नमाज़ के लिये वुज़ू शर्त है। बिना वज़ू के नमाज़ होती ही नहीं बल्कि जान बूझ कर बिना वुज़ू किये नमाज़ अदा करने को उलमा कुफ्र लिखते हैं।
एक मुस्लमान के लिए Wazu ka Tarika सुन्नत के मुताबिक जानना और उस पर अमल करना बहोत ही जरुरी है। जब तक आप का वज़ू दुरुस्त नहीं होगा तो कोई भी इबादत सही नहीं हो सकती। लिहाज़ा मुसलमान होने के नाते वुज़ू के बारे में पूरी जानकारी होना हम पर फ़र्ज़ है।
वैसे तो हैं सभी को वज़ू कैसे करना है ये हमें बचपन से पता है लेकिन कभी कभी छोटी भूल या गलती हमारा वजू नाकिस करने के लिए काफी है।
इसलिए जिसको वज़ू का तरीका पता है वो भी एक बार वज़ू का पूरा तरीका दोहरा ले जिससे की गलती की गुंजाइस ही न रहे। ये इस लिए भी की ये हमारी इबादत का सवाल है।
नमाज़ के आलावा कुछ दूसरी इबादतें भी बिना वुज़ू के नहीं की जा सकती। वुज़ू से मुताल्लिक़ सभी ज़रूरी बातें यहाँ से हासिल कर सकते हैं।
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वुज़ू की ज़रूरत
वज़ू अपने आप में मुस्तकिल एक इबादत है अगर कोई इबादत करने का इरादा न भी हो सिर्फ हाथ पैर धोना मकसद हो तो भी आप वज़ू की नियत कर के पूरा वज़ू कर ले जिससे आप का हाथ पैर भी धुल जायेगा और वज़ू का सवाब अलग से मिलेगा।
इसके आलावा वज़ू, दूसरी इबादत करने का आगाज़ भी होता है। जान बूझ कर बग़ैर वुज़ू नमाज़ अदा करने को उलमा कुफ्र लिखते हैं।
यह इसलिए कि उस बेवुज़ू नमाज़ पढ़ने वाले ने इबादत की बेअदबी और तौहीन की। रसूल सल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि जन्नत की कुंजी नमाज़ है और नमाज़ की कुंजी तहारत है।
क़ुरआन और हदीस मे वुज़ू के बहुत से फ़ज़ाइल बयान हुए हैं। अल्लाह तआला का इरशाद है
یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡۤا اِذَا قُمْتُمْ اِلَی الصَّلٰوۃِ فَاغْسِلُوۡا وُجُوۡہَکُمْ
وَاَیۡدِیَکُمْ اِلَی الْمَرَافِقِ وَامْسَحُوۡا بِرُءُ وۡسِکُمْ وَ اَرْجُلَکُمْ اِلَی الْکَعْبَیۡ
(ऐ ईमान वालो जब नमाज़ को खड़ा होना चाहो तो अपना मुँह धो
और कोहनियों तक हाथ और सिरों का मसह करो और गट्टों तक पैर धो)
(अल माईदा, आयत 6)
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वुज़ू का तरीक़ा
अब हम आप को Wazu ka Tarika मुक्कमल तरीका Step by Step बतायेगे।
नियत करना
बगैर नियत के कोई भी इबादत नहीं होती। दिल का इरादा ही नियत है। ज़बान से कहना जरुरी नहीं है।
बिस्मिल्लाह पढ़ना
जब आप वुज़ू का इरादा यानि नीयत करें तो सबसे पहले बिस्मिल्लाह पढ़ें।
हाथ धोना
दोनों हाथों को गट्टों तक तीन-तीन बार धोएं। पहले दाहिना हाथ धोएं फिर बायाँ हाथ।
कुल्ली करना
तीन बार खूब अच्छी तरह कुल्ली करें कि हलक़, दाँतों की जड़ों और बीच की दरारों में पानी बह जाए, अगर तालुए में या दाँतों में कोई चीज़ चिपकी या अटकी हुई हो तो उसे ज़रूर साफ़ करें।
अगर आप रोज़े से हो तो ध्यान रखे की पानी हलक से निचे न उतरे।
