इस्लाम में अमानत की अहमियत क्या हैं

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क्या आप जानते हैं इस्लाम में अमानत की क्या अहमियत है और अमानत के बारे में इस्लाम में क्या कहा गया है। आज के इस आर्टिकल में हम लोग जानेंगे इस्लाम में अमानत के बारे में क्या कहा गया है तो आप लोग इस आर्टिकल को पूरा आखिर तक पढ़िए तभी आप जान पाएंगे अमानत का सही माने और इस्लाम में अमानत को इतना अहमियत क्यों दिया गया है।

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इस्लाम में अमानत क्या हैं


सूरह मोमिनून की इब्तेदायि आयातो मैं अल्लाह तआला ने फलाह पाने वाले मोमिनो की पहली सिफ़ात बयान है के वो अपनी नमाज़ो मैं ख़ुशू अख्तर करने वाले हैं।

दूसरी सिफ़ात ये बयान फरमाए के वो लोग बेहुदा कामो और बात से ऐराज़ करने वाले हैं।

तीसरी सिफ़ात ये बयान फरमाए के वो ज़कात का फ़रीज़ा अंजाम देते हैं और दूसरे ये के वो अपने अख़लाक़ का तज़किया करते हैं।

चौथी सिफत ये बयान फरमाए के वो अपनी शर्मगहो की हिफाजत करने वाले हैं, यानी अपनी अजमत और अस्मत का रहफफुज करने वाले हैं।

अमानत कुरान और हदीस में

फलाह के लिए ये जरूरी कर दिया गया है के इंसान अमानत में कोई ख्यानत ना करे, बाल्की अमानत को ठीक-ठीक उसी के अहल तक पहुंचाये,

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क़ुरआन-ए-करीम में अल्लाह तआला फरमाते है

إِنَّ اللَّهَ يَأْمُرُكُمْ أَن تُؤَدُّوا الْأَمَانَاتِ إِلَىٰ أَهْلِهَا (सूरह अन-निसा, वर्स 58)

यानि अल्लाह तआला हमें हुकम देते हैं के अमानतो को उनके मुस्तहिक लोगो तक पहूँचाओ।

आपस के लेन-देन के मामले में जो इखलाकी जौहर मरकजी हैसियत रखता है वह अमानत है. इस का मतलब यह है कि इंसान अपने कारोबार में ईमानदार हो और जो जिस का, जितना लिया हो, उस को पूरी इमानदारी से रत्ती-रत्ती दे दे. इसी को अरबी में अमानत कहते हैं।

ख़यानत को इस तरह बयान किया गया है कि अगर एक का हक़ दूसरे के ज़िम्मे वाजिब हो, उस के अदा करने में ईमानदारी न बरतें ख़यानत हैं। इस के अलावा अगर एक की चीज दूसरे के पास आमानत हो और वह उस में रद्दो-बदल करता है या मांगने पर वापस नहीं करता हो तो वह खुली हुई ख़यानत है।

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कुरान-ए-करीम में अमानत के बारे में क्या कहा हैं

यही वो अमानत है जिसका ज़िक्र अल्लाह ताला ने सूरह अहज़ाब के आखिरी रुकू में फरमाया है।

إِنَّا عَرَضْنَا الْأَمَانَةَ عَلَى السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَالْجِبَالِ فَأَبَيْنَ أَن يَحْمِلْنَهَا وَأَشْفَقْنَ مِنْهَا وَحَمَلَهَا الْإِنسَانُ إِنَّهُ كَانَ ظَلُومًا جَهُولًا

(सूरह अल-अहज़ाब, आयत 72)

फरमाया के अमानत को हमने आसमान पर और जमीन पर और पहाड़ो पर पेश किया के ये अमानत तुम उठा लो, तो उन सब ने अमानत को उठान से इनकार किया। ये हमारे बस का काम नहीं है, और डरे।

