआ कुबूल करुं, कोई मुझसे मांगने वाला है कि मैं उसे दूं, कोई मुझसे बख्शिश तलब करने वाला है कि मैं उसे बख्श दूं। (बुखारी पेज 153 जिल्द 1) तो लोग सवाल पूछते हैं कि शबे-बारात में क्या पढ़े बात साबित हो गई शबे-बारात में कुछ भी खास नहीं है।

शबे-बारात मनाना ही जा रहे हैं तो आप सिर्फ पांच वक्त की नमाज है वह पढ़े रात में ईशा की नमाज पढ़े कर सो जाएं और जब तहज्जूद का टाइम होता है जिस टाइम कि अल्लाह ताला डेली ऐलान करते हैं दुआ कबूल होने के लिए तो आप उस टाइम उठकर के नमाज पढ़ कर दुआ मांगे चलिए आगे बढ़ते हैं। अब बात करते हैं कि शबे-बरात की नमाज कैसे पढ़ें।

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शबे-बारात की नमाज कैसे पढ़ें

शबे-बारात कि जब रात साबित नहीं है तो इसकी नमाज भी कोई हैसियत नहीं रखती लोग इस बात में बहुत अजीब-अजीब तरीके की नमाज पढ़ते हैं कुछ लोग सलातुल उमरी 100 रकात की नमाज पढ़ते हैं। सलाते गौसिया शेख अब्दुल कादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह नाम की नमाज अदा करते हैं इसका इस बात से कोई भी लेना-देना नहीं अगर आपको कजा उमरी पढ़नी है।

तो आप अकेले में अपनी जो भी छुट्टी हुई नमाज है उस को पढ़े कोई भी गाढ़ी हुई चीज जिसको की नबी करीम सल्लल्लाहो वसल्लम ने नहीं बताया है उसको बिदअत कहते हैं और बिदअत जो होती है वह खुली गुमराही होती है। उसका दीन से कोई लेना-देना नहीं होता जो लोग बिदअत करते हैं।

वो तौबा भी नहीं करते और उनको नसीब भी नहीं होता तौबा की उसकी वजह यही है कि वह इसको गलत नहीं समझते बल्कि शबाब समझ के करते हैं। तो वह किस बात की तौबा करेंगे तो इसलिए वह बिना तौबा किये इस दुनिया से रुखसत होते हैं शबे बारात लोग ईदुल अम्वात यानि कि मुर्दों की ईद कहकर मनाते हैं और यह भी कहते हैं कि मुर्दों की रूहु है जमीन पर इधर-उधर फिरती है।

जब हम इसमें पन्द्र्ह शाबान को दुआ करेंगे तब जा करके अपनी सही जगह पर जाएगी तो यह बिल्कुल अपनी तरफ से मनघड़ंत बातें हैं इसकी कोई भी हकीकत नहीं है।

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शबे-बारात का रोजा रखना कैसा है

शबे-बारात के अगले दिन लोग रोजा रखते हैं इसकी क्या हकीकत है तो देखिए शबे-बारात के अगले दिन रोजा रखने की भी कोई हकीकत नहीं है। पन्द्र्ह शअबान के रोज़े से अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने मना फ़रमाया है। हदीस शरीफ़ में है  “जब निस्फ़ (आधा) शअबान हो तो रोज़े न रखों।” (अबूदाऊद, तिर्मिज़ी) निस्फ़ शअबान १५ तारीख से शुरु होगा लिहाज़ा पन्द्रह शअबान का रोज़ा नहीं रखना चाहिये।

लेकिन कुछ लोगों ने आधा शअबान से ही रोजा रखना एक तरीके से जरूरी कर दिया है कि इस रात को मनाने के लिए रोजा रखो और बहुत से लोग रखते भी हैं।

जो लोग भी शबे-बारात के अगले दिन रोजा रखते हैं उनको चाहिए कि वह शबे-बारात के अगले दिन ना रोजा रखें। उससे पहले ही अपने जितने भी नफली रोजा रखना है रखें क्यों इस फरमान की नाफरमानी करने के लिए ठीक आधे पर से ही रोजा रखे तो ऐसा ना करें बल्कि इससे पहले जितना नफली रोजा रखना है रख ले।

शबे बरात में हलवा क्यों बनाया जाता है?