मिस्वाक करना
मिस्वाक करना सुन्नत है। मिस्वाक करके नमाज़ पढ़ने का सत्तर गुना ज़्यादा सवाब है।
मिस्वाक दाहिने हाथ से करें, पहले दाहिने तरफ़ के ऊपर के दाँत माँझें फिर बाईं तरफ़ के ऊपर के दाँत फिर दाहिनी तरफ़ के नीचे के दाँत और फिर बाईं तरफ़ के नीचे के दाँत।
अगर आप के पास मिस्वाक नहीं हो तो उगली से दांत साफ़ करे। आप के पास दांत साफ़ करने का ब्रश हो तो उससे भी साफ कर सकते है। लेकिन ये याद रहे मिसवाक करना सुन्नत है हो सके तो मिस्वाक ही इस्तेमाल करे।
नाक में पानी चढ़ाना
दाहिने हाथ से तीन बार नाक में पानी इस तरह चढ़ाएं कि अंदर नरम हड्डी तक पहुँच जाए। बाएं हाथ से नाक अच्छी तरह साफ़ करें और ऊगली नाक के दोनों तरफ डालें।
नाक साफ़ करते वक्त ध्यान रखे कि किसी के ऊपर ना जाए और जो गन्दगी निकली है उसको पानी से जरूर बहा दे अगर कही और दीवार वगैरह में लग गई हो तो उसको साफ़ जरूर कर दे। जिससे बाद में वज़ू करने वाले को दिक्कत न हो।
मुँह धोना
दोनों हाथों में पानी लेकर मुँह इस तरह धोएं कि माथे के ऊपर से (जहाँ से सिर के बाल शुरू होते हैं) ठोरी के नीचे तक और एक कान की लौ से लेकर दूसरे कान की लौ तक पूरे चेहरे पर पानी बहाये।
सिर्फ़ तेल की तरह मल देने से वुज़ू नहीं होगा। मुँह धोते वक्त दाढ़ी का ख़िलाल भी करें अगर इहराम बंधा हो तो न करें। ख़िलाल का तरीक़ा यह है कि उंगलियों को दाढ़ी में गले की तरफ़ से ऐसे फेरें जैसे कंघा करते हैं।
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हाथ कोहनियों तक धोना
अब दाहिना हाथ कोहनियों तक धोंए। अगर कोई अँगूठी, चूड़ी या कड़ा वग़ैरा इतना कसा हुआ पहना है कि उसके नीचे से पानी बहना मुश्किल है तो उन्हें हिलाकर वहाँ पानी बहाए क्युकि पानी बहाना फ़र्ज़ है, बाल बराबर भी सूखा रह गया तो वुज़ू नहीं होगा।
फिर इसी तरह बायाँ हाथ कोहनियों तक धोंए।
सिर का मसह करना
चौथाई सिर का मसह फ़र्ज़ है और पूरे का सुन्नत। मसह करने का सही तरीक़ा यह है कि
अँगूठे और शहादत की उंगली (Index finger) के सिवा एक हाथ की बाक़ी तीन उंगलियों का सिरा दूसरे हाथ की तीन उंगलियों के सिरे से मिलायें और माथे के ऊपरी सिरे पर रख कर गुद्धी तक इस तरह ले जायें कि हथेलियाँ सिर से अलग रहें, वहाँ से हथेलियों से मसह करते हुए वापस लायें।
कान का मसह करना
शहादत की उंगली के आगे वाले हिस्से से कान के अन्दरूनी हिस्से का मसह करें और अँगूठे के आगे वाले हिस्से से कान के बाहरी हिस्से का।
गर्दन का मसह
उंगलियों के पीछे के हिस्से से गर्दन का मसह करें।
पाँव धोना
पाँवों को टखनों तक धोना फ़र्ज़ है और बेहतर यह है कि आधी पिंडलियों तक धोएं और उंगलियों का ख़िलाल करे पाँव की उंगलियों का खि़लाल बायें हाथ की छोटी चुंगली से इस तरह करें कि दाहिने पाँव में चुंगली से शुरू करें और अँगूठे पर ख़त्म करें।
