नबी सo की सुन्नत पर अमल करे

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आज हम लोग अपने को नबी सल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुहब्बत करने का दावा तो करते है लेकिन सही मायने में Nabi Ki Sunnat क्या है? या तो हमें मालूम नहीं या फिर मालूम है भी तो अमल नहीं करते। जबकि नबी सल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मुहब्बत ये है की हम नबी की सुन्नत पर सही तरीके से अमल कर के दिखाए।

इस आर्टिकल में हम नबी की सुन्नत के तालुक से कुछ अहम ताज़किरा करेंगे. मकसद यही है के आज मुअशरे मे जिस दीन पर हम चल रहे है वो किस हद तक किताबो सुन्नत से साबित है और सुन्नत-ए-रसूल को छोड़ने का जो अंजाम हम भुगत रहे है उस से अपने अक़ीदे का मुहासबा करे।

अफ़सोस की बात है के आज हमने खुद रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत को समझने से एतराज़ किया और बदले मे जो भी विरासत से हमें अक़ीदे मिले बस उसपर आँख बाँध करके अमल करने लग गये।

फिर चाहे वो अमल रसूल’अल्लाह की सुन्नत के कितने ही खिलाफ क्यू ना हो उसकी तहकीक करना ज़रूरी नही समझा और हमनें दीन मे मासूमियत इकतियार कर ली आज जब सुन्नत की बात होती है सुन्नत पर अमल के लिए बुलाया जाता है।

तो पहले तो सुन्नते मनमानी ईजाद की गयी और अगर कोई सवाल करे के भाई ये कहा से लाए हो ? तो कहते है के तुम तो मेरे को भटके हुए दिख रहे हो क्यूंकी तुमने सवाल किया,और हमने तो अपने बाप-दादा से सवाल नही किया आजतक। तो आज Nabi Ki Sunnat के बारे मैं जानते हैं।

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Nabi Ki Sunnat क्या है

अब सुन्नत क्या है ये जान लीजिए के रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) का क़ौल, (यानी जो आपने कहा),आप (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फयल (यानी जो आपने किया) ,और आपकी तक़रीर (यानी आपने लोगों को करते हुए देखा और खामोशी इख्तेयार की) ,और आप (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) के अख़लाक़-ए-मुबारक, आदाब, औसाफ, आपकी सीरत ये तमाम मिलकर सुन्नत-ए-रसूल कहलाती है।

तो सुन्नत का आम लुगत का मतलब होता है तरीका, लेकिन शराई इस्तेहल मे मतलब होता है रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) का तरीका. लिहाजा नबी (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने जो किया, नबी ने जो कहा उम्मत के लिए वाजिब और फ़र्ज़ है के उसी अमल को हर मु’अमले मे ज़िंदगी के हर शोबे मे इकतियार करे।

तो नबियो के भेजे जाने का मकसद है के उनकी इताअत और फार्मबरदारी की जाए, इसलिए क्यूं के रब ने उन्हे मुनतखिब किया है के हम लोग उनकी बात माने।

और रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) क्यूं की सारे आलम के नबी है, सारे आलम के लिए भेजे गये है और रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) को हम तमाम के लिए उस्मा-तूँ-हसना (मिसाल/आइडीयल और रोल मॉडेल) बनाया गया है।

तो रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बा’असात का मकसद था के हम उनकी इताअत करे, इत्तेबा करे और आप (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) की फार्मबरदारी करे जिसके ताल्लुक से क़ुरान ने यूँ फरमाया जिसका मफहूम है के:

आए मुसलमानो ! अल्लाह के रसूल (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) तुम्हारे लिए बेहतरीन मिसाल (आइडीयल और रोल मॉडेल) है, जो ईमान रखता है अल्लाह पर और यौमे आख़िरत पर और अल्लाह को क़सरत से याद करता है तो ऐसे शख्स के लिए ज़रूरी है के अल्लाह की और उसके रसूल (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) की इताअत करे और रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) को आइडीयल और रोल मॉडेल माने.❞ [मफहूम: सुराह आहज़ब 33:21]

अब गौर करते है के:

  • क्या वाके मे आज हम रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) को अपना रोल मॉडेल मान रहे है ?
  • क्या वाके मे आपके इताअत के मुताबिक हुमारी ज़िंदगी गुज़र रही है ?
  • क्या वाके मे हामारी ज़िंदगी के तमाम शॉबो मे रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) का तरीका छलकता है?

