Islam Me Saas Bahu

हमारे मासरे में एक बहुत बड़ी दिक्कत सास और बहु के आपसी रिश्ते की है। Islam Me Saas Bahu का रिश्ता कैसे निभाना चाहिए बहोत अच्छी तरह बताया गया है।
जब एक बेटी निकाह के बाद ससुराल आती है तो वह एक बहू बन जाती है। और फिर सुरु होता है सास और बहू का मसला जो की हर घर की दिक्कत है।
बहु का ससुराल पर कुछ हक़ होता हैं जिसको की सभी को जानने की जरूरत है जिसमे सास और बहु दोनों की जिम्मेदारिया होती है।
ये भी पढ़े : Namaz Ka Tarika
सबसे पहले हम जानेगे सास की जिम्मेदारिया और फिर बहु की जिम्मेदारिया जिससे सास बहु का रिश्ता खुशगवार हो जाये
सास की जिम्मेदारिया
चाहे मर्द हो या औरत, हम लोग कोई भी काम करने से पहले उसके बारे में जानकारी लेते है, लेकिन अपनी घरेलू जिमेदारियो के मामले में लापरवाही करते है। जिससे
जिससे हमारे मासरे में बहुत नुकसान हो जाता है हम यहाँ पर Islam Me Saas Bahu का रिश्ता कैसे निभाना चाहिए अच्छी तरह से जानेगे जिससे सास और बहू का रिश्ता खुशगवार हो जाये
ये भी पढ़े : Islam me Dahej Pratha
बहू ससुराली नस्ल की मां होती है
सास ससुर बहू को बड़े शौक से अपने बेटे की बीवी की हैसियत से लाते हैं इसको अपनी आने वाली नस्ल की मां की हैसियत से चुनते हैं अगर मां अच्छी होगी तो नस्ल भी अच्छी होगी।

इन अहम जिम्मेदारियों को देखते हुए यह जरूरी है की बहू के हुकूक में उसकी इज्जत कि जाए और उसे एक अच्छा माहौल दिया जाए ये बहू का हक़ है। ताकि वह आने वाली नस्ल की पूरी तवज्जो और सुकून से परवरिश कर सके।
बहू का बेटी के बराबर ही मुकाम होता है सास और बहू के रिश्ते में बहू के ससुराल पर वही हुकूक हैं जो घर के एक सदस्य के होते हैं।
ये भी पढ़े : Kalma in Hindi
बहू भी एक बेटी होती है
अगर इसके किरदार और आदत में कोई कमी नजर आए तो इसे बड़े प्यार और हिकमत के साथ दूर करने की कोशिश करें अगर कोई गलतफहमी हो जाए तो उसे प्यार और हिकमत के साथ दूर कर ले।
ग़लती तलाश करना, इल्जाम लगाना, बुरे नाम रखना ,बदगुमानी या गीबत करना वह बुरे काम हैं जिनसे इस्लाम ने सख्ती से मना किया है। लिहाजा बहू के हवाले से इन बुराइयों को अपने दिल में मत आने दे वरना घर का सुकून गायब हो जाएगा।
बहू और उसके रिश्तेदारों की इज्जत
क्योंकि Islam Me Saas Bahu का ससुराल से रिश्ता इनके बेटे की वजह से है इस वजह से बहू का या हक है की ससुराल बहू को अपनी बेटी की तरह समझे इसे वैसे ही शफकत, मोहब्बत, और प्यार देने की कोशिश करें जैसे बेटी को मिलता है।
बहू अपने मां बाप से जुदा होकर नए घर में आती है सास और ससुर इसके मां-बाप जैसे ही होते हैं इसलिए सिर्फ शुरू में ही नहीं बल्कि हमेशा ऐसा रवैया रखें कि वह सास और ससुर को अपने सगे मां-बाप की तरह समझने लगे बहू के मां-बाप और उसके रिश्तेदारों की इज्जत करनी चाहिए।
बहू का अपने घर का हक
इस्लाम ने औरतों को हक दिया है कि उसे निकाह के बाद शौहर ऐसा घर दे जहां पर दोनों शौहर और बीवी सुकून से रह सके और एक दूसरे का हुकूक आसानी से अदा कर सके, जिसमें किसी की बिलावजह रोक टोक ना हो।
सास बहु की नाइत्तेफाकी से बचने के लिए जब बहू अलग घर का मुतालबा करे और उसकी माग जायज भी हो तो शौहर और उसके घर वालों को बुरा नहीं मानना चाहिए बल्कि खुशी से बिना लड़ाई झगड़े घर का इंतजाम करना चाहिए।
