अस्सलाम वालेकुम दोस्तों अल्लाह पाक ने हमारी शिफा के लिए कई सारी चीजें नाजिल की है जिसमें से एक अक़िका भी है। अक़ीक़ा हमारे इस्लाम में बहुत ज्यादा जरूरी है यह हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की बताई हुई सुन्नत है।
हमारे हुजूर के बताए हुए तरीके से मुकम्मल तौर पर अक़ीका करना ही एक सही अक़िका माना जाता है। एक बच्चे या बच्चे के जन्म होने पर जानवर की कुर्बानी करना अक़ीक़ा कहलाता है।
कहा जाता है कि बच्चा या बच्ची पैदा होने की खुशी में अक़ीक़ा मनाया जाता है और इसमें बकरी या मेमने की कुर्बानी दी जाती है और यह अल्लाह पाक को शुक्रिया अदा करने का एक तरीका है।
आज आपको हम इस पोस्ट में akika karne ka sahi tarika or iski Dua बताने वाले है ।
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इस्लाम मजहब में एक बाप की 3 जिम्मेदारियां होती है-
सबसे पहले जब कोई मुस्लिम घर में लड़का या लड़की जन्म लेते हैं तो उसका एक अच्छा सा नाम रखा जाता है। और दूसरा की उनका अक़ीका किया जाता है। और तीसरा यह है कि जब बच्चे बालिक हो जाए तब उनका निकाह दिलदार और अच्छे ईमान वाले घर में किया जाए।
अक़ीक़ा का मुकम्मल तरीका-
अक़ीक़ा करने के लिए सबसे पहले जानवर की जरुरत पड़ती है जिसकी कुर्बानी दी जाती है उसके बाद अक़ीक़ा करने वाले बच्चे का थोड़ा सा बाल काटा जाता है।
अक़ीक़ा करना वाजिब नहीं है और अगर अक़ीक़ा ना किया जाए तो इससे गुनाह भी नहीं होता लेकिन बस एक बाप की जिम्मेदारी है कि अपने बच्चों का अक़ीका किया जाए क्योंकि कहा जाता है कि बच्चों पर कोई भी मुसीबत आती है तो मां-बाप उनके आड़े आ जाते हैं।
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उसी तरह अक़ीका के फायदे यह है कि यह बच्चों पर आने वाले मुसीबत और बलाए खत्म कर देती है साथ ही अगर कोई बच्चा या बच्ची बीमार है तो यह उनकी बीमारी भी दूर कर देती है।
वैसे तो अक़ीक़ा करने की जिम्मेदारी सिर्फ एक बाप को दी गई है लेकिन अगर बाप इजाजत दे तो नाना नानी दादा दादी चाचा चाची या फिर कोई भी रिश्तेदार अक़ीक़ा कर सकते हैं।
अक़ीक़ा में दो जानवर कुर्बानी किए जाते है लेकिन अगर लड़की हो तो एक बकरा या बकरी कुर्बानी कर सकते हैं या फिर कोई अगर बहुत गरीब है और वो दो जानवर नहीं खरीद सकता तो वह भी एक बकरा या बकरी से कुर्बानी दे सकता है लेकिन अगर किसी लड़के का अक़िका है तो उस वक्त एक बकरा जायज है।
अक़ीक़ा किस दिन करना चाहिए-
अक़ीक़ा करने के लिए अफजल दिन वह है जिस दिन बच्चा पैदा होता है लेकिन उसके 7वे दिन अक़ीका करना चाहिए और अगर सातवें दिन अक़ीक़ा नहीं हो पाया तो उसके 14वे दिन या फिर 21वे दिन कर सकते हैं लेकिन अगर इन तीनों दिनों में अकीका नहीं हो पाया तो उसके बाद किसी भी दिन अक़ीका कर सकते हैं।