अगर “हा”! तो फिर मामला बहुत अच्छा है और अगर “ना” तो फिर मामला मे जबरदस्त बिगड़ है, उसको बदलने की ज़रूरत है हमें अब।

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आज नबी की सुन्नत पर अमल करना मुश्किल हो रहा हैं

आज सुन्नत-ए-रसूल को हमने मज़ाक समझा,खिलवाड़ का मौजू बनाया, के अगर कोई इताअते रसूल और इत्तेबायें रसूल की बात कहे,या ये कहे के अल्लाह की किताब और उसके रसूल (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) की बात मानो तो उस से कहा जाता है के “तुम तो भटक गये हो, तुम तो फ़लाह फिरक़े के लगा रहे हो हमे ,(सुभान’अल्लाह) और तमाम मुआशरा उसको घूर-घूर कर देखता है, तो इस सुन्नत पर भी अमल गिरा है। आज इस मुआशरे मे इसके बाद और सुन्नतो की तरफ जाए वो तो अजनाबियत का मुआंला हो जाता है।

एक शख्स इस्लाम पर चलकर अपने ही मुआशरे मे अजनबी हो जाता है

अगर कोई शख्स लोगों को किताबो सुन्नत की दावत देने लग जाए तो तमाम मुआशरे उसे घूर-घूर कर देखता है, के क्या हो गया इसे? कौन है ये ? ये तो हमारे बाबा-दादा के तरीके के खिलाफ जा रहा है।

तुम तो गुमराह हो गये हो, तुम्हारा ईमान तो बस ख़तम हो गया। फ़लाह और फ़लाह हज़ार बाते उस से की जाती है जबकि वो ऐसी सुन्नत पर अमल कर रहा है जो बुनियाद है दीन-ए-इस्लाम की, जो सुन्नत है।

रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) की और उसकी मुखालीफत भी वो लोग करना पसंद करते है जो ना अपनी इस्लाह चाहते है और ना अपने मुआशरे की और ऐसे लोगों को ही किताबो सुन्नत की बाते अपने बाप-दादा के दीन के बरख़िलाफ़ और नयी लगती है।

और आज तो यह बात 100% सच हो रही है के कोई शख्स अगर किताबो सुन्नत की बात करता है तो लोग कहते है के यह तो नयी बात दिख रही है, जबकि नयी वो नही! जो आपने किताबो सुन्नत से सुनी, नयी तो वो है जो आप कर रहे है।

क्यूंकी असल बात तो वो है जो अल्लाह की किताब और उसके रसूल (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत मे मौजूद है। अगर वो मौजूद है! जब थी तो आज तक उतनी ही हक़ है और क़यामत तक उतनी ही हक़ होंगी फिर चाहे कोई अमल करे उसपे या ना करे वो बात उतनी ही सच साबित होगी हर दौर मे चाहे फिर मामला तौहीद का हो, नमाज़ का हो, रोज़ो का हो, ज़कात और हज का हो।

तमाम मे अगर कोई कहे के: “ये सुन्नत है” तो उसे जवाब मिलता है के “तुमने तो नयी बात कह दी जबकि नयी वो नही है जो वो किताबो सुन्नत के हवाले से वो कह रहा है, नयी तो वो है जो हम कर रहे है आज ज़माने मे और अगर रसूल’अल्लाह (सललाल्लाहू अलैहे वासल्लं) की सुन्नत से वो अमल साबित है।

तो वो बात उतनी ही बेहतर और हक़ है जितना के रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) और ये दीन है उतना ही हक़ है। और अगर रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत मे वो बात नही! तो फिर जान लीजिए के पूरा मुआशरे भी अगर वो काम करे वो कभी काम दुरुस्त नही हो सकता।

मफ़हूम-ए-हदीस: फरमान-ए-मुस्तफ़ा (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) है के “जो शख्स मेरी उम्मत तक कोई इस्लामी बात पहुंचये ताकी उस से सुन्नत क़ायम की जाए या उस से बाद’मज़हबी दौर की जाए तो वो जन्नति है” (तिर्मीज़ी शरीफ)

गौर करने वाली बात है के रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) उस से शख्स को जन्नत की बशारत दे रहे है जिसका तो हम मज़ाक उड़ते है! जबकि हम सोचते तक नही के हक़ीकत मे हम किसका मज़ाक़ उड़ते है।

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सुन्नत का मज़ाक उड़ाने से अहतियात करे:

आज अगर कोई सुन्नतो पर अमल की बात करता है तो लोग उसका मज़ाक उड़ते है। अल्लाह के लिए, जब कोई शख्स कोई बात कहे तो कूम-से-कूम कान धार दीजिए, कोशिश कीजिए के उसने कहा से की वो बात, पूछ लीजिए।