अब बात करते हैं हलवा के बारे में शबे बरात में हलवा का बहुत बड़ा रिवाज हो गया है कि इस दिन लोग हलवा बनाते हैं बहुत से लोगों को तो पता ही नहीं कि हलवा क्यों मनाते हैं वह बस शबे बरात है इसलिए हलवा बनाकर खाते हैं।

दूसरे लोग जोकि थोड़ा-बहुत जानकारी रखते हैं उनका कहना ये हैं कि जंगे उहुद में अल्लाह के नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का दांत टूट गया था तो आपने हलवा खाया था इसलिये आज के दिन हलवा खाना सुन्नत है। इसीलिए हमने आज के दिन हलवा खाएंगे और एक सुन्नत पर अमल करेंगे।

चलिए बहुत अच्छी बात है लेकिन जरा गौर कीजिये  अल्लाह के नबी सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लल्लम का टूटना जिहाद में, और लोगों का हलवा खाना अपने घरों में, जिहाद और जंग की सुन्नत रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम अदा करें और हलवा खाने की सुन्नत हम अदा करें?

आप खुद ही फैसला कीजिए कि यह कहां से यह बात ठीक लगती है जब यह वाली लॉजिक नहीं चलती तो फिर इसके बाद यह दूसरी लॉजिकली लेकर आते हैं और कहते हैं।

एक बुज़ुर्ग उवैस करनी को जब मालुम हुआ कि आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का दांत-ए-मुबारक शहीद हो गया तो उन्होने अपने दातों को पत्थर से तोड डाला और फ़िर उन्होने हलवा खाया लिहाज़ा ये उनकी सुन्नत है और हम इस सुन्नत में हलवा बना कर खा रहे हैं। सबसे पहली बात तो यह कि उन्होंने अपने दांत तोड़े थे तो क्या आप भी दांत तोड़ोगे एक बात हो गई।

दूसरी बात यह कि दांत तोडने का झूठा वाकया उनसे मन्सूब करके नकल कर दिया गया। फ़िर अपने दांतों को तोडना खुदकुशी की तरह है। आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने मुंह पर तमाचें मारने से मना फ़रमाया है (इब्ने माज़ा) तो मुंह पर पत्थर मारना और अपने दांत तोड़ना किस तरीके से जायज़ होगा?

तो दूसरी बात लेकर आते हैं और कहते हैं कि जिसका अज़ीज़ इस साल मर गया हो तो “अरफ़ा” करे यानी शबे-बारात से एक रोज़ पहले हलवा पकाकर नियाज़ फ़ातिहा दिला दें इस तरह इस साल का नया मुर्दा बरसों पुराने मुर्दों में शामिल हो जायेगा। ये बात भी मनगढंत है।और इसी कोई भी हकीकत नहीं है और कोई भी सबूत नहीं मिलता शरीयत से।

शबे-कदर या लैलातुल कादर की रात क्या है?

शबे-बारात के बारे में अगली जो बात है बहुत सारे लोग इसमें कंफ्यूज होते हैं कि यह शबे कदर की रात है और वह शबे कदर समझ करके इस रात में इबादत करते हैं। तो यह बहुत ही कम इल्म की बात है। और एक मुसलमान होने के नाते हमें शबे कदर पता होना चाहिए कि कब होती है वो रमजान में होती है ताक रातों में मस्जिदों में सुनते भी होंगे बयान में उलेमा लोग बताते भी है।

रमजान में ताक रातें 21, 23, 25, 27,29 इनमें आप जागो और इबादत करो क्योंकि इसमें शबे कदर हो सकती है अगर यह बात आप जानते थे कि शबे कदर रमजान में होती है कि आप हमें कमेंट करके जरूर बताएं और जिन लोगों को भी इस बारे में कंफ्यूजन है उनका भी कंफ्यूजन दूर करें उनको भी यह बताएं कि भैया यह शबे कदर नहीं है। शबे कदर रमजान में होती है।

यह शबे कद्र रमज़ान के आखिरी अशरे की ताक रातों में से ही कोई एक रात होती है। यहां कद्र की इस रात को मुबारक रात करार दिया गया है। इसके मुबारक होने में क्या शुबह हो सकता है?? कि एक तो इसमे कुरआन का नुजुल (नाज़िल) हुआ, दूसरें इसमें फ़रिश्तों और हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम का नुजूल (ज़मीन पर आते है) होता है। तीसरे इसमें सारे साल में होने वाले वाकियात का फ़ैसला किया जाता है।

