अल्लाह की रहमत

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Allah ki Rehmat अल्लाह सुभानहू वा ताअला की रहमत हर उस शख्श के लिए है जो उसके सामने हाथ फैलाये बैठा है। बेशक वो रहम करने वाला और माफ़ करने वाला है।

अल्लाह सुभानहू वा ताअला अपने बन्दों से फरमाते है की तुम इतने गुनाह करो की पूरी ज़मीन और पूरा आस्मां तुम्हारे गुनाहो से भर जाये और उसके बाद भी मैं तुम्हारे एक तौबा करने पर उन सारे गुनाहो को माफ़ कर दूंगा।

अल्लाह सुभानहू वा ताअला ने अपने बन्दों से कहा है की तुम एक नेकी करो मैं उसके बदले सौ नेकियाँ लिखूंगा, और तुम एक गुनाह करो उसके बदले मैं सिर्फ एक ही गुनाह लिखूंगा और जब चाहूंगा तब उस गुनाह को भी माफ़ कर दूंगा।

अल्लाह सुभान ताला ने अपनी रहमत का ज़रिया हमारे घर की बेटियों को भी बनाया है। जिस घर में बेटियां होती है उस घर में वो कभी बरकत और रहमत की कमी नहीं होने देता है।

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अल्लाह की रहमत से मुराद क्या है

रहमत के मानी होते हैं महरबानी, शफकत, रहम, इनायत यानी के दया, स्नेह, माफी, इनाम ।

अल्लाह सुभानहू वा ताअला ने हमें पैदा किया और इस दुनिया में भेजा वही हमारा ख़ालिक़ हैं और हम मख़लूक़।

अल्लाह सुभानहू वा ताअला हम से शफकत रखते हैं चंद साल की ज़िन्दगी में अल्लाह सुभानहू वा ताअला की इताअत करने पे आख़िरत की लामहदूद ज़िंदगी में निजात और इनामात के वादे हैं।

हम पर अल्लाह सुभानहू वा ताअला का यही करम और रहमत है। यूँ तो अल्लाह की रहमत सभी के लिए है जानवर हो या परिंदे मोमिन हो या ग़ैर मुस्लिम, पर अल्लाह सुभानहू वा ताअला ने हमें इनसान बनाया यानि अश़रफुल मख़लूक़ात।

अल्लाह सुभानहू वा ताअला ने हमें सेहत और तन्दरूस्ती बख़्शी यह अल्लाह की रहमत है चाहते तो माज़ूर भी कर सकते थे। इस नेमत पर हमें अल्लाह सुभानहू वा ताअला का शुक्र अदा करना चाहिए।

अल्लाह सुभानहू वा ताअला ने हमें ईमान वाला बनाया, अच्छे अख़लाक़ दिये ये अल्लाह की बहुत बड़ी रहमत है क्योंकि आख़िरत में अल्लाह की रहमत का दारोमदार इसी पर है कि हम दुनिया में ईमान वाले और अच्छे अख़लाक़ वाले थे या नहीं।

अल्लाह सुभानहू वा ताअला बहुत ज्यादा रहम करने वाले और ग़फ़ूरुरहीम हैं।

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अल्लाह के चंद नाम जो अल्लाह की रहमत को बयान करते हैं

अल्लाह सुभानहू वा ताअला का हर नाम अल्लाह की हर शिफात बयां करता है। और अल्लाह की हर शिफात रहमत है।

अल्लाह सुभानहू वा ताअला का इंसाफ़ करना भी अल्लाह की रहमत है, और सज़ा देना भी एक तरह से रहमत है। अगर अल्लाह सुभानहू वा ताअला किसी ज़ालिम को सज़ा देते हैं तो ये मज़लूम पर अल्लाह की रहमत है।

इस हिस्से में हम अल्लाह सुभानहू वा ताअला के उन नामों का ज़िक्र करेंगे जो बज़ाहिर अल्लाह की रहमत को साफ़ साफ़ बयान करते हैं।

1. रहमान (Rahman) :- इस नाम का मतलब होता है महसूल माफ़ कर देना या सबसे ज्यादा रहम करने वाला मुहब्बत करने वाला इंग्लिश में इस नाम का मतलब होता है Most Gracious, Most Compassionate. कुरान शरीफ़ में पूरी एक सूरह है अल्लाह के इस नाम से सूरह रहमान । जिसमें अल्लाह की नेमतों और रहमतों का ज़िक्र है।

2. रहीम (Raheem) :- रहम करने वाला और इंग्लिश में इसका मतलब होता है Merciful.