इसी तरह बायें पाँव को भी धोएं और उंगलियों का ख़िलाल अँगूठे से शुरू करके छोटी पर ख़त्म करें। अगर बिना ख़िलाल किये पानी उंगलियों के अन्दर से न बहता हो तो खि़लाल फ़र्ज़ है।
वुज़ू के बाद आसमान की तरफ मुँह उठाकर दूसरा कलमा और यह दुआ पढें।
اَللّٰھُمَّ اجۡعَلۡنیۡ مِنَ التَّوَّابِیۡنَ وَاجۡعَلۡنِیۡ مِنَ الۡمُتَطَہِّرِیۡنَ
(ऐ अल्लाह तू मुझे तौबा करने वालों और पाक लोगों में कर दे)
वुज़ू के फ़र्ज़
वुज़ू में चार फ़र्ज़ हैं, इनका ध्यान रखना बहुत ही ज़रूरी है अगर एक भी फ़र्ज़ छूट गया या सही तरह से नहीं हुआ तो वुज़ू नहीं होगा और जब वजू नहीं हुआ तो उसके बग़ैर नमाज़ भी नहीं हो सकती।
वज़ू के फ़र्ज़ इस तरह है।
- मुँह धोना यानि माथे पर बाल निकलने की जगह से ठोरी के नीचे तक और एक कान के किनारे से दूसरे कान के किनारे तक पूरा चेहरा इस तरह धोना कि बाल बराबर भी कोई जगह सूखी न रह जाए, वरना वुज़ू नहीं होगा।
- कोहनियों समेत दोनों हाथों को धोना।
- सिर का मसह करना यानि भीगा हुआ हाथ फेरना।
- टख़नों समेत दोनों पाँवों का धोना।
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वुज़ू के मुताल्लिक़ ज़रूरी मसाइल
- किसी उज़्व (Body Part) के धोने का यह मतलब है कि इस उज़्व के हर हिस्सा पर कम से कम दो बूँद पानी बह जाये।भीग जाने या तेल की तरह पानी मलने लेने या एक-आध बूँद बह जाने को धोना नहीं कहेंगे ना इस से वुज़ू अदा होता है इस का लिहाज़ बहुत ज़रूरी है।
- बदन में कुछ जगहें ऐसी हैं कि जब तक उन का ख़ास ख़्याल ना किया जाये उन पर पानी नहीं बहेगा जिसकी तफ्सील (explaination) हर उज़्व में बयान की जाएगी।
- कुछ जगह या हालात ऐसे होते हैं जब उज़्व को धो नहीं सकते वहाँ पर हाथ गीला करके तरी पहुंचाई जाती है जिसे मसह कहते हैं।
अब जरुरी उज़्व (Body Part) की तफ्सील के बारे में बताया गया है।
मुँह धोने की तफ्सील
- शुरू पेशानी (यानि माथे पर जहां से बाल ख़त्म हो जाते हैं) से ठोढ़ी तक लंबाई में और चौड़ाई में एक कान से दूसरे कान की लौ तक मुँह धोने में दाखिल है। इस हद के अंदर जिल्द (skin) के हर हिस्सा पर एक बार पानी बहाना फ़र्ज़ है।
- जिसके सिर के अगले हिस्सा के बाल गिर गए या जमे नहीं इस पर वहीं तक मुँह धोना फ़र्ज़ है जहां तक अकसर बाल होते हैं और अगर अकसर जहां तक बाल होते हैं उससे नीचे तक किसी के बाल जमे तो उन बालों का जड़ तक धोना फ़र्ज़ है।
- मूँछों, भवों या बच्ची (यानी वो बाल जो नीचे के होंट और ठोढ़ी के बीच में होते हैं।) के बाल इतने घने हों कि खाल बिल्कुल ना दिखाई दे तो जिल्द का धोनाफ़र्ज़ नहीं बालों का धोना फ़र्ज़ है और अगर इन जगहों के बाल घने ना हों तो जिल्द का धोना भी फ़र्ज़ है।
- अगर मूँछें बढ़कर होंटों को छुपा लें तो मूँछें हटा कर होंटों का धोनाफ़र्ज़ है चाहे मूँछें घनी हों या न हो।
- दाढ़ी के बाल अगर घने ना हों तो जिल्द का धोनाफ़र्ज़ है और अगर घने हों तो गले की तरफ़ दबाने से जितने चेहरे के घेरे में आएं उनका धोना फ़र्ज़ है।