चलिए आगे बातें कुछ लोग इस रात की फजीलत साबित करने के लिए यह कहते हैं। कि इसी रात में कुरान शरीफ उतरा था है यह बाद उनकी झूठ साबित होती है कि क्योंकि कुरान शरीफ कब उतरा इसके बारे में अल्लाह ताला खुद ही कुरान शरीफ में बता दिया है।

बिला शुबह हमने इस (कुरआन) उतारा है एक मुबारक रात में और हम इस किताब के ज़रीये लोगों को डराते हैं, इस रात में तमाम फ़ैसले हिकमत के साथ बांट दिये जाते है।” (मुबारक रात से मुराद शबे-कद्र है जैसा कि दुसरे मुकाम पर सराहत है।)

जैसा कि दूसरे मुकाम पर अल्लाह ताला हमें इसकी तपसील भी बता दिए यह मुबारक रात शबे कद्र हैं न की शबे बरात जो हम लोगों ने खुद ही क्रिकेट किए है। यहाँ से हमें ये बात पता चलती है एक दूसरी जगह अल्लाह ताला ने फरमाया कि रमजान के महीने में कुरान को नाजिल किया गया तो इससे आप समझ सकते हैं। कि यह रमजान के महीने में नाजिल किया गया तो यह तो रमजान का महीना नहीं है। तो हमें इसमें कंफ्यूज होने की कोई जरूरत नहीं है चलिए आगे बात करते हैं। शबे-बारात की रात को कब्रिस्तान में जाना कैसा है?

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शबे-बारात की रात को कब्रिस्तान में जाना कैसा है?

जैसा कि लोग शबे-बरात में कहते हैं कि नबी सल्लल्लाहो वसल्लम कबर पर गए थे और दुआ की थी तो हमें भी जा करके दुआ करना चाहिए ठीक है। जब आप सुन्नत पर अमल कर रहे हैं तो ठीक है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम किस टाइम गए थे और वह कैसे गए थे इस बात को भी हमें देखना है तभी तो सुन्नत पर अमल होगा नबी सल्लल्लाहो वसल्लम रात में चुपके से गए थे बिना किसी को बताए और जाकर के दुआ किया था तो सबसे पहले अगर आपको जाना है तो आप चुपके से जाए और बिना किसी को बताए।

दूसरी बात कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक बार गए थे जिसकी रिवायत हज़रत आयशा रज़ि अल्लाहो अन्हा से मिलती है तो आप भी अपनी पूरी जिंदगी में एक बार जाइए और वह भी रात में चुपके से कोई ना देख रहा हो तब जा करके आप की सुन्नत सही से अदा होगी।

लेकिन यहां तो आलम यह है कि रात भर कबर पर मेला लगा रहता है तो अगली बात लोग यह कहते है कि कवर पर हम जाते हैं इसलिए कि हमें जो है उससे ही इब्रत हासिल हों और कवर पर जा करके हम अपने गुनाहों को याद करें और माफी मांगे तो यह बात भी इनकी नहीं चल पाती क्योंकि कवर पर हम जाते हैं ग्रुप में और वहां एक मेला लगा होगा तो वहां पर हमें इब्रत हासिल कुछ भी नहीं होगी जब आप अकेले जाएंगे तब जाकर के इब्रत हासिल होगी चलिए आगे बढ़ते हैं और बात करते हैं।

शबे-बारात की रात को आतिशबाजी करना कैसा है

शबे बारात की रात में आतिशबाजी की जाती है नौजवानों की तरफ से इसकी क्या हकीकत है। तो यह देखिए इसको लोग दीपावली से इसकी तुलना करते हैं कि उस रात में लोग आतिशबाजी करते हैं और जागते हैं तो वही चीज यहां पर जागने का तो लोग कर रहे हैं और साथ में आतिशबाजी भी करते हैं।

यह बिल्कुल भी ठीक नहीं हैं बल्कि इससे हमारे पर्यावरण को भी नुकसान होगा इसमें बहुत सारे जहरीली गैसें निकलती हैं इसको जलाने से यह भी हमें नहीं करना चाहिए और अपने घर के लड़कों को भी मना करना चाहिए है कि यह काम मत करो वह सारे लड़के इस रात में बाइक पर स्टंट करते हैं।