कही ऐसा ना हो के ला-इलमी मे मैं उसकी बात का मज़ाक उड़ा दू और बाद मे पता चले के रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत थी, फिर बाद में मुझे ज़िंदगी भर पछताना पड़े, के क्यू मैने मज़ाक उड़ाया मेरे रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत का बहरहाल नबीयों की बअसात का मकसद उनकी इताअत है।

और रसूल (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) की बअसात का मकसद भी यही है। आपको अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने “आइडीयल और रोल” मॉडेल बनाया है, लेकिन आज रसूल’अल्लाह की तालीमत को हमें छोड़ दिया और उसका नतीजा क्या हुआ हम सभी देख ही रहे है।

जिसने सुन्नत से मोहब्बत की वो रसूल’अल्लाह के साथ है:

रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास एक अंसारी साहबी आए वो गमजदा थे बहुत रसूल’अल्लाह ने उनकी परेशानी का सबब पूछा तो उन्होने कहा “आए अल्लाह के रसूल (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) एक गम मुझे खाए जा रहा है।

के मैं यह सोचता हू के आज दुनिया मे आपका चेहरा मुबारक देखे बगैर हम रह नही पाते, चलते और फिरते, उठते और बैठते जब भी आपकी याद आती, आपसे आकर हम मिल लेते आपका दीदार करते और हमें सुकून मिलता है।

लेकिन मैं यह सोच कर गम खा रहा हू के रोज़े क़यामत तो आप अंबिया (अलेही सलातो सलाम) के साथ होंगे, वाहा तो हम आपका दीदार नही कर पाएँगे।


आप (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) खामोश रहे फिर आप (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर यह आयात नज़िल होती है।
अल-क़ुरान: जो कोई अल्लाह और रसूल की फ़रमाबरदारी केरेगा वो (रोज़े क़यामत) उन्न लोगों के साथ होगा जिन पर अल्लाह ता’आला ने इनाम किया है! जैसे नबी और सिद्दीके और शहीद और नेक लोग; यह क्या ही बेहतरीन रफ़ीक़ है। (सुराह 4 निसा: आयात 69)

और फिर रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया –हदीस: अल-मारू मा’मान अहब” “इंसान (क़यामत के दिन) उसके साथ जिस से वो मोहब्बत करता है”(साहीः बुखारी )

और आनेस बिन मलिक (रज़ि अल्लाहु अन्हु) कहते है के: “इस हदीस को सुन ने से ज़्यादा हम कभी किसी और हदीस पर इतनी खुशी नही हुई. के इंसान उसके साथ जिस से वो मोहब्बत करता है!
और हम जानते है के हम रसूल’अल्लाह से मोहब्बत करते है, लिहाजा हुमारा हिसाब भी रसूल’अल्लाह के साथ होगा।

  • तो जिसने रसूल’अल्लाह से मोहब्बत की यानी रसूल’अल्लाह की इताअत की, वो रसूल’अल्लाह के साथ है।
  • जिसने फिल्मस्टारॉ की इताअत की, उनसे मोहब्बत की, उनके तरीक़ो को अपनाया, वो उनके साथ होगा।
  • जिसने स्पोर्ट्स्टर्स को पसंद किया, उनके तरीके पर चला, वो उनके साथ है।
  • जिसने कुफ्फ़ारो को पसंद किया, उनके तरश को अपनाया और उनके तरीक़ो पर चला वो उनके साथ है।

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मोहब्बत किसको कहते है ?

आइए एक मिसाल दे दू मोहब्बत की के मोहब्बत किसी चीज़ का सिर्फ़ नाम नही मोहब्बत बल्कि मोहब्बत का मतलब होता है इताअत
अगर मैं ये कहुँ आपसे के मैं अपने वालिदैन से मोहब्बत करता हू तो क्या तसव्वुर करोगे आप मेरे बारे मे ? शायद उनकी खिदमत करता हो, रातो मे उठकर पैर दबाता हो, कभी बुरा – भला ना कहता हो, उफ़ भी ना करता हो! यही सारी बाते ख़याल करोगे ना आप मेरे बारे मे ? मतलब मेरी मोहब्बत को इताअत मे आप तसव्वुर करोगे लेकिन अगर मैं आपसे कहुँ के मैं अपने वालिदैन से मोहब्बत करता हू ! और उनको मरता हू! तो क्या आप इसको मोहब्बत कहोगे ? नही ! बिल्कुल भी नही।

तो अगर मैं कहता हू के रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) से मुझे मोहब्बत है तो इताअत लाज़िम है उसके साथ इताअत के बगैर मोहब्बत बेकार है।

