क्या अब भी बेटा बेटी में फ़र्क होता है | Beta Aur Beti Me Fark

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बेटा और बेटी में फर्क | Beta Aur Beti Me Fark
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कहने को तो हमारा समाज बहुत तरक्की कर चुका है लेकिन कुछ मायनों में वह अभी भी बहुत पीछे हैं। जैसे हमारे समाज की एक बहुत बड़ी बुराई है कि उसमें Beta Aur Beti Me Fark किया जाता है। ये बात तो गलत है मगर लोग कहा मानने वाले।

क्या क्या फर्क होता है और इसको हम अपने स्तर से कैसे सही कर सकते है जानने के लिए पुरा आर्टिकल आख़िर तक ज़रूर पढ़िए। और साथ ही हमारी इस मुहिम में मदद करने के लिए कम से कम एक लोग के साथ शेयर ज़रूर करें।

बेटे को हर मायने में अच्छा समझा जाता है और बेटी को हर मायने में कमतर समझा जाता है बेटे की शिक्षा में कभी पैसों का हिसाब नहीं रखा जाता है लेकिन बेटी की शिक्षा के लिए उसे हमेशा पैसों का हिसाब देना पड़ता है|

बेटे को हर आजादी दी जाती है लेकिन बेटी को बचपन से ही उस की हद ए बता दी जाती हैं यह धारणा बहुत ही गलत है कोई समाज तभी तरक्की कर सकता है जब उसमे बेटा और बेटी में फर्क xनहीं किया जाएगा

समाज में बेटियों की स्थिति

बेटा और बेटी दोनों ही कल का भविष्य है। बेटियों को बचपन से ही एहसास दिलाया जाता है कि वह बेटियां हैं उन्हें हर चीज में नीचा दिखाया जाता है उन्हें बोझ होने का अहसास दिलाया जाता है

ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए आज बेटियां किसी भी चीज में पीछे नहीं है कोई भी चीज हो चाहे वह खेल हो कुश्ती हो डॉक्टर हो वकील हो साइंटिस्ट हो कुछ भी हो लड़कियां पीछे नहीं है लेकिन समाज में लोग उन्हें हमेशा पीछे ही करते हैं जिसे आप को रोकना होगा।

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एक बेटा भाग्य से होता है पर

Beta Aur Beti Me Fark करके बेटों को कुल का चिराग बताया जाता है लेकिन लड़कियों को पराया धन कहा जाता है मां-बाप हमेशा लड़कियों को यही कहते हैं कि वह पराया धन है

हमारे बुढ़ापे का सहारा तो हमारा बेटा ही है लेकिन यह बात बिल्कुल गलत है बेटियां मां-बाप का ज्यादा ख्याल रखती हैं जहां एक और बेटियों को लक्ष्मी का रूप बताया जाता है वहीं दूसरी ओर उन्हें दहेज की लालच में जलाया जाता है।

बेटा बेटी में फर्क कभी ना करें

मैं आपको एक सच्ची घटना बता रही हु। हमारे पड़ोस में एक बुजुर्ग दंपत्ति रहते थे उनके तीन बेटे बेटियां थी उस बुजुर्ग दंपत्ति ने अपने तीनों बेटों को अच्छी शिक्षा दी उन्हें कभी किसी प्रकार की कमी नहीं होने दी

जब वह बुजुर्ग दंपत्ति अपने आख़िरी वक्त पर पहुंचे तो उनके बेटों में आपस में झगड़ा होने लगा कि मां पापा को तुम रखो दूसरा बेटा बोलता तुम रखो तीसरा बेटा बोलता तुम रखो है तीनों आपस में झगड़ा करने लगते हैं

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जब यह बात उनकी बेटी को पता चलती है तो उसे बहुत ही दुख होता है `वह तुरंत अपने मां बाप के पास आती है और उन्हें अपने साथ ले कर चली जाती है या बात देख कर उस बुजुर्ग दंपत्ति को बहुत ही अफसोस होता है कि

जिस बेटी के साथ हमने हमेशा भेदभाव किया आज वही हमारे बुढ़ापे का सहारा बनी और जिन बेटों पर हमें बड़ा ही गर्व था वह किसी काम के नहीं निकले इस घटना से हमें या सीख मिलती है की

कभी भी Beta Aur Beti Me Fark नहीं करना चाहिए बेटियां ही अपने मां बाप का अक्सर ज्यादा ख्याल रखती हैं।