लेकिन इसमें आपको असल फजीलत और फायदे नहीं मिल पाएंगे साथ ही इस का सुन्नत तरीका भी छूट जाएगा और अगर हमें अक़ीक़ा करने के सुन्नत फायदे ही ना हो तो फिर अक़ीक़ा करके क्या फायदा इसलिए ध्यान रखिए कि इन तीन अफजल दिनों में ही अपने बच्चों का अक़ीक़ा करने की कोशिश करें।
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हमारे नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का अक़िका भी उनके 7वे दिन पर ही किया गया था और हमारे हुजूर की सुन्नत कोई ठुकरा नहीं सकता इसलिए अगर किसी के पास पैसे हैं कोई मजबूरी परेशानी नहीं है तो अपने बच्चों का अक़ीका उनके 7वे दिन पर ही करने की कोशिश करें।
अक़िका करने के लिए कर्ज नही लेना है अगर आपके पास खुद के पैसे है तभी जाकर आप अकिका करे वरना आपका अक़िका कुबूल नहीं किया जाएगा।
अक़िका में कुर्बानी वाला गोश्त गरीबों और मिसकिनो में बांटा जाता है या फिर दावत करके इसका गोश्त गरीबो रिश्तेदारों दोस्तों को दावत में खिलाया जाता है।
अकिका करने का तरीका
अक़िके के गोश्त के कितने हिस्से किए जाते हैं-
अक़ीका में एक जानवर के तीन हिस्से किए जाते हैं जिसमें से एक हिस्सा गरीबों को खैरात किया जाता है दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों में तक्सीम किया जाता है और तीसरा हिस्सा आप खुद रख सकते हैं।
सरिअत में अक़िके का क्या हुकुम है-
शरीयत में कहा गया है कि अक़ीक़ा मुसलमान पर फर्ज नहीं है या वाजिब नहीं है बल्कि मुस्ताहब है और मुस्ताहब का मतलब यह होता है कि अगर आपने वह काम कर लिया तो इसका सवाब मिलेगा और अगर नहीं किया तो अजाब नहीं मिलेगा।
जैसे कि कई सारे लोग ऐसा सोचते हैं कि अक़ीक़ा करना फर्ज और लाजमी है अगर अक़ीक़ा ना किया जाए तो अल्लाह नाराज होंगे उन्हें सजा देंगे।
लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है अल्लाह पाक ने हमें किसी भी चीज के लिए जबरदस्ती नहीं की है क्योंकि बहुत सारे लोग गरीब होते हैं जो अक़ीक़ा नहीं कर सकते हैं और कर्ज ले कर भी अक़ीक़ा करना सख्त मना है जो लोग कर्ज लेकर अक़ीका करते हैं अल्लाह पाक उसे कुबूल नहीं करते हैं।
इसलिए अगर किसी के पास पैसे नहीं है और वह यह सोच रहा है कि अक़ीका करना बहुत ज्यादा जरूरी है नहीं और अल्लाह पाक उन्हें कभी नही बखसेंगे तो ऐसा बिल्कुल नहीं है आपके पास जब पैसे आए उस वक्त आप अक़ीका करवा सकते हैं।
क्या बड़े जानवर के कुर्बानी के साथ अक़ीक़ा का हिस्सा लिया जा सकता है-
किसी बड़े जानवर की कुर्बानी की जाती है जिसमें 7 हिस्से लिए जाते हैं उसी में से एक हिस्सा अकीके के नियत से आप ले सकते हैं। कुर्बानी के जानवर में अक़ीका की नियत से हिस्सा लेना गलत नहीं है लेकिन अफजल तो यही है कि अक़ीका के लिए बकरा या बकरी की कुर्बानी करें।