और एक बाइक पर 4 से 5 लड़के सवार होकर के चलते हैं यह बिल्कुल भी ना करें और ना किसी और को करने दे। पुलिस प्रशासन को यह मौका न दे वह हमारे खिलाफ कोई एक्शन ले तो लड़के देखिए मानेंगे नहीं घर के बड़े हैं।

उनको चाहिए कि उस रात में अपने लड़कों पर निगरानी रखें कि वह बाइक लेकर के कहीं भी सड़कों पर निकलने ना पाए पहले यह सब चीजें बड़े शहरों में होती थी। लड़के बाइक लेकर के निकल जाते थे लेकिन अब छोटी जगहों पर भी यह चीज़ें होने लगी है। तो हमें हेतिहार से काम लेना होगा और लड़कों को शक्ति से मना करना होगा और अगर किसी वजह से उन्हों ने यह हरकत की है फिर भी इस काम के लिए उनको मुनासिब सजा भी दे जिससे कि आगे से वह ऐसी हरकत न करें।

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सलातुल तस्बीह की नमाज पढ़ना कैसा हैं ?

इस रात में एक और नमाज सलातुल तस्बीह नाम से लोगों ने फेमस किया है लोग पढ़ते हैं तो इसकी भी कोई हकीकत नहीं है। लोगों का यहां कहना है ये नमाज़ साल भर में एक बार पढ़ना जरूरी है अगर साल भर में एक बार नहीं पढ़ें तो कम से कम जिंदगी में एक बार पढ़ना जरूरी है। तो यह जरूरी कहीं भी नहीं है पांच वक्त की नमाज जरूरी है लोगों के ऊपर एक मशक्कत तो मुसल्लत कर दिया है लेकिन कुछ लोग यह कहते हैं कि अगर पढ़ लिया है तो क्या हो गया।

इबादत कर लिया तो क्या हो गया देखिए इबादत करनी है तो कुछ नहीं हो गया यह तो अच्छी बात है लेकिन यह इबादत सिर्फ एक दिन क्यों क्या अल्लाह ताला ने एक दिन के इबादत करने के लिए कहा है। डेली इबादत करनी है। मेरे मोहल्ले में भी यह चीज़ें मनाई जाती है मैं भी पहले मनाता था। लेकिन जब मुझे यह सब बातें पता चली तब से मैंने यह सब छोड़ दिया है। सिर्फ इसलिए मैं मनाया कि मोहल्ले वाले और घर वाले मना रहा है जहां तक मैंने पता किया है मुझे इसमें रिसर्च करने में कुछ भी ऐसा नहीं मिला जिसे कि यह शबे बरात मनाना साबित हो। फिर भी आप अपनी तहकीक करें और फिर उस हिसाब से अपना फैसला ले।

कुछ लोगों का यह भी कहना है कि हम नेक काम कर रहे हैं कुछ लोग मना क्यों कर रहा है तो मना करने का देखिए यह है कि जो भी चीज शरीयत में साबित नहीं है वह करेंगे तो वह बिदअत की कैटेगरी में आ जाता है।

दूसरी चीज कि जब आप किसी भी चीज को जिसका कि हक है वह नहीं देंगे तो यह भी एक तरीके से जुल्म होगा जो शबे कदर है उसका हक हैं कि उस रात में हम लोग जागे और इबादत करें लेकिन शबे कदर बहुत से लोगों को पता ही नहीं है। शबे क़द्र कब है और कुछ लोग जानते हैं तो भी इबादत नहीं करते।

तो अगर आप शबे कदर की इबारत को छोड़कर के अपनी तरफ से गढ के कोई रात की इबादत करेंगे तो आपको कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है। इस आर्टिकल में जो भी बात बताई है आप खुद ही अपना दिमाग थोड़ा सा लगा करके सोचिए और अगर आपको ठीक लगे तो बात मान सकते हैं। नहीं ठीक लगे तो जैसे कर रहे हैं वैसे करते रहें।

हमसे राब्ता करने के लिए आप हमारी वेबसाइट पर कमेंट कर सकते है। इसी के साथ ही आप इस आर्टिकल को अपने दोस्तों और रिस्तेदारो के साथ शेयर कर सकते है। जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग शबे बारात को पढ़ सके और इसके को जान सके। मिलते हैं फिर किसी नए आर्टिकल लेकर तब तक के लिए अल्लाह हाफिज।

अल्लाह ताला हर मुस्लमान को दुनिया और आख़िरत में आला मुकाम दे।

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