- जड़ों का धोना फ़र्ज़ नहीं और जो घेरे के बाहर हों उनका धोना भी ज़रूरी नहीं और अगर कुछ हिस्से में घने हों और कुछ छिदरे, तो जहां घने हों वहां बाल और जहां छिदरे हैं इस जगह जिल्द का धोना फ़र्ज़ है।
- होंटों का वो हिस्सा जो आदतन होंट बंद करने के बाद ज़ाहिर रहता है, इस का धोना फ़र्ज़ है तो अगर कोई ख़ूब ज़ोर से होंट बंद करले कि उसमें का कुछ हिस्सा छिप गया और इस पर पानी ना पहुंचा, ना कुल्ली की कि धुल जाता तो वुज़ू नहीं हुआ, लेकिन वो हिस्सा जो आदतन मुँह बंद करने में ज़ाहिर नहीं होता उस का धोना फ़र्ज़ नहीं।
- गाल और कान के बीच में जो जगह है जिसे कनपटी कहते हैं इस का धोना फ़र्ज़ है लेकिन इस हिस्से में जितनी जगह दाढ़ी के घने बाल हों वहां बालों का और जहां बाल नहीं हों या घने नहीं हों तो जिल्द का धोना फ़र्ज़ है।
- नथ का सुराख़ अगर बंद ना हो तो इस में पानी बहाना फ़र्ज़ है अगर तंग हो तो पानी डालने में नथ को हिला दे वर्ना ज़रूरी नहीं।
- आँखों के ढैले और पपोटों के अंदरूनी हिस्सों को धोने की कुछ ज़रूरत नहीं बल्कि धोना नहीं चाहिये यह नुक़्सानदेह है।
- आँख के ऊपर पर पानी बहाना फ़र्ज़ है मगर सुर्मे का रँग ऊपर या पलक में रह गया और वुज़ू कर लिया और मालूम नहीं हुआ और नमाज़ पढ़ ली तो हर्ज नहीं नमाज़ हो गई, वुज़ू भी हो गया और अगर मालूम है तो उसे छुड़ा कर पानी बहाना ज़रूरी है।
- पलक का हर बाल पूरा धोना फ़र्ज़ है अगर इस में चीपड़ वग़ैरा कोई सख़्त चीज़ जम गई हो तो छुड़ाना फ़र्ज़ है।
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हाथ धोने की तफ्सील
हाथ की तफ्सील में कुहनियाँ भी दाखिल हैं। अगर कुहनीयों से नाख़ुन तक कोई जगह ज़र्रा बराबर भी धुलने से रह जाएगी तो वुज़ू नहीं होगा।
- हर किस्म के गहने, छल्ले, अँगूठीयां, ब्रेसलेट (एक ज़ेवर जो कलाई में पहना जाता है), कंगन, कांच, लाख वग़ैरा की चूड़ियां, रेशम के लच्छे वग़ैरा अगर इतने तंग हों कि नीचे पानी ना बहे तो उतार कर धोना फ़र्ज़ है।
- और अगर सिर्फ हिला कर धोने से पानी बह जाता हो तो हरकत देना ज़रूरी है और अगर ढीले हों कि बिना हिलाए भी नीचे पानी बह जाएगा तो कुछ ज़रूरी नहीं।
- हाथों की आठों घाईयाँ, उँगलियों की करवटें, नाख़ुनों के अंदर जो जगह ख़ाली है, कलाई का हर बाल जड़ से नोक तक इन सब पर पानी बह जाना ज़रूरी है अगर कुछ भी रह गया या बालों की जड़ों पर पानी बह गया किसी एक बाल की नोक पर ना बहा तो वुज़ू नहीं हुआ मगर नाख़ुनों के अंदर का मैल माफ़ है।
- अगर किसी को बजाय पाँच के छः उंगलियां हैं तो सब का धोना फ़र्ज़ है और अगर एक कंधे पर दो हाथ निकले तो जो पूरा है इस का धोना फ़र्ज़ है और उस दूसरे का धोना फ़र्ज़ नहीं मुस्तहब है मगर उस का वो हिस्सा कि इस हाथ के ऐसे हिस्से से जुड़ा है जिसका धोना फ़र्ज़ होता है तो इतने का धोना भी फ़र्ज़ है।
सिर के मसह की तफ्सील