वो अमानत क्या थी ?
वो अमानत ये थी उन से कहा गया के हम तुम्हे अकल देंगे और समझ देंगे, तुम्हे जिंदगी देंगे और ये अकल, समझ और जिंदगी तुम्हारे पास हमारी अमानत होगी, और हम तुम्हें बता देंगे। फला काम में जिंदगी को खर्च करना है, और फला काम में खर्च नहीं करना है।

अगर तुम जिंदगी को हमारे अहम के मुताबिक इस्तेमाल करोगे तो तुम्हारे लिए जन्नत होगी और अगर हमारे अहम के खिलाफ इस्तेमल करोगे तो तुम्हारे लिए जहन्नम होगी और हमेशा का आजाब होगा।

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इंसान ने अमानत क़ुबूल कर ली

इसके बाद हमने अमानत इंसान पर पेश की तुम ये अमानत उठा लो, हदीस शरीफ़ में आता है के अल्लाह ता’आला ने आलम अज़ल में इन्सानो की तख्लीक़ से हज़ारो साल पहले उन तमाम रूहो को जो क़यामत तक पैदा होने वाली थी।

उन सब रूहो को जमा फरमाया, और हर रूह एक छोटी सी चींटी की शकल में सामने आई, और उस वक्त उनके सामने ये अमानत पेश की, के आसमान, जमीन और पहाड़ तो सब इस अमानत को उठान से इनकार कर गए, तुम ये अमानत लेतो हो।

जब इंसान ने क़ुबूल कर लिया तो ये अमानत उसके पास आ गई, लिहाज़ा ये ज़िंदगी अमानत है, ये जिस्म अमानत है, ये आज़ा अमानत है और उमर का एक-एक लम्हा अमानत है। अब जो इस अमानत का पास करेगा वो इंसान दुनिया और अखिरात दोनो जगह कामयाब है।

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यही वो अमानत है जिसका ज़िक्र कुरान-ए-करीम ने दूसरी जगह फरमाया:-

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَخُونُوا اللَّهَ وَالرَّسُولَ وَتَخُونُوا أَمَانَاتِكُمْ وَأَنتُمْ تَعْلَمُونَ

(सूरह अल-अनफाल, आयत 27)

ऐ ईमान वालो अल्लाह और उसके रसूल के साथ ख्यानत न करो के तुमने अल्लाह तआला से अमानत ली थी और अल्लाह के रसूल ने तुम्हे अमानत के बारे में बता दिया था, इस अमानत के खिलाफ खयानात न करो, और जो आमनाते तुम्हारे मौज़ूद है उनको ठीक-ठीक इस्तेमाल करो, अमानत का सबसे पहला मफ़हूम ये है।

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हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अमीन के लक़ब से मशहूर होना

नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नबुवत से पहले भी पूरे मक्का में “सादिक” और “अमीन ” के लक़ब से मशहूर थे। यानी आप सच्चे थे, आपकी ज़बान मुबारक पर कभी झूठ नहीं आता था। आप अमानत दार थे, जो लोग आपके पास अमानत रखवाते थे उनको पूरा भरोसा होता था नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अमानत का हक अदा करेंगे।


जब आप मक्का मुक़र्रमा से हिजरत फरमा रहे थे, उस वक्त ये आलम था के कुफ्फार ने ज़ुल्मो सीताम के पहाड़ तोड़े हुए थे, आपके खिलाफ कत्ल के मनसोबे बनाये जा रहे हैं, इस हालत में रात के वक्त आपको शहर मक्का से निकलना पड़ा। उस वक्त भी आपको ये फिकर थी के मेरे पास लोगो की जो अमानते राखी हुई है।

उनको अगर पहुंचुंगा तो ये राज खुल जाएगा के मैं यहां से जा रहा हूं, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को सारी अमानते सुपुर्द फरमाई और उनको अपने बिस्तर पर लिटाया और उनसे फ़रमाया के मैं जा रहा हूं, तुम ये अमानते उनके मालिको तक पहंचाओ, और जब काम से फारिक हो जाओ तो फिर हिजरत कर के मदीना मुनव्वरा आ जाना।

