इस्लाम में सलाम की अहमियत

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क्या आप जानते हैं इस्लाम में सलाम की भी अहमियत होती है जब किसी मुसलमान भाई किसी मुसलमान भाई से मुलाकात करता है। तो सबसे पहले सलाम करने का हुकुम होता है। अगर कोई मुसलमान भाई किसी मुसलमान भाई को सलाम करता है तो उसको सलाम का जवाब भी देना बहुत ही जरूरी होता है यह एक सुन्नत है। तो आज की आर्टिकल में हम लोग जानने की कोशिश करेंगे आखिर इस्लाम में सलाम की अहमियत इतना क्यों है।

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इस्लाम में सलाम की अहमियत

इस्लामी शरीयत में सलाम की बड़ी अहमियत बताया गया है और यह एक सुन्नत भी है ये सुन्नते रसूल भी हैं और सलाम का जवाब देना बहुत ही जरूरी होता है और यह वाजिब भी है। अल्लाह के प्यारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबा इकराम को सलाम करने में और सलाम का जवाब देने में पहल करने के लिए कहा गया है और उनको यह तालीम खुद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दिया है।

कुरान-ए-पाक की सूरह अल-अनम: आयत 54 में :

وَإِذَا جَاءَكَ الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِآيَاتِنَا فَقُلْ سَلَامٌ عَلَيْكُمْ

ऐ नबी! जब आपके पास वो लोग आए जो हमारी आयतों पर ईमान लाए तो उनसे सलाम कहिए “अस्सलामु अलैकुम”*

इस आयत में नबी करीम सल्लल्लाहो वाले वसल्लम को किताब करते हुए उम्मत को यह तालीम दी गई है कि जब भी कोई मुसलमान भाई एक मुसलमान भाई से मिले तो दोनों एक दूसरे को सलाम करें और सलाम का जवाब दें जिससे दोनों के दरमियान मोहब्बत वा मशर्रत का मसाला का तबादला हो सके। और इसका बेहतरीन तरीक़ा ये है कि एक दुसरे के लिए सलामती और आफ़ियत की दुआ करे। एक अस्सलामु अलैकुम कहे तो दूसरा जवाब में वा अलैकुम अस्सलाम कहे।

हदीस : नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया

तुम लोग जन्नत में नहीं जा सकते जब तक मोमिन नहीं बनते और तुम मोमिन नहीं बन सकते जब तक एक दूसरे से मोहब्बत ना करो मैं तुम्हें वो तदबीर क्यों ना बता दु जिसको अख्तर करके तुम आपस में एक दूसरे से मोहब्बत करने लगो आपस में सलाम को फैलाओ। (अबू दाऊद)

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अस्सलामु अलैकुम का मतलब

जब आप किसी मुसलमान भाई से मिलते हैं अस्सलामु अलैकुम कहते हैं तो इसके माने यह होता है कि खुदा तुमको हर किस्म की सलामती और आफियाती से नवाजे खुदा तुम्हारे जान-माल को सलामत रखें।

घर बार को सलामत रखें अहलो अयाल और मुतल्लिगीन को सलामत रखें दीन ईमान को सलामत रखें , दुनिया भी सलामत रहे और आखिरत भी खुदा तुम्हें उन सलामतीओं से भी नवाजे जो मेरे इल्म में है और उन सलामतीओं से भी नवाजे जो मेरे इल्म में नहीं है।

मेरे दिल में तुम्हारे लिए खैर ख़्वाही, मुहब्बत व् ख़ुलूस और सलामती आफियात के इंतेहाई गेहरे जज्बात ही, इसलिय तुम मेरी तराफ से कभी कोई अन्देशा महसूस न करना, मेरे तर्ज़ ए अमल से तुम्हें कोई दुख न पहुन्चे।

कुरान ए पाक की सूरह निसा, आयत 86 में हैं :