बेटा शान है तो बेटी आन है

हमारे समाज में कहा जाता है कि बेटा शान होता है और बेटी आन होती है लेकिन इस बात को कहां तक मान्यता दी जाती है हमारे समाज में केवल लड़कों को ही महत्वपूर्ण को समझा जाता है

बेटी को केवल बोझ की समझा जाता है केवल समाज में दिखावे के लिए ही बेटियों को महत्त्वता दी जाती है बस दिखावे के लिए ही दिया जाता है जबकि बेटा और बेटी में फर्क किया जाता है

कहा जाता है कि बेटी आन है बेटों को इस प्रकार से अच्छा समझा जाता है प्राचीन समय से लेकर अब तक बेटियों की स्थिति में कोई खास प्रकार का बदलाव नहीं हुआ है उन्हें बचपन से ही बेटी होने का एहसास लाया जाता है हमें या याद रखना चाहिए कि बेटा और बेटी समान होते हैं

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बेटी से ही आबाद हैं, सबके घर-परिवार

बेटियों का हक

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हर युग में बेटियों के साथ बेटा और बेटी में फर्क किया गया है हमेशा से ही बेटा और बेटी में पर किया जाता है इसी के साथ हर धर्म में भी बेटियों को बेटो कि तुलना में कम ही बताया गया है।

बल्कि उन्हें समाज में तुझ समझा गया है उन्हें हर मुसीबत की जड़ समझा गया है उन्हें केवल वासना की मशीन समझा गया एक लंबा युग बेटियों पर ऐसे ही बीता कि वो अपने सारे अधिकारों से पूर्ण रूप से वांजित रही लेकिन यह इस्लाम कि भूमिका है जिसने बेटियों को बेटो के समान अधिकार दिया

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भारत में बेटियों की स्थिति

भारत में Beta Aur Beti Me Fark सदियों से होता आ रहा है। यहा के कई हिस्सों में बेटियों के जन्म का स्वागत नहीं किया जाता है, एक बात यह कि लड़कियों के जन्म से पहले ही भेदभाव शुरू हो जाता है

और कभी-कभी उन्हें एक भ्रूण के रूप में मार दिया जाता है, और अगर वह दिन के उजाले को देख पाती है, तो उसे एक शिशु के रूप में मार दिया जाता है, देश भर में कई लड़कियों को स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है

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बेटियां सभी के नसीब में कहाँ होती हैं

पुरुषवादी सोच ने महिलाओं को पुरुषों से कमतर साबित किया है। एक लड़की को एक बोझ माना जाता है और अक्सर उसे दुनिया की रोशनी देखने की अनुमति भी नहीं दी जाती है।

21 वीं सदी में इस स्थिति की कल्पना करना कठिन है जब महिलाएं हर क्षेत्र में मजबूत साबित हुई हैं। कुश्ती से लेकर व्यापार तक, दुनिया में असाधारण महिला नेताओं द्वारा उन क्षेत्रों में क्रांति ला दी गई है जहां हाल ही में पुरुषों द्वारा पूरी तरह से हावी थे।

कन्या भ्रूण हत्या कानूनन जुर्म

लेकिन इतनी प्रगति के बावजूद, आज भी अधिकांश भारतीय घरों में बेटा और बेटी में फर्क किया जाता है। एक बेटे के जन्म का जश्न बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन एक लड़की के जन्म को निराशा के भाव से जोड़ दिया जाता है ।

गर्भपात के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या कानूनन जुर्म होने के बावजूद जारी है। भारत में बाल लिंग अनुपात सबसे कम है, जो कि हर 1000 लड़कों के लिए सिर्फ 914 लड़कियों के साथ है (जनगणना, 2011)।

और यह भेदभाव हर सूरत में जारी है। शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो, सुरक्षा हो या भागीदारी हो, बालिकाओं के साथ हमेशा असमान व्यवहार किया जाता है।

भारतीय समाज अभी भी बेटियों को सशक्त बनाने के महत्व के प्रति बहुत अधिक जागृत नहीं हुआ है। आंकड़े अभी भी कन्या भ्रूण हत्या, बालिका भेदभाव, और लिंग पूर्वाग्रह की एक गंभीर कहानी बताते हैं।

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बेटियों का बाल विवाह

दुनिया में हर 3 बाल वधुओं में से 1 भारतीय लड़की है (यूनिसेफ) भारत में 15 साल से कम उम्र की 45 लाख से अधिक लड़कियां हैं, जिनका बल विवाह हुआ है । इनमें से 70% लड़कियों के 2 बच्चे हैं (जनगणना 2011)