अलग घर हो जाने पर बहू की जिम्मेदारी खत्म नहीं होती बल्कि उसको और भी ज्यादा शौहर के मा बाप और घरवालों का एहतराम और खिदमत करनी चाहिए और एक अच्छी मिसाल पेश करना चाहिए।
ये भी पढ़े : Shirk Kise Kahte Hai
नबी का तरीक़ा
इस्लाम में बहू के मामलात का बहोत ख्याल रखा गया है खुद ” रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ” ने अपनी हर बीवी को रहने के लिए अलग घर दिया था हमारे मासरे में औरत को अलग घर देने की बजाय यह कोशिश की जाती है कि वह ससुराल वालों के साथ एक ही घर में रहे।
एक ही घर में रहने की वजह से देवर, जेठ और नंदोई वगैरा से पर्दे की जो मुश्किल पेश आती है वह तो आती है और इसके अलावा औरत अपने शौहर के लिए सज संवर भी नहीं सकती जो इसके शौहर का बुनियादी और लाजमी हक है।
जो औरत अलग घर की ख्वाहिश करती है तो इसे बहुत ही झगड़ालू बहू समझा जाता है मां-बाप को चाहिए की कि वह बहू को अलग घर देने में बेटे की मदद करें ताकि वह आजादी से और खुशी से जिंदगी गुजार सके बहू के मामले में और उसके इंतजाम में दखल अंदाजी नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह अपने घर की खुद मालिक है।
ससुराल के मर्द से पर्दा
ससुराल के तमाम मर्द बहू के लिए ना मेहरम (पर्दे के काबिल) है सिर्फ ससुर के अलावा “अल्लाह ताला और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम” ने ससुर के अलावा किसी को भी महेरम नहीं बताया है लिहाजा बहू का हक़ है कि ससुराल वाले इसे इन लोगों से पर्दा करने का मौका खुद दें।

ताकि “अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम” की नाफरमानी ना हो इस्लाम में सास बहू को कैसे रहना है पूरा बताया गया है।
हमारे मासरे में जो बहू ससुराल के इन लोगों से पर्दा करें इसके इस रवैया को सास ससुर बल्कि खुद शौहर भी ना पसंद करते हैं जबकि एक मुसलमान अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म के खिलाफ ना पसंदगी का सोच भी नहीं सकता।
ससुराल के मर्दों से पर्दा बहू का हक़ है जो इसे ना मिले तो वह मर्द से अलग होने का भी कह सकती है अगर शौहर अपनी बीवी को पर्दा न करने पर मजबूर करता है तो बीवी को इस बात पर उसका साथ देना जायज नहीं है।
शौहर का साथ देना सिर्फ नेक कामों में जायज है।
ससुराल में एक साथ रहने पर
अगर किसी वजह से बहू को ससुराल के घर रहना पड़े तो ऐसी सूरत में सास घर की मालकिन है और बहू का ख्याल रखना सास फर्ज है लिहाजा इसे चाहिए कि वह बहू पर कोई ऐसा बोझा ना डालें जो इसकी जिम्मेदारी से ज्यादा हो।
सास बहु की बीमारी का ख्याल रखें अपने बेटे बेटियों को बहू के बहन भाइयों की हैसियत से एतराम करने का हुक्म दे बहू के जज्बात का ख्याल रखें,
ये भी पढ़े : जकात क्या है
परिवार में एक साथ रहेने पर कोई अनबन हो जाए तो इंसाफ के साथ फैसला करें और जिसकी गलती हो उसको तंबीह करें किसी भी तरह की नाइंसाफी ना करें।
बेटे से बहू को इसका हक दिलाएं
मां बाप अपने बेटे से अपनी बात मनवाने का हक रखते हैं इस हिसाब से वह अपनी औलाद की गलत सही रवैया के बारे में अल्लाह के यहां जवाब देह भी होंगे इसलिए उन्हें अपने बेटे को उसकी बहू के हुकूक अदा करने के लिए ताकीद करनी चाहिए।