- चौथाई सिर का मसह फ़र्ज़ है।
- मसह करने के लिए हाथ तर होना चाहीए, चाहे हाथ में तरी उज़्व के धोने के बाद रह गई हो या नए पानी से हाथ तर कर लिया हो।
- किसी उज़्व के मसह के बाद जो हाथ में तरी बाक़ी रह जाएगी वो दूसरे उज़्व के मसह के लिए काफ़ी नहीं होगी।
- सिर पर बाल ना हों तो जिल्द की चौथाई और जो बाल हों तो ख़ास सिर के बालों की चौथाई का मसह फ़र्ज़ है और सिर का मसह उसी को कहते हैं।
- साफ़े, टोपी, दुपट्टे पर मसह काफ़ी नहीं। लेकिन अगर टोपी, दुपट्टा इतना बारीक हो कि तरी निकल कर चौथाई सिर को तर कर दे तो मसह हो जाएगा।
- सिर से जो बाल लटक रहे हों उन पर मसह करने से मसह नहीं होगा।
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पांव धोने की तफ्सील
- छल्ले और पांव के गहनों का वही हुक्म है जो ऊपर हाथ के गहनों के बारे में बयान किया गया।
- कुछ लोग किसी बीमारी की वजह से पांव के अंगूठों में इस क़दर खींच कर धागा बांध देते हैं कि पानी का बहना तो दूर धागे के नीचे तर भी नहीं होता उनको इस से बचना लाज़िम है कि इस सूरत में वुज़ू नहीं होता।
- घाईयें और उँगलियों की करवटें, तलवे, ऐड़ीयां, कूँचें (यानी एड़ीयों के ऊपर के मोटे पट्ठे), सब का धोना फ़र्ज़ है।
- जिन हिस्सों का धोना फ़र्ज़ है उन पर पानी बह जाना शर्त है ये ज़रूर नहीं कि क़सदन पानी बहाए अगर अनजाने में या बे इख़तियारी में भी उन पर पानी बह जाये तो वज़ू हो जायेगा।
- जैसे बारिश हुई और वुज़ू में धोये जाने वाले सब आज़ा के हर हिस्सा से दो दो बूँद बारिश के पानी के बह गए वो आज़ा धुल गए और सिर का चौथाई हिस्सा गीला हो गया या किसी तालाब में गिर पड़ा और आज़ा-ए-वुज़ू पर पानी गुज़र गया वुज़ू हो गया।
- जिस चीज़ की आदमी को अमूमन या ख़ुसूसन ज़रूरत पड़ती रहती है और इस की एहतियात रखनी मुश्किल हो जैसे नाख़ुनों के अंदर या ऊपर या और किसी धोने की जगह पर यह लगे रह जाते हों तो चाहे ये चीज़ जर्म दार हो, चाहे उस के नीचे पानी ना पहुंचे, चाहे सख़्त चीज़ हो वुज़ू हो जाएगा।
- जैसे पकाने, गूँधने वालों के लिए आटा, रंगरेज़ के लिए रंग का जर्म, औरतों के लिए मेहंदी का जर्म, लिखने वालों के लिए रोशनाई का जर्म, मज़दूर के लिए गारा मिट्टी, आम लोगों के लिए पलक में सुरमे का जर्म, इसी तरह बदन का मैल, मिट्टी, ग़ुबार, मक्खी, मच्छर की बीट वगैराह।
- किसी जगह छाला था और वो सूख गया मगर उस की खाल अलग नहीं हुई तो खाल अलग कर के पानी बहाना ज़रूरी नहीं बल्कि उसी छाले की खाल पर पानी बहा लेना काफ़ी है। फिर उस को अलग कर दिया तो अब भी इस पर पानी बहाना ज़रूरी नहीं।
- मछली की सीलन आज़ा-ए-वुज़ू पर चिपका रह गया तो वुज़ू ना होगा कि पानी उस के नीचे ना बहेगा।
नोटः- वुज़ू के फ़र्ज़ अदा करने से वुज़ू तो हो जायेगा पर पूरा सवाब तमाम सुन्नतों के साथ अदा करने पर ही मिलता है।
वज़ू की सुन्नतें
- नीयत करना यानि अल्लाह तआला का हुक्म मानने की नीयत से वुज़ू करना।