वो लोग जो आपके खून के प्यासे थे जो आपके साथ दुश्मनी का मामला कर रहे थे, उनकी अमानतो को भी उन तक वापस पहुंचने का इंतेजम फरमाया। क्योंकि आप सल्लललाहू अलैहिवसल्लम अपने कारोबार में दयानतदार थे, और जो लोग, जो कुछ आप सल्लललाहू अलैहिवसल्लम. के पास रखवाते थे, वो आप सल्लललाहू अलैहिवसल्लम ज्यों का त्यों वापिस करते थे।

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अल्लाह ताला से करीब करने वाले आमाल

हदीस:  हज़रत समराह (रजि.) ने फ़रमाया हम दरबार-ए-नबूवत में हाज़िर थे के एक शख्स हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया “ या रसूलअल्लाह अल्लाह ताला से करीब करने वाले आमाल कौन सा हैं ? ”आप सल्लललाहू अलैहिवसल्लम ने फ़रमाया  “सच बोलना और अमानत का अदा करना”

हम ये जान लें कि अमानत का दायरा सिर्फ रूपये-पैसे, जायदाद और माली अशिया ( चीजों) तक महदूद नहीं हैं. जैसा कि आम लोग समझते हैं. बल्कि हर मआली, कानूनी और इखलाकी अमानत तक वसीअ (फैला हुआ) है. अगर किसी की कोई चीज़ आप के पास रखी है, तो उसके माँगने पर या यूँ भी उसको ज्यों का त्यों दे देना अमानत है।

अगर किसी का कोई हक़ आप पर बाक़ी है तो इसको अदा करना भी अमानत है. किसी का कोई भेद आपको मालूम है तो उसको छुपाना भी अमानत है. किसी मजलिस में आप हों और कुछ बातें आप दूसरो के मुताल्लिक सुन लें वो बातें ऐसी हों जिसको दूसरों तक पहुंचाने पर फितना और फसाद बरपा हो सकता है, तो उसको मजलिस तक महदूद रखना अमानत है. इसके अलावा अगर किसी से कोई मशवरा भी लिया जाए तो उस को चाहिए कि वह अपनी राय ईमानदारी से दे।

अमानत में ख़यानत करना आप स. ने नफाक़ की निशानी बताई है, हदीसो में अमानत के बहुत से हिस्सों को एक-एक कर के गिनाया गया है और बहुत सी ऐसी बारीक़ बातें जिन को हम लोग अमानत के ख़िलाफ़ नहीं समझते वह अमानत के ख़िलाफ़ बताया गया है।

लेकिन अगर हम गौर करें तो हमे खुद महसूस होगा कि एखलाक के रु से वो यक़ीनी तौर से अमानत के ख़िलाफ़ जैसे कि अगर कोई किसी काम पर नौकर है तो उसको उस नौकरी के शरायत के मुताबिक अपनी जिम्मेदारी महसूस करके उसे अंजाम दे तो वो भी अमानत है।

यानि जिसको जिस काम के काबिल समझ कर रखा जाये वह उसकी काबिलियत का सबूत दे और उसको पूरी ईमानदारी के साथ अंजाम दे, इस के अलावा अगर एक आदमी जो छः घंटे का नौकर हो, वह एक दो घंटे सुस्ती से चुपके-चोरी बेकार बैठा रहे या कोई आदमी खुद को किसी काम के काबिल बना कर कोई नौकरी हासिल कर ले. जब कि आम लोग इस को ख़यानत का मुर्तकिब नहीं समझते, लेकिन इस्लाम की नज़रों में वो अमीन नहीं हो सकता।

इसके अलावा किसी का दोस्त हो कर ईमानदारी से दोस्ती ना निभाना भी ख़यानत है, दिल में कुछ रखना और जुबां से कुछ कहना और अमल से कुछ और साबित करना भी ख़यानत है, शौहर-बीवी का एक-दूसरे के लिए वफादार न होना भी ख़यानत की निशानी है ( हजरत नूह अ. और हजरत लूत अ. की बीवियों ने अपने मुक़द्दस शोहरों से बेवफ़ाई की, उन की बेवफ़ाई यह थी कि वह दिल से अपने शोहरों पर ईमान नहीं लाईं और काफिरों का साथ देतीं रहीं )