3. ग़फ़ूर (Gafoor):- बख्श ने वाला या माफ़ करने वाला ।

अल्लाह की तमाम शिफातों में अल्लाह की रहमत सबसे बालातर है यानी की ज़्यादा है।

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अल्लाह की रहमत से कभी मायूस न हो 

अल्लाह की रहमत बयान करती हुई चंद क़ुरानी आयात ए मुबारका

मायूसी कुफ्र है मोमिन को अल्लाह की रहमत से कभी मायूस नहीं होना चाहिए हालात चाहे जैसे भी हो। कुरान शरीफ में अल्लाह सुभानहू वा ताअला का फरमान है।

जब यूसुफ़ अo के वालिद ने कहा : ऐ मेरे बेटों! जाओ और यूसुफ़ और उसके भाई की पता लगाओ और अल्लाह की रहमत से नाउम्मीद न हो। अल्लाह की रहमत से तो केवल कुफ्र करने वाले ही नाउम्मीद होते है।

इस आयत ऐ मुबारक में साफ़ साफ़ है कि अल्लाह की रहमत से सिर्फ कुफ्र करने वाले मायूस होते हैं लिहाजा मोमिन को चाहिए कि हालात जितने ख़राब हो खिलाफ़ अल्लाह से उम्मीद रखनी है और अल्लाह की रहमत से कभी मायूस या नाउम्मीद नहीं होना चाहिए।

जब अल्लाह के नबी हज़रत मुहम्मद (स०) मक्का से मदीना हिजरत फरमा रहे थे तब मुश्रकीन ए मक्का उनकी तलाश में लग गए। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खबर देने वालों को 100 अरबी घोड़े देने की बात भी कही थी उस वक्त ये बहुत बड़ी चीज हुआ करती थी।

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनके साथी हज़रत अबुबकर सिद्दीक (र०) एक गार यानी के गुफ़ा में छुप गए यह गार इतनी छोटी थी के कोई देखता तो ये दोनो शक्स उन्हें दिख जाते और

जब मुश्रिकीन ऐ मक्का उन्हें ढूंढते ढूंढते गार के करीब पहुंचे तो हज़रत अबू बकर (र०) ने फरमाया या अल्लाह के नबी अगर इनमें से किसी ने अपने पैरों की तरफ़ देखलिया तो हम पकड़े जाएंगे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ए अबू बकर तुम्हारा क्या ख्याल है उन दो शख्स के बारे में जिनके साथ तीसरा अल्लाह है। (शहीह बुखारी हदीस नंबर 4663).

जिस अल्लाह ने कुएं में से हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को निकाल कर मिस्र की बादशाहत बख्शी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को गार में मुश्रिकीन ए मक्का से बचाकर मदीने पहुंचाया और फतह मक्का भी अता फरमाई रहमतुल लिलआलामीन बनाया।

तो क्या वो रब हमारी छोटी छोटी मुसीबतों में हमारा साथ नही देगा लिहाज़ा हमें चाहिए कि हम अल्लाह की रहमत से नाउम्मीद न हो अल्लाह बहुत बड़ा और बहुत ही महरबान है।

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तौबा और अल्लाह की रहमत

तौबा अल्लाह सुभानहू वा ताअला की बहुत बड़ी नेमत है। तौबा का लुग्वी मानी होता है छोड़ देना या लौट आना शरई माने होते हैं गुनाह छोड़ देना।

अल्लाह की रहमत इतनी वसी है कि अगर कोई शख्स इतने गुनाह करले की ज़मीन से लेकर आसमान तक भर जाए और वो सच्चे दिल से अल्लाह से तौबा करे आइंदा वो गुनाह न करे और किसी का हक़ मारा है तो वह लौटा दे तो अल्लाह की रहमत से उम्मीद है कि अल्लाह सुभानहू वा ताअला उसे बख्श देंगे ।