“जब कोई तुम्हें दुआ सलाम करे तो उसे इस से बेहतर दुआ दो फिर वही अल्फाज़ ज़बाब में कह दो,”

जब आप अपने घर में दाखिल हो तो घर वालों को सलाम कीजिए

 فَإِذَا دَخَلْتُم بُيُوتًا فَسَلِّمُوا عَلَىٰ أَنفُسِكُمْ تَحِيَّةً مِّنْ عِندِ اللَّهِ مُبَارَكَةً طَيِّبَةً

तर्जुमा: “जब तुम अपने घर में दखिल हुआ करो तो अपने (घर वालों ) को सलाम किया करो, दुआ खैर खुदा की तारीफ से तालीम की हुई बड़ी ही बा बरकत और पकेजा हैं ,”

(कुरान, अन-नूर,: 61)

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सलाम के अल्फाज और उसका अज्र व सवाब

सलाम का अफजल तरीका यह है कि मुलाकात के वक्त पूरा सलाम ”अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाहे व बरकातहू” कहा जाए। अगर सिर्फ अस्सलामु अलैकुम कह देने से भी सलाम करने की सुन्नत अदा हो जाएगी लेकिन तीन जुमले बोलने में ज्यादा अज्र व सवाब मिलता है।

जैसा कि एक हदीस में आया हैं हज़रत उमर बिन हुसैन (रजि0) से रिवायत है कि नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) एक बार मजलिस में तशरीफ फरमा थे कि एक शख्स नबी करीम (सलसल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की खिदमत में हाजिर हुआ और उसने कहा -”अस्सलामु अलैकुम ” आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उसके सलाम का जवाब दिया फिर वह मजलिस में बैठ गया तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया -” दस” (यानी इस बंदे के लिए उसके सलाम की वजह से दस नेकियां लिखी गईं)।

 फिर एक और आदमी आया उसने कहा-”अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाह”। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उसके सलाम का जवाब दिया फिर वह आदमी बैठ गया तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया -”बीस” (यानी उसके लिए बीस नेकियां लिखी गईं)

फिर एक तीसरा आदमी आया। उसने कहा -”अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाहे व बरकातहू” आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उसके सलाम का जवाब दिया। वह मजलिस में बैठ गया तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया -”तीस” (यानी उसके लिए तीस नेकियां साबित होंगी)। (अबू दाऊद शरीफ, तिरमिजी शरीफ)

अल्लाह तआला का यह कानून है कि उसने एक नेकी का अज्र इस आखिरी उम्मत के लिए दस नेकियों के बराबर मुकर्रर किया है। कुरआन मजीद में भी फरमाया गया -”जो शख्स नेक काम करेगा उसको कम से कम उसके दस हिस्से मिलेंगे यानी ऐसा समझा जाएगा गोया वह नेकी दस बार की और एक-एक नेकी पर जिस कद्र सवाब मिलता अब दस हिस्सा वैसे सवाब के मिलेंगे।

और जो शख्स ”सलाम” का जवाब देता हैं वो भी इसी हिसाब से अज्र व सवाब का मुस्तहक होगा यानी ”वअलैकुम अस्सलाम” कहने पर दस नेकियां और ”वरहमतुल्लाह” के इजाफे पर बीस नेकियां और ”बरकातहू” के इजाफे पर तीस नेकियां मिलेगी।


इस हदीस शरीफ से सलाम के अल्फाज भी मालूम हो गए कि किन अल्फाज से सलाम करना चाहिए अल्फाज को बिगाड़ कर सलाम नहीं करना चाहिए। कुछ लोग इस तरह सलाम करते हैं कि जिसकी वजह से समझ में नहीं आता कि क्या अल्फाज कहे। इसलिए पूरी तरह वाजेह करके सलाम के अल्फाज बोलने चाहिए।

हज़रत हुज़ेफ़ा बिन यमन रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया,

“जब मोमिन मिलते हैं और सलाम के बाद मुसाफा के लिए एक दूसरे का हाथ अपने हाथ में लेते हैं तो दोनो के गुनाह इस तरह झड़ जाते हैं जिस तरह दरख्त से (सुखे) पत्ते,”

