Shirk Kise Kahte Hai (1442 Hijri)

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शिर्क किसे कहते हैं
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शिर्क क्या है

कुरान में अल्लाह ताला ने फरमाया : ” अल्लाह ताला की जात और सिफात के बारे में जो विश्वास है उस तरह का कोई विश्वास किसी और के लिए रखना शिर्क कहते हैं” जैसे कोई आग की पूजा करें या फिर एक से ज्यादा खुदा माने या किसी मूर्ति की पूजा करें तो इसको शिर्क कहते हैं

शिर्क किसे कहते हैं ? में हम जानेंगे की ये कितने प्रकार का होता है जैसे इल्म में शरीक ठहराना, इबादत में शरीक ठहराना इत्यादि, शिर्क बहुत बड़ा गुनाह है इसलिए इससे बचना जरूरी है

इल्म में शरीक ठहराना

किसी पीर या बुजुर्ग के प्रति यह विश्वास रखना की उनको हमारे बारे में हर वक्त हर चीज की खबर है जैसे कि भविष्यवक्ता से अपने भविष्य के बारे में जानकारी लेना और उनकी बात पर विश्वास करना यह समझना कि जो उन्होंने बताया वही सच है|

ये बात याद् रखे की हर शै का इल्म सिर्फ अल्लाह ताला को ही है उसके इलावा और किसी को सिर्फ उतना ही पता है जितना अल्लाह ताला ने इल्म दिया है

इबादत में शरीक ठहराना

यानी अल्लाह ताला की तरह किसी दूसरे को अब आदत के लायक समझना, किसी को सजदा करना किसी के नाम का जानवर छोड़ना चढ़ावा चढ़ाना किसी के नाम की मन्नत मानना

किसी की कबर या मकान का तवाफ करना खुदा के हुक्म के मुकाबले में किसी और की बात मानना किसी महीने को मनहूस समझना किसी के नाम का जानवर चढ़ाना वगैरह. शिर्क का ही एक हिस्सा है

हुकूमत में शरीक ठहराना

अल्लाह ताला की तरह किसी और को हाकिम समझना और उसके हुकुम को खुदा के हुक्म की तरह मानना जैसे किसी पीर साहब ने हुकुम दिया कि यह वजीफा असर की नमाज से पहले पढ़ा करो और

वह इंसान उस हुकुम को जरूरी समझकर करता है तो यह Shirk Kise Kahte Hai में से एक तरीके का शिर्क है, शिर्क की बातों के करीब मत जाओ औलाद के होने या जिंदा रहने के लिए टोने टोटके मत करो

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क्या अंबिया अवलिया और फरिश्तों को अख्तियार हासिल है?

किसी भूखे का किसी से रोटी मांगना यह शिर्क नहीं बाकी अंबिया और औलिया के हाथ पर जो खिलाफ आदत वाकया जाहिर होते हैं वह चमत्कार अथवा करामात कहलाते हैं

उसमें जो कुछ होता है वह अल्लाह ताला की कुदरत से होता है यह शिर्क नहीं है इसी तरह फरिश्तों का भी मामला है जो अलग-अलग कामों पर अल्लाह ताला ने उनको मुकर्रर कर रखा है

कुफ्र क्या है

शिर्क किसे कहते हैं में ये बात है की जिन चीजों पर ईमान लाना जरूरी है उनमें से किसी एक बात को भी ना मानना कुफ्र है जैसे कि

कोई शख्स अल्लाह ताला को ना माने या अल्लाह ताला की सिफात का इंकार करें या 2, 3 खुदा माने या फरिश्तों का इंकार करें या अल्लाह ताला की किताबों में से किसी किताब का इंकार करें या किसी पैगंबर को ना माने या

तकदीर से इंकार करें या कयामत के दिन को ना माने या अल्लाह ताला के दिए हुए हुक्म में से किसी हुकुम का इंकार करें या रसूल सल्ला वाले वसल्लम की दी हुई किसी खबर को झूठा समझे तो उन तमाम बातों को कुफ्र कहते है

काफिर और मुशरिक में क्या फर्क है ?

आप सल्लल्लाहो अलिएहे वसल्लम के लाए हुए दीन में से किसी बात से जो इंकार करेगा वह काफिर कहलाता है, और जो शख्स अल्लाह ताला की जात में सिफात में या उसके कामों में किसी दूसरे को शरीक समझे वो मुशरिक कहलाता है

किसी को काफिर कहना कैसा है

हदीस में है कि जब किसी ने दूसरे को काफिर कहा उनमें से एक कुफ्र के साथ लौटेगा अगर वह शख्स जिसको काफिर कहा वाक्य तन काफिर था तो ठीक वरना कहने वाला काफिर का वह वाले व बाल लेकर जाएगा यानी किसी को काफिर कहना गुनाह ए कबीरा है

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या रसूल अल्लाह कहना

कुरान शरीफ की बहुत सी आयत से बिल्कुल वाजे और साफ तौर पर यह बातें साबित है

एक ये है कि सिर्फ खुदा ही वह हस्ती है जो हर वक्त हर जगह मौजूद है और ना सिर्फ पुकार को सुनता है बल्कि दिल ही दिल में मांगी जाने वाली दुआओं को भी सुनता है और दिल और जान की हर हर कैफियत से बा खबर है, और हम आगे जानेगे कि शिर्क किसे कहते हैं में दूसरा क्या है

दूसरे यह कि तमाम अंबिया औलिया उसके बंदे हैं और इंसान हैं उनमें कोई अपनी खुद की सलाहियत नहीं है उन से को चमत्कार या करामात का जाहिर होना होता है वह उसी वक्त होता है जब अल्लाह ताला उसे मुनासिब समझए और वह इरादा फरमा ले

शिर्क किसे कहते हैं में तीसरे यह कि अल्लाह ताला के सिवा किसी हस्ती में कोई भी ऐसी सलाहियत मान द लेना शीर्क है जो सिर्फ अल्लाह ताला के लिए ही खास है

अल्लाह ताला अपनी जात ही में एक नहीं सिफात में भी एक है हर वक्त हर जगह मौजूद होना और हर दुआ और पुकार और फरियाद गुजारिश को सुनकर उसके बारे में फैसला करना उसका काम है यह सब किसी और में नहीं हो सकता और जो लोग इस बात को किसी और में तस्लीम करेंगे वह मुशरिक होंगे

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यह तीनों बातें जब पूरी तरह साबित हो गई और अटल हो गई तो अब किसी को भी और कोई दलील से उनके खिलाफ अकीदा नहीं रख रखा जा सकता हर प्रकार के तर्क को रद्द किया जा सकता है मगर कुरान को नहीं रद्द किया जा सकता

खूब समझ लीजिए कि खुदा के सिवा कोई हाजिर नाजिर नहीं और या रसूल अल्लाह का नारा इस अकीदे के साथ लगाना की हुजूर सल्लल्लाह हु अलैहे वसल्लम बगैर फरिश्तों वास्ते के इस नारे को खुद सुन रहे हैं शिर्क किसे कहते हैं की किस्म में दाखिल होगा

नोट : इस आर्टिकल को लिखने में मसाइल शिर्क व बिदात किताब की मदद ली गई है

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व अखिरू दावाना अलाह्म्दुलिल्लाही रब्बिल आलमीन

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