तौबा अल्लाह की बहुत बड़ी रहमत है क्योंकि अगर हमसे कोई खता होती है तो अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने ये नही फरमाया की अब तुम्हें सजा ही मिलेगी कुछ नहीं हो सकता बल्कि अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने फरमाया तुम तौबा करो माफी मांगो मैं माफ करने वाला हूं।

बनी इसराइल में एक शख्स था उसने 99 कत्ल किए थे उसने एक नेक शख्स से पूछा क्या मेरी बख्शीश होगी उसने कहा नहीं इस शख्स ने उसका भी कत्ल कर दिया अब 100 कत्ल हो चुके थे फिर उसने एक आलिम से पूछा कि क्या मेरी बख्शीश हो सकती है। उसने फरमाया की तेरे और तेरे रब से तौबा के बीच में कौन आ सकता है।

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तेरी तौबा हो सकती है और तू ये बस्ती छोड़ दे दूसरी नेक लोगों की बस्ती में चला जा । उस शख्स ने तौबा की और दूसरी बस्ती की तरफ चल पड़ा और रास्ते में ही उसका इंतकाल हो गया फरिश्ते आ गऐ वो सोचने लगे क्या करें।

जजा खैर के फरिश्ते भी थे और सजा के भी फरिश्तों ने अल्लाह से पूछा अल्लाह ने कहा की इसकी दोनो बस्ती से दूरी नापो अगर नेक बस्ती के क़रीब है। तो बख्शीश और पहले वाली बस्ती के ही करीब है तो सजा, अल्लाह के हुक्म से नेक लोगों की बस्ती खिसक कर उस शख्स से करीब हो गई और उस शख्स की बख्शीश हो गई । (शहीह मुस्लिम हदीस नंबर 7008).

अल्लाह की रहमत इतनी वसी है कि अल्लाह ने सच्चे दिल से तौबा करने पे कत्ल भी माफ कर दिए क्या वो अल्लाह हमारी खताओं को माफ नही फरमाएगा बिलकुल माफ़ फरमाएंगा।

हदीस का एक वाक़्या है की एक मर्तबा एक आदमी हमारे हुज़ूरे पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास तशरीफ़ लाया और बोला की या अल्लाह के नबी मैंने ७० लड़कियों को ज़िंदा दफ़न किया है क्या मुझे इसकी माफ़ी मिलेगी?

ये सुनते ही हमारे हुज़ूरे पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम परेशान हो गए और उनको इस परेषानी में देख कर उस आदमी ने सोचा की या खुदा अब तो मैं गया, अब तो मुझे माफ़ी नहीं मिलेगी।

तभी आस्मां से जिब्रील अलइस्लाम हुज़ूरे पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास तशरीफ़ लाये और उनके कान में कुछ बोले, उसके बाद ही हुज़ूरे पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस आदमी से फ़रमाया की ऐ अल्लाह के बन्दे, तेरे इतने गुनाह होने के बावजूद अल्लाह सुभानहू वा ताअला तुझे माफ़ कर दिया है.

हदीस से एक वाक़्या और है जहा फ़रमाया जाता है की बनी इज़राइल का एक शख्स जो बहुत ना-फरमान था उसको उसके बस्ती वालो ने धक्के मार के वहा से निकाल दिया। कुछ दिन बीतने के बाद जब उसके पास खाना पीना सब ख़तम हो गया और वो मौत के करीब पहुंच गया तो उसने मदद के लिए पहले अपनी दाये तरफ देखा तो उसे कोई न दिखा।

फिर उसने अपने बाये तरफ देखा तो फिर उसे कोई न दिखा। उसने फिर ऊपर देखा और बोला, ऐ मेरे रब जो कभी माफ़ करने से घटता नहीं है और कभी सज़ा देने में बढ़ता नहीं है, मैंने ज़िन्दगी भर तेरी नाफरमानी की है और हर किसी ने मुझे अकेला छोड़ दिया।

मैं तुझसे दुआ करता हु की मेरी इस हाल पे तरस खा और मुझे इस हालत में मत छोड़. वो शख्स ये बात दोहराते हुए ही मर गया। अल्लाह ता’आला मूसा अलैस्सलाम से फरमाते है की ऐ मूसा, जंगल में मेरा एक दोस्त मर गया है। जाओ और उसके जनाज़े की तैयारी करो, और पुरे बस्ती में ये ऐलान करवा दो की जो भी उसके जनाज़े में शामिल होगा उसको आज मैं बक्श दूंगा।