लेकिन जिस तरहा से आज मोहब्बत के नारे लगते है (सुभान’अल्लाह!) इताअत कहा है मेरे भाइयो? वाहा तो सब मनमानी चल रही है
फिर रसूल’अल्लाह से मोहब्बत के दावे है।

जबकि मोहब्बत का लाज़मी ज़ुज़ इताअत है, फारमबरदारी है, इत्तेबा है।
उस तरीके पर चलना है। उसके पसंद को पसंद करना है, उसकी नापसंद को नापसंद करना है, उसकी अच्छाई को अच्छाई समझना है, उसने जिसको बुरा समझ उसको बुरा समझना है, उसने जो किया वो करना है, उसने जो ना किया वो नही करना है, ये है मोहब्बत, और यही है इताअत।

तो बहरहाल! हुमारे लिए ये ज़रूरी है के रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) को हर मामलों मे आइडीयल और रोल मॉडेल बनाए जैसा के क़ुरान ने हमे हुक्म दिया।

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने क़ुरान मे मुख़्तलिफ़ मुक़ामत पर, इतने मुक़ामत है के हुमारे लिए गिनना मुश्किल है जहा रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) की इत्तेबा का हुक्म दिया हमे इतने मुक़ामत जिसकी कोई इंतेहा नही लेकिन इसके बावजूद आज इताअत और फारमबरदारी के ममले मे क्या हमारा हाल है ?

  • आज हुमारी ज़िंदगी का कोई भी शोबा उठा लीजिए वो सुन्नत से खाली है।
  • अगर सहबा इस दौर मे आ जाते तो शायद वो हमको मुसलमान भी ना मानते।
  • कैसा आज का मुसलमान है ये: के रसूल की सुन्नतो पर उन्होने जान दी और ये आज का मुसलमान रसूल को रसूल मानकर जान देना तो दुर सुन्नत पर अमल भी नही करता।

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सहबा की मोहब्बत कैसी थी रसूल’अल्लाह से:

रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत और आपकी इताअत और आपकी इत्तेबा और मोहब्बत सहबा के ज़िंदगी मे कैसी थी आइए एक ही वकीये के जरये बताने की कोशिश करते है।
एक साहबी को मुश्रीकान-ए-मक्का ने गिरफ्तार किया और फाँसी देने का इरादा किया। कहा के: “ईमान छोड़ दो वरना फाँसी दे दी जाएगी। उस साहबी ने कहा: “ईमान तो नही छोड़ सकता! फाँसी चाहो तो दे दो! वो कहने लगे के: “अच्छा चलो तुमको माफ़ कर देते है।

सिर्फ़ तुम अपने रसूल को गाली दे दो तो उस साहबी ने जवाब दिया के: “मेरे रसूल’अल्लाह (सललाल्लाहू अलैहे वासल्लं) को बुरा भला कहना तो दूर, रसूल’अल्लाह को काँटा भी चुभ जाए वो तसव्वुर भी नही कर सकता मैं तुमको जो चाहे मेरे साथ करना है करो और उनको फाँसी दे दी गयी और शहीद कर दिया गया।

तो रसूल’अल्लाह (सललाल्लाहू अलैहे वासल्लं) की इत्तेबा और मोहब्बत कैसी थी सहबा के ज़िंदगी मे! के रसूल’अल्लाह को काँटा भी चुभ जाना मोहल था उनके लिए लेकिन आज इत्तेबा-ए-रसूल, कलमा-ए-रसूल पढ़कर आज तमाम ज़िंदगी के शोबे हम उसके बरख़िलाफ़ जाते है। (अल्लाह खैर करे)

*और सहबा का वो जज्बा था के उनकी जिंदगी का कोई शोबा सुन्नत से खाली ना था हा! अगर कोई बात मालूम ना थी तो वो तहक़ीक कर लेते, दूसरो से पूछ लेते और अपनी इस्लाह कर लेते लिहाजा हमें भी चाहिए के अपने ज़िंदगी के तमाम शॉबो मे रसूल’अल्लाह (सललाल्लाहू अलैहे वासल्लं) की इत्तेबा, फारमबरदारी को लाज़िम और फ़र्ज़ जाने।

Source : Sunnah.com
इन’शा’अल्लाह-उल-अज़ीज़ अल्लाह ता’आला हमे कहने सुनने से ज़्यादा अमल की तौफ़ीक़ दे।

व अखिरू दावाना अलाह्म्दुलिल्लाही रब्बिल आलमीन

हमारे नबी हुजूर सल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत

https://www.youtube.com/watch?v=vbN21HXMzt4

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