दिन की सब से पहली नमाज़ फज्र की नमाज़ है, Fajar Namaz ki Rakat मे दो और दो करके पूरी चार रकात पढ़ी जाती है , जिसमे 2 रकात सुन्नत ए मुआक्केदा, और 2 रकात फ़र्ज़ होती है|
फज्र नमाज़ की रकात
फज्र नमाज़ का वक़्त सुबह सादिक़ यानी दिन निकलने से लगभग एक डेढ़ घंटा पहले शुरू होता है. इस आर्टिकल को लिखने का मकसद है की लोगो को fajar namaz ki rakat बारे में तफसील से बताया की कितनी रकात होती है|
आप लोग Fajar Namaz ki Rakat तो जान चुके हैं अब जानते हैं रकात का मतलब क्या है ?
रकात का मतलब
रकात का मतलब ये समझें की नमाज़ पढने वाले को कितनी बार खड़े रहना है
किसी भी नमाज़ में कम से कम 2 बार खड़े होना ज़रूरी है, कोई मरीज़ हो या कोई बीमारी हो जिसकी वजह से इन्सान अपने पैरों पर खड़ा नही हो सकता तो वो बैठ कर या कुर्सी पर भी पढ़ सकता है|
इसलिए Fajar ki Namaz में चार बार खड़े होना है , दो बार Sunnat E moakkeda में , दो बार फ़र्ज़ में.
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सुन्नत ए मोअक्केदा
Fajar Namaz ki Rakat के जानने के साथ साथ ये भी जानेगे की सुन्नत ए मोअक्केदाक्या है ? वैसे तो कोई सुन्नत या नवाफिल बिना वजह के नही छोड़ना चाहिए इसलिए Sunnat E moakkeda का मतलब ऐसी सुन्नत जिसको बिना किसी वजह के छोड़ने से गुनाह मिलता है
सुन्नत ए मोअक्केदा बहुत ही ज़रूरी है, इस लिए Fajar ki Namaz ka time जब हो जाए तो जल्द से जल्द Sunnat E moakkeda अदा कर लेनी चाहिए, जिससे की छूटने की गुंजाइस ही न रहे|
फज्र के वक़्त की कुछ हदीसें
इस आर्टिकल में Fajar Namaz ki Rakat के साथ-साथ कुछ हदीसें भी हैं जो सुन्नत ए मोअक्केदा के बारे में हैं
एक हदीस मे आया है:
- हज़रत अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया फज्र की दो रिकात (सुन्नत) न छोड़ो अगरचे घोड़ों से तुम को रोंद दिया जाए। (अबू दाऊद)
- हज़रत आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) से रिवायत है कि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया फज्र की दो रिकात (सुन्नतें) दुनिया और दुनिया में जो कुछ है उससे बेहतर है।
- एक दूसरी रिवायत में है कि हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया यह दो रिकातें पूरी दुनिया से ज़्यादा महबूब हैं। (अबू दाऊद)
फज्र की नमाज़ का तरीका
Fajar Namaz ki Rakat जानने के बाद अब जानते हैं Fajar ki namaz ka tarika ,फज्र की नमाज़ के लिए सबसे पहले 2 रकात सुन्नत ए मोअक्केदा पढना चाहिए , फिर उसके बाद 2 रकात फ़र्ज़ की नमाज़ पढ़नी चाहिए |
मस्जिद में फजर की फ़र्ज़ नमाज़ की जमात होते हुए पहले सुन्नत पढना चाहिए या नहीं इस बारे में नीचे कुछ हदीसें बयान की गयी हैं .
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नमाज़ की नियत करना
दरअसल नमाज़ की कोई ख़ास नियत नहीं हैं , इसलिए Fajar ki namaz ki niyat अगर आपने दिल में इरादा कर लिया है की मैं ये नमाज़ ( जो आप पढने जा रहे हैं ) पढने जा रहा हूँ तो आपकी नियत हो गयी है.
