Bidat Kya Hai

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इस्लाम में बिदत किसे कहते हैं
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अल्लाह की जात और सिफात और अखतियारात में किसी और को शरीक समझना शिरक कहलाता है। हम बताने जा रहे है Bidat Kya Hai

Bidat Kya Hai?

जो काम आप हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा रजि अल्लाह ताला अनहो ने नहीं किया बल्कि दीन के नाम पर बाद में इजाद हुआ उसे इबादत समझकर करना बिदत कहलाता है।

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इस उसूल की रोशनी में आप अपने हिसाब से खुद भी किसी मसले को समझ सकते हैं

कुफ्र और शिर्क के बाद बिदत बड़ा गुनाह है और बिदत उन चीजों को कहते हैं जिनकी असल शरीयत से साबित ना हो यानी कुरान और हदीस में उनका कोई सबूत ना मिले

और रसूल सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम और सहाबा रजि अल्लाह ताला अनहो के जमाने में उसका वजूद ना हो और उसको दीन का काम समझ कर किया और छोड़ा जाए

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सुन्नत किसको कहते हैं

सुन्नत आप हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तरीके का नाम है जब किसी चीज को सुन्नत कहते हैं तो इसके मानी है कि हम उसको आप हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की जाते अकदस से मंसूब करते हैं।

किसी ऐसी चीज को आप हजरत सल्ला वाले वसल्लम की तरफ से मंसूब करना जायज नहीं जो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने ना की हो और ना आप ने उसकी तरगीब दी हो ना सहाबा इकराम रजि अल्लाह ताला अनहो ने की हो

बिदत की शुरुआत कहां से हुई

कुरान में अल्लाह ताला ने फरमाया ” आज मैंने तुम्हारे लिए दीन कामिल कर दिया और तुम पर अपना इनाम भरपूर कर दिया और तुम्हारे लिए इस्लाम के दीन होने पर मैं राजी हो गया”

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अल्लाह ताला अपनी जबरदस्त बेहतरीन आला और अफजल तरीन नेमत का जिक्र फरमाते हैं कि मैंने तुम्हारा दीन हर तरह और हर हैसियत से मुकम्मल कर दिया।

तुम्हें इस दीन के सिवा किसी और दीन की जरूरत नहीं ना इस नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के सिवा और नबी की तुम्हारे लिए जरूरत है अल्लाह ने तुम्हारे नबी सल्लल्लाहो वसल्लम को आखरी नबी बनाया उन्हें तमाम जिन्नों और इंसानों की तरफ भेजा है,

हलाल वही है जिसे वह हलाल कहे हराम वही है जिसे वह हराम कहें, दीन वही है जिसे वह मुकर्रर करें दीन को कामिल करना तुम पर अपनी नेमत को पूरा करना है।

क्योंकि मैं खुद तुम्हारे इस दीन इस्लाम पर राजी हूं इसलिए तुम भी इस पर राजी रहो यही दीन अल्लाह का पसंदीदा है इसको दे कर उसी ने अपना अपने फजल से रसूल को भेजा है और अपनी अशरफ किताब नाजिल फरमाई है।

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बिदती को तोबा नसीब नहीं होती

जो इंसान गुनाह करता है उसके लिए यह उम्मीद की जा सकती है कि कभी ना कभी तोबा कर लेगा कोई मुसलमान नमाज नहीं पड़ता या रोजा नहीं रखता या शराब पीता है या जुआ खेलता है या चोरी करता है तो बाहर हाल बा तोबा कर सकता है क्योंकि गुनाह को गुनाह समझ कर कर रहा है और बिदती को तोबा भी नसीब नहीं होती।

क्योंकि वह विदत को इबादत समझकर कर रहा है और उसे अल्लाह का शरीक समझता है या सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम समझता है या अजमत ए औलिया इकराम रहमतुल्लाह अलैह समझता है फिर तोबा किस लिए करेगा

बिदती अपने आप को गुनाहगार नहीं समझता ऐसा इंसान तो बदनसीब ही कहलायेगा जिसको अल्लाह ताला तौफीक दे अक्सर लोग ऐसे देखे जा रहे हैं जो हुजूर सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम की मोहब्बत और समझ कर कर रहे हैं और बाज औलिया इकराम रहमतुल्लाह की अजमत समझकर बातें कर रहे हैं

और जब उन्हें समझाया जाता है तो वह हुजूर सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम की सही और सच्ची बातों को ठुकरा देते हैं क्योंकि वह बातें उनकी अक्ल में नहीं आती हर मुसलमान को चाहिए कि जो भी काम करें पहले उसको कुरान और हदीस ए सहाबा इकराम रजि अल्लाह ताला अनहो की जिंदगी मुबारक से तहकीक कर ले

वहां से दलील मिलती है तो करें वरना छोड़ दे हुजूर सल्लल्लाहो ताला ने जो काम नहीं किया वह काम अगर हम नहीं करेंगे तो अल्लाह ताला हम से कयामत के दिन नहीं पूछेगा कि तुमने क्यों नहीं किया और अगर हम उसको सवाल समझ कर करेंगे और

अल्लाह ताला ने मैदान में पूछ लिया कि तुमने क्यों किया तो हम जवाब तो हमें जवाब देना भारी पड़ जाएगा मेरे भाइयों सोच लो

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जिन काम के मुतालिक सुन्नत या बिदत होने में कन्फ्यूजन हो

जिम काम के मुतालिक हमें समझ ना आ रहा हो कि यह सुन्नत है या बिदत इस हालत में हम क्या अमल करें, जिस काम के बिदत और सुन्नत होने में confusin हो तो उस काम को छोड़ दिया जाएगा इसलिए कि बिदत का छोड़ना लाजिम और जरूरी है

नोट : इस आर्टिकल को लिखने में मसाइल शिर्क व बिदात किताब की मदद ली गई है

https://www.youtube.com/watch?v=Tv9HaiUC5DY&t=17s

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