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क़ुरान में फ़रमाया अमानत क्या हैं

इस्लाम की इखलाकी शरीयत में ये सारी ख़यानतें यकसां ममनू  (मना) हैं. क़ुरान में फ़रमाया “ ऐ ईमान वालों ! अल्लाह और उसके रसूल की ख़यानत ना करो और ना आपस की अमानतों में जान-बूझ कर बदनीयती करो ” अल्लाह और उसके रसूल के साथ ख़यानत ये है कि इक़रार कर के पूरा ना किया जाये, ईमानदरी से उन के हुक्मों की तामील ना की जाये , दीन और मिल्लत के मसले के साथ गद्दारी की  जाए, क्योंकि पूरी शरीयत एक खुदाई अमानत है. जो हम इंसानों के सुपुर्द हुई है. इसलिए हमारा फ़र्ज़ है कि हम इसके मुताबिक अपने मालिक का पूरा हक अदा करें वरना हम मुनाफ़िक़ होंगे।

एक हदीस में नबी करीम आप सल्लललाहू अलैहिवसल्लम ने इरशाद फरमाया कि मुनाफिकों की तीन निशानियाँ हैं

  1. झूट बोलने वाला
  2. वादा खिलाफी करने वाला
  3. अमानत में खयानत करने वाला

ये जिंदगी और जिस्म अमानत है

सबसे पहली चीज जो अमानत के अंदर दखिल है वो हमारी “जिंदगी” है, ये हमारी जिंदगी जो हमारे पास है, इसी तरह हमारा पूरा जिस्म सर से ले कर पैर तक ये अमानत है।
हम जिस्म के मालिक नहीं हैं, अल्लाह ताला ने जिस्म जो हमें अता किया हैं और ये आजा जो हमें अता किया हैं, ये आंखे जिनसे हम देखते हैं, ये कान जिनसे हम सुनते हैं। ये नाक जिनसे हम सूंघते हैं, ये मुँह जिनसे हम खाते हैं, ये जुबान इससे हम बोलते हैं, ये सब अल्लाह तआला की अमानत है।
बताओ क्या तुम ये आजा कहीं बाजार से ख़रीद ले गए थे? बाल्की अल्लाह तआला ने बगेर किसी मु’अव्ज़ के और बगेर किसी मेहनत और मशक्कत के पैदा होने के वक्त से हमें दे दिए हैं।
इन , आजा को इस्तमाल करने की तुम्हे खुली इजाजत है, अलबत्ता इन आजा को हमारी मांअसियत और गुनाह में मत इस्तेमाल करना।

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वक़्त एक अमानत है

इसी तरह जिंदगी के ये लम्हात जो गुजर रहे हैं, इसका एक-एक लम्हा अल्लाह ताला की अमानत है। इन लम्हात को ऐसे काम में खर्च करना है जो दुनिया के लिहाज़ से ये अखिरत के लिहाज़ से फायदेमंद हो और जो काम अल्लाह तआला के अहम के मुताबिक हो।
आगर इन लम्हात को इसके खिलाफ कामो मैं खर्च करेंगे तो अमानत में खयानत हो जाएगी।

लिहाज़ा अगर हमें ये यकीन हो कि एक ज़ात है कि जो हमारी चोरी-छिपे की हर हरकत से वाकिफ रहती है, तो फिर इन्सान को किसी किस्म कि खयानतकारी  जुर्रत न होगी. इस्लाम के इसी यकीन को पैदा करके खायानातों से बचा जा सकता है।

अल्लाह रब्बुल इज्ज़त से दुआ है की इन सभी गुनाहों से हम सब की पूरी पूरी हिफाज़त फरमाए और ख़ुदा न खास्ता अगर गुनाह हो जाये तो तौबा की तौफीक अता फरमाए अमीन।

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