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सलाम इस्लाम से धीरे-धीरे रुखसत हो रही है

आज का जमाना बहुत ही तेज रफ्तार से चल रही है जैसे मशीन की तरह हो किसी के पास वक्त नहीं है सलाम करने का इसलिए रास्ता चलते वक्त हाथ उठाकर मुस्कुराकर सर झुका कर सलाम करने की नई रस्म निभाई जा रही है। इससे इतना तो समझ जा सकता है कि सामने वाले ने मुझे सलाम किया या मेरे सलाम का जवाब दिया लेकिन इससे सलाम की जो बरकते हासिल होनी चाहिए वह नहीं मिलती।

क्या किया जाए वक्त की कमी हर किसी के पास है शिकायत जरूर दूर हो जाती हैं कि फला शख्स ने मेरे सामने से गुजरा लेकिन सलाम नहीं किया क्योंकि अब तो खाली रस्मे निभाने का जमाना ही रह गया है। हकीकत देखे तो इस्लाम से धीरे-धीरे सलाम रुखसत होती जा रही है।

सलाम भी उन लोगों को किया जाता है जिन्हें हम जानते हैं। चेहरों से सुन्नते दाढ़ी खत्म होती जा रही है हमें अपने दीनी भाइयों को पहचानना मुश्किल हो चुका है। ऐसे नाजुक माहौल से अगर हम सलाम को भी अपने मजहब से रुखसत कर देंगे तो कितना बड़ा सितम होगा।

सलाम एक ऐसा दुआ है जो हम अपने किसी भी भाई को देते हैं और जवाब में खुद भी उसकी तरफ से दुआ पाते हैं। आप अपने मिलने वाले से अस्सलामु अलैकुम कहते हैं।

सलाम का मतलब यह होता है कि मेरे दिनी भाई ने मुझे सलामत रहने की दुआ दिया हैं। और अल्लाह ताला आपको भी सलामत रखे आप की यह दुआ सुनकर सामने वाला भी आपको दुआएं देते हैं।

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सलाम करना तौहीन नहीं बल्कि इज़्ज़त हैं

कुछ लोग सलाम करना तौहीन समझते हैं बल्कि तौहीन नहीं है इज्जत है समझदार लोगों की नजर में भी और अल्लाह और रसूल की नजरों में भी सलाम करने वाला कॉम की नजरों में काबिले एतराम होता है सलाम सादगी की पहचान है।

सलाम करने के बेशुमार फायदे हैं हजरत आदम अलैहिस्सलाम ने फरिश्तों को सलाम किया और फरिश्तों ने जवाब दिया यह जरूरी नहीं कि हम जिसे पहचानते हो उसे ही सलाम करें जी नहीं हमें हर दीनी भाई को चाहे उसे जानते हो या नहीं जानते हो या रिश्ता है या नहीं रिश्ता है। वह आपका दीनी भाई है।

आप को सलाम जरूर करना चाहिए और सलाम के लिए कम से कम अस्सलामु अलैकुम तो कहना ही चाहिए अगर कोई बड़ा आदमी जो किसी भी एतवार से आप से बड़ा हो उम्र में दौलत में इल्म में अगर वह लोगों से सलाम करने में पहल नहीं करता है। तो उसे घमंडी और बेअदब के नजरों से देखा जाता है और कहते हैं कि सलाम करने की तौफीक नहीं है।

एक शख्स ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम से पूछा: ” इस्लाम का बेहतरीन अमल कोनसा हे?

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया

गरीबो को खाना खिलाना और हर मुसलमान को सलाम करना, चाहे तुम्हारी उससे जान पहचान हो या ना हो।

अल्लाह ताला हम सब को इन बातों पर अमल करने की तौफीक अता फरमाए. आमीन. अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी तो अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें।

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