जैसे बीवी के जज्बात का एहतराम करें, इसके साथ मोहब्बत के साथ पेश आए इसकी जिंदगी की जरूरत को खुशी से पूरा करे, बीवी की बीमारी में इसका ख्याल रखें, बीवी को उसके मां बाप और बहन भाइयों के हवाले से किसी तरह का बुरा रवैया ना रखें।
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है “तुम में से बेहतर वह है जो अपने घर वालों के लिए बेहतर है और मैं सबसे ज्यादा अपने घर वालों के लिए बेहतर हूं”
एक मुसलमान सास ससुर की यह भी भरपूर कोशिश होनी चाहिए कि उनका बेटा बहू के हुकूक का ख्याल रखे और अपनी घरवाली के लिए बेहतरीन खाविंद साबित हो ताकि आखिरत में उसके हवाले से उसे नाकामी का मुंह ना देखना पड़े।
बहू का ख्याल रखने से खुद उनके बेटे की जिंदगी खुशगवार रहेगी और उनका अपना बेटा भी सुकून व राहत महसूस करेगा जबकि आखिरत का सुकून उस पर मजीद इनाम होगा इंशाल्लाह।
बेटे की सेहत की जिम्मेदारी
बेटे की मर्दाना सेहत और मां बाप की जिम्मेदारी
हमारे मासरे में बहु के मामले में एक नाइंसाफी यह है कि मां-बाप को मालूम भी हो कि हमारा बेटा अजवाजी ताल्लुक के काबिल नहीं फिर भी उसका निकाह कर देते हैं।
लड़कियां चुकी शर्म और हयादार होती हैं इसलिए कई साल तक तो वह खुद भी मर्द के इस ऐब को जाहिर नहीं करती अगर जाहिर हो भी जाए तो औरत को मालूम होता है कि तलाक के बाद उसको अच्छा रिश्ता मिलना मुश्किल होगा।
यू औरत सबर करके अपनी तबीयत पर जबर करके जिंदगी निकाह होने के बावजूद कुवारे पन में गुजार देती है हालांकि यह बहू का बुनियादी हक है इसके उसूल के लिए निकाह किया जाता है
तलाक और खुला
इस्लाम इस मामले में औरतों को अख्तियार देता है कि वह इस सूरत में तलाक या खुला हासिल कर ले। अगर बीवी में कोई ऐब हो तो मर्द दूसरा निकाह कर लेता है लेकिन अगर वह खुद ऐब दार हो तो वह चाहता है कि उसकी बीवी उसके ऐब को किसी पर जाहिर ना करें और उसी के साथ जिंदगी गुजार दें।
एक बात ये कि मां-बाप को अगर अपने बेटे के ऐब के बारे में मालूमात नहीं थी तो जब भी उन्हें पता चले उन्हें चाहिए कि वह बहू को अपने बेटे के निकाह से आजाद कर दे और उसे कहीं और निकाह करने में उसकी मदद करें ताकि वह अपने हक को हासिल कर ले।
ये भी पढ़े : उधार लेन देन कैसे करें
अक्सर लोग इस मामले में लापरवाही करते हैं और वह यह चाहते हैं कि उनके बेटे को बहू के रूप में नौकरानी, दिल बहलाने वाली साथी मिली रहे चाहे वह दिल से उनको और उनके बेटे को कितना ही बददुआएं दे ऐसे में वह चाहे बेराह हो जाए, अक्सर ऐसी औरतें गलत कामों में भी फंस जाती हैं।
सास जिम्मेदारियों के बाद हम बहु की जिम्मेदारियों को देख लेते है
बहु की जिम्मेदारिया
हमारे यहां बेटी कि ससुराल का नाम ज़हन में आते ही जो तस्वीर उभरती है वो जुल्म और एक दूसरे से टकराव की बनी होती है। सास बहु की तकरार से कौन वाकिफ नहीं है।
निकाह होने के पहले ही बहू अपने दिल में डर महसूस करने लगती है, इधर सास बड़े शौक से बहू को घर में लाती है लेकिन कुछ समय बाद ही रवैया बदलने लगता है। जबकि सास और बहू दोनों को मिल कर रहना चाहिए।

शादी के वक्त लड़की के मां-बाप उसे ताकीद करते है कि उस घर से अब तुम्हारा जनाजा ही उठ सकता है।
कई बार सौहर और ससुराल वाले उससे हर किस्म की खिदमत लेना अपना हक समझते हैं और बहू के हुकूक बिलकुल भूल जाते है मगर कई बार बहु भी हद से आगे किकल जाती है और ससुराल वालो को मुसीबत में दाल देती है।
बहु पर ससुराल के हुकूक