जब लोग जंगल में पहुंचे तो उन्होंने देखा की ये तो वही शख्स है जिसको उन्होंने बस्ती से निकाल दिया था. जब मूसा अलैस्सलाम ने अल्लाह सुभानहू वा ताअला से पूछा की या खुदा ये तो नाफरमान था, अपने इसको अपना दोस्त क्यों बताया।

तो अल्लाह सुभानहू वा ताअला ने फ़रमाया की ऐ मूसा मौत के वक़्त माफ़ी नहीं मिलती पर जब इसने मेरी तरफ देख के मुझसे माफ़ी मांगी तो उसके आंसू देखने के बाद, अगर वो मुझसे पूरी कायनात की भी मग़फ़िरत मांगता तो मैं वो भी अता कर देता। इस तरह एक सच्ची तौबा ने उसको क्या मक़ाम दिलाया ये आप देख सकते है।

अल्लाह सुभानहू वा ताअला फरमाते है की ऐ मेरे बन्दों तुम मुझसे मांगो, तुम्हे जितने की ज़रूरत है उससे ज़्यादा की मांग करो, जब मैं तुम्हे देने में कंजूसी नहीं करता तो तुम मांगने में क्यों करते हो।

अल्लाह सुभानहू वा ताअला की रहमत उसके बन्दों के लिए बेशुमार है. जो झोली पसारे उसके पास गया है, वहा से कभी खाली हाथ वापस लौट के नहीं आया है।

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क़यामत के दिन अल्लाह की रहमत

जैसा कि हमें मालूम है कि कयामत का दिन जजा और सजा का दिन है। किताबो में उस दिन का एक वाक्या आया है उस दिन अल्लाह सुभानहू वा ताअला दो शख्स को जहन्नम में जाने का हुक्म देंगे और ये हुक्म सुनते ही उनमें से एक शख्स जहन्नम की तरफ दौड़ता हुआ जाने लगेगा और दूसरा शख्स रुक रुक कर जा रहा होगा।

अल्लाह सुभानहू वा ताअला ने दौड़ने वाले से पूछा क्यों दौड़ रहे हो पता नहीं है कि आगे जहन्नम है, उस शख्स ने कहा या अल्लाह ताउम्र आपकी नाफरमानी की है सोचा आज मान लेता हूं आपकी रहमत से उम्मीद है की आज मान लेने पर बख्शीश हो जाएगी अल्लाह ने उसकी बख्शीश फरमाई और उसे जन्नत अता की।

दूसरे शख्स से अल्लाह ने फ़रमाया कि तुम क्यूं बार बार रुक कर मेरी तरफ़ देख कर जा रहे हो, उस शख्स ने कहा या अल्लाह तेरी रहमत से उम्मीद है इसलिए बार बार आपकी तरफ देख रहा हूं अल्लाह ने उसकी भी बक्शीश फरमाई और जन्नत में भेज दिया। अल्लाह की रहमत तो हमें बख्शने के बहाने ढूंढती रहती है।

कयामत के बाद अल्लाह के फर्माबरदार बंदों को जन्नत मिलेगी जहां ऐश ही ऐश है और ये अल्लाह रब्बुल इज्ज़त की बहुत बड़ी नेमत है। और जन्नत से बड़ी नेमत ये है की हमें अल्लाह सुभानुताला का दीदार होगा और ये इतनी बड़ी नेमत है की हम अभी इसका तसव्वुर भी नहीं कर सकते।

अल्लाह सुभानहू वा ताअला से रहम की भीख मांगो मेरे अज़ीज़ो, अल्लाह सुभानहू वा ताअला हमारे गुनाहो को माफ़ करने वाला है, ज़रा शिद्दत से उनकी बारगाह में अपने हाथों को फैला के तो देखो, वो बेशक उन तमाम गुनाहो को माफ़ कर देगा जिसकी हम सच्चे दिल से तौबा करेंगे।

Source : Sunnah.com

इन’शा’अल्लाह-उल-अज़ीज़ अल्लाह सुभानहू वा ताअला हमे कहने सुनने से ज़्यादा अमल की तौफ़ीक़ दे।

व अखिरू दावाना अलाह्म्दुलिल्लाही रब्बिल आलमीन

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