अगर आप ज़बान से बोल कर नियत करना चाहते हैं तो भी कोई ग़लत नहीं है , क्यूंकि बोल देने से ये बस खुद को तसल्ली देने के लिए है खुद का यकीन और अच्छा करने के लिए है की मैं यही नमाज़ पढने जा रहा हूँ।
ये नियत सिर्फ़ Fajar Namaz ki niyat के लिए नही बल्कि हर नमाज़ के लिए हैं
सुन्नत और नफिल नमाज़ों की अहमियत
हर मुसलमान को चाहिए कि Fajar Namaz ki Rakat जानने के साथ -साथ वह हर फ़र्ज़ नमाज़ों के साथ – साथ सुन्नत व नवाफिल का भी खास एहतेमाम करे ताकि अल्लाह तआला का क़ुर्ब भी हासिल हो जाए |
जैसा कि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि बन्दा नवाफिल के ज़रिया अल्लाह तआला से करीब होता जाता है।
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अगर खुदा नखास्ता क़यामत के दिन फ़र्ज़ नमाज़ों में कुछ कमी निकले तो सुन्नत व नवाफिल से उसकी तकमील कर दी जाए जैसा कि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद
फरमाया कि क़यामत के दिन आदमी के आमाल में से सबसे पहले फ़र्ज़ नमाज़ का हिसाब लिया जाएगा अगर नमाज़ दुरुस्त हुई तो वह कामयाब व कामरान होगा और अगर नमाज़ दुरुस्त न हुई तो नाकाम और घाटे में रहेगा।
और अगर नमाज़ में कुछ कमी पाई गई तो इरशादे खुदावंदी होगा कि देखो इस बन्दे के पास कुछ नफलें भी हैं जिनसे फ़र्ज़ को पूरा कर दिया जाए अगर निकल आऐ तो इनसे फ़र्ज़ की तकमील कर दी जाएगी। (तिर्मीज़ी)
पूरे दिन की सुन्नत ए मोअक्केदा
Fajar Namaz ki Rakat मिला कर पूरे दिन रात में 12 रिकात सुन्नते मुअक्कदा हैं
(2 रिकात नमाज़े फज्र से पहले, 4 रिकात नमाज़े ज़ुहर से पहले, 2 रिकात नमाज़े ज़ुहर के बाद, 2 रिकात नमाज़े मगरिब के बाद और 2 रिकात नमाज़े इशा के बाद)।
अलबत्ता नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इरशादात की रोशनी में उम्मते मुस्लिमा का इस बात पर इत्तिफाक है
कि तमाम सुन्नतों में सबसे ज़्यादा अहमियत Fajar Namaz ki Rakat में फजर की 2 रिकात सुन्नत की हैं जैसा कि कुछ हादीस नीचे आ रही हैं।
- हज़रत आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) से रिवायत है नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फज्र की सुन्नतों से ज़्यादा किसी नफल की पाबन्दी नहीं फरमाते थे। (बुख़ारी व मुस्लिम)
- हज़रत आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) फरमाती हैं कि नबी अकरम सल्लल्लहु अलैहि वसल्लम ज़ुहर से पहले चार रिकात और फज्र से पहले दो रिकात कभी नहीं छोड़ते थे।
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फज्र की जमाअत शुरू होने के बाद दो रिकात सुन्नत
अमूमन नमाज़ के टाइम सुन्नत ए मोअक्केदा अदा करने में उलमा-ए-किराम का इत्तिफाक है कि नमाज़े फज्र के अलावा
अगर दूसरे फ़र्ज़ नमाज़ों (ज़ुहर, असर, मगरिब और इशा) की जमाअत शुरू हो जाए तो उस वक़्त और कोई नमाज़ यहां तक कि इस नमाज़ की सुन्नत भी नहीं पढ़ी जा सकती है।
लेकिन फज्र की सुन्नतों के सिलसिले में उलमा की दो राय हैं और यह दोनों राय सहाबा-ए-किराम के ज़माने से चली आ रही हैं, जैसा कि इमाम तिर्मीज़ी ने अपनी किताब में इसका ज़िक्र किया है।
(तिर्मीज़ी जिल्द 2 पेज 282)
पहली राय के मुताबिक
Fajar Namaz ki Rakat में फज्र की सुन्नतों का हुकुम भी दूसरी सुन्नतों की तरह है कि जमाअत शुरू हाने के बाद सुन्नत की अदाएगी नहीं। इस राय के लिए बुनियादी तौर पर हज़रत अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) की हदीस को दलील में पेश किया जाता है
जिसमें नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है कि जब जमाअत शुरू हो जाए तो फ़र्ज़ नमाज़ के अलावा कोई और नमाज़ पढ़ना सही नहीं हैं।
दूसरी राय की नज़र के मुताबिक इस हदीस का सही मफहूम आर्टिकल के आखिर में लिखा गया है, गरज़ ये कि हदीस के मतलब को समझने में उलमा की राय मुख्तलिफ है।
(तिर्मीज़ी जिल्द 2 पेज 282)
दूसरी राय के मुताबिक
फज्र की सुन्नतों की अहमियत के पेशे नज़र जमाअत शुरू होने के बाद भी हज़रात सहाबा-ए-किराम यह सुन्नतें पढ़कर जमाअत में शरीक हुआ करते थे।
लिहाज़ा अगर फ़र्ज़ नमाज़ की दूसरी रिकात मिल जाने की ज़्यादा उम्मीद हो तो जहाँ जमाअत हो रही है उससे हटकर इमकान दूर फजर की दो रिकात सुन्नत पढ़ कर नमाज़ में शरीक हों, नीचे इसकी दलील लिखी जा रही हैं।
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हदीस 1 –