- बिस्मिल्लाह से वुज़ू शुरू करना।
- दोनों हाथों को गट्टों तक तीन-तीन बार धोना। पहले दायाँ और फिर बायाँ हाथ धोना।
- दाहिने हाथ से तीन बार कुल्ली करना। (रोज़ादार न हो तो ग़रारा भी करे)
- दाँतों में मिस्वाक करना। (कम से कम तीन बार दाहिने बायें ऊपर नीचे के दाँतों पर)
- दाहिने हाथ से तीन बार नाक में पानी चढ़ाना।
- बायें हाथ से नाक साफ़ करना।
- दाढ़ी का ख़िलाल करना। यानि उँगलियों को गले की तरफ़ से दाढ़ी में डाल कर ऐसे फेरना जैसे कंघा करते हैं।
- हाथ पाँव की उंगलियों का ख़िलाल करना।
- वुज़ू में धुलने वाले हर हिस्से को तीन बार धोना।
- पूरे सिर का मसह करना।
- कानों का मसह करना।
- तरतीब से वुज़ू करना।
- दाढ़ी के जो बाल मुँह के दायरे से बाहर हैं उनका मसह करना।
- वुज़ू में धुलने वाले हिस्सों को पै दर पै धोना यानि एक हिस्से के सूखने से पहले दूसरे को धोना।
- हर मकरूह काम से बचना।
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वुज़ू की मुस्तहिब्बात
वुज़ू का सवाब बढ़ाने वाली चीज़ें को मुस्तहिब्बात कहते है। ये जरुरी नहीं होता मगर कर ले तो सवाब बढ़ जाता है।
वह काम जो शरीयत की नज़र में पसंद किये जाते हैं और उनके करने में सवाब भी होता है लेकिन अगर छूट भी जाएं तो उस पर कोई गुनाह भी नहीं है। वुज़ू के कुछ मुस्तहिब्बात निचे दिए गए है।
- दाहिनी तरफ़ से शुरू करना। मगर दोनो गाल एक साथ धोयें, कानों का मसह भी एक साथ करें।
- उंगलियों की पुश्त यानि उल्टी तरफ़ से गर्दन का मसह करना।
- वुज़ू करते वक़्त काबे की तरफ़ ऊँची जगह बैठना।
- वुज़ू का पानी पाक जगह गिराना।
- पानी डालते वक़्त वुज़ू के हिस्सों पर हाथ फेरना ख़ास कर सर्दी के मौसम में।
- वुज़ू में जो हिस्सा धोना है उसपर पहले तेल की तरह पानी मल़ लेना ख़ास कर जाड़े में। क्युकी उस वक्त स्किन खुश्क होती है तो पानी नहीं टिकता।
- वुज़ू के लिए पानी अपने हाथ से भरना।
- दूसरे वक़्त के लिये पानी भर कर रखना।
- वुज़ू करने में बिना ज़रूरत दूसरे से मदद न लेना।
- अँगूठी पहने हुये हो तो उसको हिलाना जबकि ढीली हो ताकि उसके नीचे पानी बह जाये। अगर ढीली न हो तो उसका हिलाना फ़र्ज़ है।
- कोई मजबूरी न हो तो वक़्त से पहले वुज़ू करना।
- इत्मिनान से वुज़ू करना। जल्दबाज़ी में कोई सुन्नत या मुस्तहब नहीं छूटना।
- कपड़ों को वुज़ू की टपकती बूँदों से बचाना।
- कानों का मसह करते वक़्त भीगी ऊगली कानों के सुराख़ में दाखि़ल करना।
- जो अच्छी तरह वुज़ू करता हो उसे टख़नों, एड़ियों, तलवों, कूँचों, घाइयों और कुहनियों का ख़ास ख़्याल रखना मुस्तहब है और बे-ख़्याली करने वालों के लिए तो फ़र्ज़ है कि अक़्सर देखा गया है कि यह जगहें सूखी रह जाती हैं और ऐसी बे-ख़्याली जायज़ नहीं है।
- वुज़ू का बर्तन मिट्टी का हो। ताँबे वग़ैरा का हो तो भी हर्ज नहीं मगर क़लई वाला हो।
- वुज़ू लोटे से करें तो उसे बाईं तरफ़ और तश्त या टब से करें तो दाहिनी तरफ़ रखना।