ससुराल में बहू के हुकूक के सिलसिले में जो अपनी तरफ से मासरे में कुछ बाते चल पड़ी है। जैसे कि वो सास ससुर के साथ साथ देवर जेठ और नंद नंदोई कि ख़िदमत करने के लिए ही आई है।
वो पूरी तरह से सही नहीं है जबकि वो आई है अपने सौहर के लिए और वो अगर अपनी खुशी से सास ससुर की ख़िदमत भी कर दे तो वो बहोत अच्छा लेकिन अगर वह किसी और की ख़िदमत ना कर रही हो तो किसी को भी उसको मलामत करने का हक नहीं है।
ये भी पढ़े : Islam Me Rasmo Rivaj
हमारे मासरे में यह कई बार देखा गया है कि नंदे जो सांस बनने की कोशिश करती है और चाहती है कि जो उसकी भाभी है वह उसकी पूरी पूरी खिदमत करें और जब ऐसा नहीं होता तो उसको तरह तरह से परेशान करती है।
और अपनी मां से और अपने भाई से शिकायत करती है और उसको सताने का कोई भी मौका नहीं छोड़ती इस वजह से सास बहु का आपस में ना बनना आम बात हो गई है
इस्लाम में बहू पर ससुराल के हकूक
इस्लाम में बहू पर ससुराल के हूंकूक को हम मोटे मोटे तौर पर तीन हिस्सों में बांट सकते हैं।
- जिसमे की शौहर का कहना मानना
- शौहर की खिदमत करना
- ससुराल में और लोगो की भी खिदमत कर दे तो ये एहसान के दर्जे में आएगा।
शौहर की इताअत
इस्लाम में एताअत का मतलब होता है हुक्म मानना इताअत औरत पर सिर्फ शौहर की फर्ज है क्योंकि वह उसका सरपरस्त होता है।
जब औरत निकाह के जरिए मर्द का हक ए जौजियत (जौजा का हक) अदा करने मर्द की जिंदगी में दाखिल होती है मर्द जब चाहे औरत से यह हक वसूल कर सकता है और ये एक बहोत अहम हक है।
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है शौहर जब अपनी बीवी को अपनी जरूरत के लिए बुलाये तो वह फौरन ही हाजिर हो जाए भले ही वह तंदूर में रोटियां ही क्यों ना पका रही हो।
ये भी पढ़े : Bidat Kya Hai
मालूम हुआ कि औरत हर वक्त शौहर की इताअत में है। लिहाजा मायका हो या ससुराल किसी और को यह हक हासिल नहीं है कि वह औरत को अपने हुक्म का पाबंद बनाए।
शौहर की खिदमत

खिदमत से मुराद जिस्मानी मशक्कत वाले कामों से है यानी खाना पकाना कपड़े धोना सीना परोना (सिलाई बुनाई) और बाजार से खरीदारी करने जाना वगैरह इस्लाम की रोशनी में औरत जिस्मानी तौर पर सिर्फ अपने खाविंद और बच्चों की मशक्कत उठाने की जिम्मेदार है।
लेकिन यह बात याद रहे कि जो थोड़ा बहुत हो सके वह ससुराल के और लोगो की भी खिदमत कर दे। सिर्फ यह सोचकर कि मायके में भाभी भी हमारे साथ ऐसा ही करेंगी।
एक बहू जब अपनी नंद से परेशान हो जाए तो यह सोचे कि जो सुलूक यह लोग कर रही है वह बिल्कुल ही गलत है और मैं एक नंद के तौर पर अपनी भाभी के साथ ऐसा सुलूक बिल्कुल भी नहीं करूंगी बल्कि मैं अपनी भाभी के साथ अच्छा सलूक कर के दिखाऊंगी।
दर्जा एहसान
इसका मतलब यह है कि अपनी खुशी से बगैर किसी के जबरदस्ती किए हुए किसी के लिए काम आना एहसान कहलाता है।
एहसान पैसे हाथ और जुबान के जरिए किया जा सकता है जैसे पैसे के जरिए किसी की पैसे की जरुरत पूरी कर देना। हाथ के जरिए अगर कोई काम करने वाला हो तो वह कर देना।
जुबान के जरिए से हमेशा अच्छी तरह पेश आना और खुशगवार तरीके से मिलना जुलना इंसाफ के साथ जिसका जो हूंकूक है उसको सही से अदा करना।
ये भी पढ़े : Islam Me Damad Ke Hukuk Sasural Per
इसके अलावा शौहर की रजामंदी से जिनका कोई हकूक नहीं है इनके साथ भी अच्छा सलूक करना एहसान के दर्जे में आता है और यह अल्लाह ताला को बहुत पसंद है।