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अबू मूसा (रज़ियल्लाहु अन्हु) फरमाते हैं कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद (रज़ियल्लाहु अन्हु) हमारी मस्जिद में तशरीफ लाए तो इमाम फज्र की नमाज़ पढ़ा रहा था, आप ने
एक सुतून के करीब फज्र की सुन्नतें अदा फरमायीं, चूंकि वह इस से पहले सुन्नतें नहीं पढ़ सके थे। इस हदीस को तबरानी ने रिवायत किया है और उसके तमाम रावी मज़बूत हैं।
(मजमउज़्ज़वाएद जिल्द 1 पेज 75)
हदीस 2 –
अबू उसमान अंसरी फरमाते हैं हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हु) तशरीफ लाए जब कि इमाम फजर की नमाज़ पढ़ा रहा था और आपने फजर की दो रिकात सुन्नतें नहीं पढ़ी थीं तो आपने पहले दो रिकातें पढ़ी फिर जमाअत में शामिल हो कर फजर की नमाज़ पढ़ी।
(आसारूस्सुनन जिल्द 3 पेज 33, तहावी,
हदीस 3 –
हज़रत मोहम्मद बिन काब (रज़ियल्लाहु अन्हु) फरमाते हैं कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) घर से निकले तो फजर की नमाज़ खड़ी हो गई थी, आपने मस्जिद में दाखिल होने से पहले ही दो रिकात पढ़ीं फिर जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ी।
हदीस 4 –
हज़रत अबू दरदा (रज़ियल्लाहु अन्हु) मस्जिद में तशरीफ लाए तो लोग फज्र की नमाज़ के लिए सफों में खड़े थे,
आपने मस्जिद में एक तरफ दो रिकात पढ़ीं फिर लोगों के साथ नमाज़ में शरीक हुए।
(तहावी)
हदीस 5 –
हज़रत अबू उसमान मेहदी फरमाते हैं कि हम हज़रत उमर बिन खत्ताब (रज़ियल्लाहु अन्हु) के दौर में फज्र से पहले की दो रिकातें पढ़े बेगैर आया करते थे, जबकि हज़रत उमर फारूक नमाज़ पढ़ा
रहे होते, हम मस्जिद के आखिर में दो रिकात पढ़ लेते फिर लोगों के साथ नमाज़ में शरीक हो जाते। (तहावी, अररजलु यदखुलुल मस्जिद वलइमाम)
Fajar Namaz ki Rakat में सुन्नते इ मोअक्केदा के बारे में इन जलीलुल क़दर हज़रात सहाबा किराम के अमल से मालूम हुआ कि अगर नमाज़े फज्र की जमाअत मिल जाने की उम्मीद है तो मस्जिद में एक तरफ सुन्नतें पढ़ कर जमाअत में शरीक होना चाहिए।
इस मौज़ू से मुतल्लिक सबसे मुस्तनद हदीस में हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद (रज़ियल्लाहु अन्हु) के अमल ज़िक्र किया गया,
वह अगर सुन्नतें पढ़े बेगैर मस्जिद पहुंचते तो सुतून के करीब फज्र की सुन्नतों को अदा फरमाते फिर जमाअत में शरीक होते।
(मुत्तफिका तौर पर यह हदीस सही है)।
इसलिए सब देख सुन कर अगर मौका मिले तो Fajar Namaz ki Rakat में सुन्नत इ मोअक्केदा ज़रूर अदा करनी चाहिए
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हज़रत अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) की हदीस
नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है कि जब नमाज़ शुरू जाए तो फ़र्ज़ नमाज़ के अलावा कोई और नमाज़ पढ़ना सही नहीं है।
(तिर्मीज़ी जिल्द 2 पेज 282),
यक़ीनन ये सही हदीस है मगर दूसरे अहादीस व सहाबा-ए-किराम के अमल को सामने रखते हुए यही कहा जाएगा कि इसका तअल्लुक फज्र की नमाज़ के अलावा दूसरे नमाज़ों से है,
क्योंकि शरीअत में फज्र की दो रिकात सुन्नतों की जो अहमियत है वह दूसरे सुन्नतों की नहीं।
एक अहम मसला
अगर Fajar Namaz ki Rakat में सुन्नतें पढ़कर जमाअत में शरीक होना मुमकिन न हो तो सुन्नतें छोड़ दें और जमाअत में शरीक हो जाए, फिर हुकमे नबवी के मुताबिक (अगर इन सुन्नतों को पढ़ना चाहे तो)
सूरज निकलने के बाद इन सुन्नतों की कज़ा पढ़ ले, फज्र की नमाज़ के बाद यह सुन्नतें न पढ़े चूंकि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फज्र के बाद से ले कर आफताब तक नमाज़ पढ़ने से मन किया है
- हज़रत अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) फरमाते हैं कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जिसने फजर की दो रिकातें न पढ़ी हों वह सूरज निकलने के बाद पढ़ ले।
- (तिर्मीज़ी)
- इमाम मालिक (रहमतुल्लाह अलैह) फरमाते हैं कि उन्हें यह बात पहुंची है कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) की फज्र की दो रिकात छूट गईं तो आपने सूरज निकलने के बाद उन्हें कज़ा पढ़ा।
- आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्ल्म ने इरशाद फरमाया सुबह की नमाज़ पढ़ कर कोई और नमाज़ पढ़ने से रूके रहो जब तक की सूरज निकल न जाए।
- (बुखारी व मुस्लिम)
फजर में उठने का आसान तरीका , बयान सुनें मुफ़्ती तारिक मसूद साहब
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व अखिरू दावाना अलाह्म्दुलिल्लाही रब्बिल आलमीन