- लोटे में दस्ता लगा हो तो दस्ते को तीन बार धो लें और हाथ उसके दस्ते पर रखें।
- दाहिने हाथ से कुल्ली करना और नाक में पानी डालना।
- बायें हाथ से नाक साफ़ करना और बायें हाथ की छोटी ऊगली नाक में डालना।
- पाँव को बायें हाथ से धोना।
- मुँह धोने में माथे के सिरे पर ऐसा फैला कर पानी डालें कि ऊपर का भी कुछ हिस्सा धुल जाये।
- दोनों हाथों से मुँह धोना।
- हाथ पाँव धोने में उंगलियों से शुरू करना।
- जिन हिस्सों पर पानी बहाना फ़र्ज़ है उससे बढ़ाना जैसे आधे बाज़ू और आधी पिंडली तक धोना।
- हर हिस्से को धोकर उस पर हाथ फेरना कि बूँदे बदन या कपड़े पर न टपकें, ख़ास कर जब मस्जिद में जाना हो क्योंकि बूँदों का मस्जिद में टपकना मकरूहे तहरीमी है।
- ज़ुबान से वुज़ू की नीयत करना। हर हिस्से को धोते या मसह करते वक़्त नीयत का हाज़िर रहना।
नोट :- बहुत से लोग ऐसा करते हैं कि नाक, आँख या भँवों पर पानी डाल कर सारे मुँह पर हाथ फेर लेते हैं और यह समझते हैं कि मुँह धुल गया ध्यान रखें कि पानी ऊपर से नीचे बहता है नीचे से ऊपर नहीं चढ़ता इस तरह धोने में मुँह नहीं धुलता और वुज़ू नहीं होता।
वुज़ू की मकरूहात
मकरूह चीज़ें वह होती हैं जो शरीयत में नापसंद हैं जिनसे सवाब में कमी आ जाती है और कुछ जगहों पर तो इसकी वजह से इबादत नाक़िस या अधूरी रह जाती है।
और इनका करने वाला गुनाहगार हो जाता है इनका बहुत ध्यान रखना चाहिए। हर सुन्नत का छोड़ना मकरूह है ऐसे ही हर मकरूह का छोड़ना सुन्नत है।
वुज़ू की कुछ मकरूह बातें यह हैं।
- औरत के वुज़ू या ग़ुस्ल के बचे हुये पानी से वुज़ू करना।
- वुज़ू के लिये गंदी जगह बैठना या नजिस जगह वुज़ू का पानी गिराना।
- मस्जिद के अन्दर वुज़ू करना।
- वुज़ू करते में जिस्म के किसी हिस्से से लोटे वग़ैरा में पानी की बूँदे या छींटे गिरना।
- पानी में नाक या थूक का गिरना।
- क़िबले की तरफ़ मुँह करके थूकना या कुल्ली करना।
- दुनिया की बातें करना।
- ज़्यादा पानी ख़र्च करना। हमारे प्यारे नबी मुहम्मद सल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तीन बार से ज़्यादा वुज़ू के हिस्से नहीं धोए और फ़रमाया जिसने तीन से ज़्यादा बार धोया उसने बुरा किया और ज़ुल्म किया।
- पानी इतना कम ख़र्च करना कि सुन्नत अदा न हो।
- मुँह पर ज़ोर से पानी का छपाका मारना।
- मुँह पर पानी डालते वक़्त फूँकना।
- एक हाथ से मुँह धोना।
- गले का मसह करना।
- बायें हाथ से कुल्ली करना या नाक में पानी डालना।
- दाहिने हाथ से नाक साफ़ करना।
- अपने वुज़ू के लिये कोई लोटा वग़ैरा ख़ास कर लेना।
- तीन नये पानियों से तीन बार सिर का मसह करना।
- जिस कपड़े से इस्तिन्जे का पानी ख़ुश्क किया हुआ हो उससे वुज़ू के हिस्से पोंछना।
- धूप के गर्म पानी से वुज़ू करना।
- होंठ या आँखें ज़ोर से बंद करना। अगर कुछ सूखा रह जाये तो वुज़ू नहीं होगा।
Source From Sunnah.com