समय की जरूरत समाज की मानसिकता में बदलाव लाने और बालिकाओं के भविष्य को नुकसान पहुंचाने वाली सोच को ख़त्म करने की है। बेटा और बेटी में फर्क के इस मुद्दे को मिटाने के लिए समाज को संवेदनशील बनाने के लिए एक ठोस प्रयास की आवश्यकता है।

यह वह समय है कि प्रत्येक बच्चे के साथ समान व्यवहार किया जाये और उसकी पूरी क्षमता को बढ़ने के लिए आवश्यक हर अवसर दिया जाये

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जरूरी नहीं रौशनी चिरागों से ही हो

हमारा उद्देश्य ऐसी दुनिया बनाना है जहाँ पर लड़कियों को उनका पूरा हक़ दिया जाये जहाँ उसे अध्ययन करने, विकसित होने और अपने लड़को के समान समृद्ध होने के का बराबर अवसर मिले ।

एक ऐसी दुनिया जहाँ एक बेटी का जन्म भी एक लड़के के समान धूमधाम से मनाया जाये

परिवार के बड़े बुजुर्ग की सोच

परिवार के बुजुर्गों का मानना है कि बेटियों की आखिरकार शादी करनी पड़ती है और उनकी शिक्षा पर ज्यादा खर्च करने का कोई मतलब नहीं है।

दूसरी ओर, लड़कों के लिए शिक्षा को एक निवेश के रूप में देखा जाता है क्योंकि उन्हें भविष्य में परिवार के “कमाऊ सदस्य” के रूप में देखा जाता है।

लड़कियों को केवल घर के काम करने के लिए फिट माना जाता है। बेटा और बेटी में फर्क ऐसी मानसिकता है जिसे बदलने की आवश्यकता है ताकि लड़कियों को जीवन में सीखने और बढ़ने के उनके अवसर से वंचित न किया जाए।

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भारत में लैंगिक भेदभाव को दूर करने के लिए लड़कियों को कैसे शिक्षित किया जा सकता है
शिक्षा एक बहुत शक्तिशाली उपकरण है जिसके माध्यम से व्यक्ति जीवन में इसे बड़ा बना सकता है।

जब बच्चे स्कूल जाते हैं और अच्छी तरह से सीखते हैं, तो वे अपनी समझ और समस्या को सुलझाने के कौशल का निर्माण करते हैं और जीवन में सही निर्णय लेने में सक्षम होते हैं।

बेटी एक जिम्मेदार नागरिक

बेटियां एक परिपक्व और जिम्मेदार नागरिक के रूप में विकसित हो सकती हैं जो अपने और समाज के कल्याण में बेहतर योगदान दे सकती हैं। लेकिन यह एक दुखद सच्चाई है कि भारत में बेटियों को सीखने के मौके से वंचित रखा जाता है।

बेटा और बेटी में फर्क भारतीय समाज में एक बहुत बड़ी कमी है जिसे अब रोकने की जरूरत है। जब लड़कियों को शिक्षित किया जाता है, तो लाभ भी बेहतर होता है और घर की एक शिक्षित, पढ़ी-लिखी महिला यह सुनिश्चित करती है कि अन्य सदस्य (विशेषकर उसके बच्चे) अच्छी शिक्षा से वंचित न हों।

बेटियों की शिक्षा का महत्व

जब बेटियां को सही शिक्षा मिलती है, तो वे जीवन में एक अच्छी शुरुआत प्राप्त करती हैं और शिक्षित महिला बन जाती हैं, जो आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं और अपने खुद के साथ-साथ समाज के योगदान के लिए सही रूप से तैयार रहती है|

शिक्षित लड़कियां और महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर आगे बढ़ सकती हैं और किसी भी तरह से पीछे नहीं रहतीं। बाल विवाह, मातृ मृत्यु दर, घरेलू हिंसा और

अन्य महिलाओं से संबंधित मुद्दों का मुकाबला करने के लिए शिक्षा काफी महत्वपूर्ण है। जिससे की बेटा और बेटी में फर्क काम किया जा सकता है

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निष्कर्ष

भारत में लिंग भेदभाव एक वास्तविकता है जिसे आसानी से अनदेखा नहीं किया जा सकता है। लोगों की मानसिकता में बदलाव लाना इस भेदभाव को खत्म करने की कुंजी है। हमारी बेटियों को बेटों के समान अवसर मिले |

सरकार की प्रमुख योजना “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” इसे सुनिश्चित करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करेगी। हम भारत सरकार के “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” अभियान का पूर्ण समर्थन करते हैं, और बेटा और बेटी में फर्क का विरोध करते है