और अल्लाह ताला ने हमें इस बात की तरगीब दी है।
शौहर के घर में मौजूद तमाम छोटे बच्चों की देखभाल करना और उनसे मोहब्बत से पेस आना और उनकी अच्छी तरबियत करना घर में अगर कोई यतीम और बेसहारा बच्चा हो तो उनकी हमदर्दी और खुलुस में कोई कमी ना छोड़े अपने लिए उन की निगरानी करना अपनी खुश किस्मती समझे।
सास ससुर और दूसरे बुजुर्ग की निगरानी करना
शौहर के मां बाप अगर ज्यादा उम्र के यानी कि बुजुर्ग है तो उनकी निगरानी करें उनका एहतराम करें सास ससुर मां बाप के बराबर है और उनको मां बाप ही समझे और उनकी खिदमत दिल से करें और उनकी दुआ हासिल करें।
यह बात याद रहे कि बुढ़ापे और बीमारी की वजह से इंसान का मिजाज चिडचिडा हो जाता है फिर उनकी किसी बात का बुरा मानने के बजाए फराख दिली और सूझ-बूझ से काम लेना चाहिए।
सास ससुर की खिदमत करने का एहसान न शौहर पर और ना किसी और पर लादे बल्कि यह अल्लाह की खुशी के लिए करें।
औरत चुकी अपने बच्चों की निगरान है इस लिए उसका यह भी फर्ज है की अपने बच्चों की तरबीयत में यह बात भी शामिल करें कि बच्चे अपनी दादा दादी चाचा चाची फूफा फुकी का अदब और एहतराम करें।
और उनकी वक्त जरूरत पर उनकी खिदमत करें।
बहू के लिए कुछ खास बातें
- ससुराली रिश्तेदार के मामले में औरत को कुछ बातों का ख़ास ख्याल रखना चाहिए।
- बीवी अपने शौहर को उसके करीबी रिश्तेदार के बारे में कोई तकलीफ न पहुंचाए।
- अपने खानदान को शौहर के खानदान से ऊंचा और अच्छा साबित करने की कोशिश न करें।
- शौहर के करीबी रिश्तेदार में कोई ऐब ढूंढने की कोशिश ना करें।
- शौहर अपने मां-बाप और करीबी रिश्तेदार पर जितना चाहे खर्च करें इस मामले में वह शौहर की रोक-टोक ना करें।
- शौहर के करीबी रिश्तेदार के आने पर ख़ुशी का इजहार करें और ऐसा ना दिखाएं कि वो यह समझे कि शायद उनका आना उनको अच्छा नहीं लगा।
- जो रिश्तेदार रिश्ता तोड़े तो वो शौहर से उनसे भी रिश्ता तोड़ने के लिए न कहे बल्कि उनसे रिश्ता जोड़ने की बात करें।
- आखिर में आप लोगों से यह उम्मीद है कि आप लोग यह सभी बातें अपनी जिंदगी में शामिल करेंगे और माशरे को बेहतर बनाने में मदद करेंगे।
इस मामले में कोई भी सवाल पूछना हो तो यहाँ darulifta-deoband पूछ सकते है।
अल्लाह ताला हम सब को समझने और अमल करने की तौफीक अता फरमाए
आमीन
Ye to sabko padhna chahie, bahot sahi bat hai
Beshaq itni pyari or sach bato ko koi jhutla nahi sakta
Itni pyari bato ko pad kar mujhe achacha laga or mujhe is baat ka elm hua ki maie kitna sahi hu or kitna galt
السلام علیکم But aap logo ne kahi p bhi hadees or Quran ka refrence nhi diya, agar Saas ka haq bahu p nhi h, thik h but Maa ka haq beta p h, bibi ka haq sohar p kitna h, aur Maa ka haq beta p kitna h, quran aur hadees ki roshni me bataye by refrence. Zajakallah khair
Islam k bare me Ye sari baatein sahi hai new generation ko bhi ye pta hai lekin old generation jo sas aur susar ban baithe hain unhe ispe amal krna to darkinar ye baat manne se bhi inkar krte hain aaj society me aise ilm ko kaise failaya jaye
Bahot Sukriya Shahansha Bhai
Bahot Sukriya Shahanshah Bhai