क्या बड़े हो जाने के बाद अक़ीक़ा कर सकते हैं-
अगर कोई बड़े होने के बाद अकीका करना चाहता है तो वह अक़ीक़ा कर सकता है लेकिन सातवें दिन मुस्ताहब वक्त है इसके अलावा इसकी जो फजीलत है वह हासिल नहीं हो पाती है आपने कई बार देखा होगा कि लोग बचपन में अक़ीक़ा नहीं करवाते लेकिन बड़े हो जाने के बाद किसी अपने की शादी में बड़े जानवर के साथ एक हिस्सा अक़ीका का लिया जाता है यह करना गलत तो नहीं है लेकिन सही भी नहीं माना जाता।
अक़ीके के वक्त सदका करना जरूरी है या नहीं-
अक़ीक़ा बच्चे की पैदाइश का शुकराना माना जाता है इसलिए अक़ीका के वक्त बच्चा या बच्ची के बाल को मुंडवा कर उसके वजन के बराबर सोना या चांदी उसकी कीमत के हिसाब से सदका कर दे लेकिन अगर बड़ी उम्र में अक़ीक़ा किया जा रहा है तो उस वक्त सर के बाल मुंडवाना जरूरी नहीं है और ना ही सदका करना जरूरी है।
अक़िका की दुआ –
अक़ीका में जो दुआ पढ़ी जाती है वह हजरत आयशा रजि अल्लाह अनहा की बताई हुई है यह बहुत बड़ी दुआ नहीं है छोटी दुआ है और इस दुआ को पढ़ना बहुत ज्यादा जरूरी है क्योंकि इस दुआ को अकीका के लिए सुन्नत दुआ माना जाता है।
बिस्मिल्लाह ही वल्लाहू अकबर ,अल्लाहुम्मा लका व ईलेका हाजा अकीकतू फुला ।
तर्जुमा – अल्लाह के नाम से जो अल्लाह बहुत बड़ा है अल्लाह यह अक़ीका तेरे लिए है और तेरे ही खिदमत में हाजिर है और यह अक़ीक़ा फला की तरफ से है।
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इसके अलावा आप कोई और दुआ पढ़ना चाहते हैं तो आप वह भी पढ़ सकते हैं जैसे कि अगर लड़के का अक़िका हो तो उस वक्त यह दुआ पढ़े-
“अल्लाहुम्मा हाजी ही अकीकतु (यहां बच्चे का नाम ले) दमोहा बि दमिहा व अजमुहा बि अजमीहा व जिल्दुहा बि जिल्दिहा व शअ’ रूहा बि शअ’ रिही।”
लड़की का अक़ीका हो तो ये दुआ पढ़े –
“अल्लाहुम्मा हाजी ही अक़ीकतु (यहां बच्ची का नाम लेना है) दमुहा बि दमिहा, व लहमुहा बि लहमिहा, व अजमूहा बि अजमीहा व जिलदुहा बि जिल्दिहा व शअ’रूहा बि शअ रिहा।”
इनमें से कोई एक दुआ पढ़ने के बाद यह दुआ पढ़े-
“इन्नी वजहुतु वाजहिया लिललल्लजी फतारस समावती वल अर्ध हनीफो व मा अना मीनल मुशरिकिन। इन्ना सलाती व नुसुकी व महय्या व ममाती लिल्लाही रब्बील आलमीन, ला शरीका लहू व बी जालिका उमितु व अना अव्वल मुस्लिमीन। अल्लाहुममा मिंका व लका।”
उसके बाद बिस्मिल्लाह अल्लाह हू अकबर पढ़े और जानवर को जिबाह कर दे।
अकीके में जानवर की कुर्बानी करने के बाद उसकी खाल का क्या हुक्म है-
अकीके में कुर्बानी दिए गए जानवर के खाल का भी वही हुकुम है जो बकरा ईद में कुर्बानी के जानवर के खाल का होता है।
अक़िका करना वालिद का फर्ज है –
अगर किसी इंसान को 3 या 4 से ज्यादा बच्चे हैं और वह गरीब है तो जाहिर सी बात है कि वह इतने सारे बच्चों का अक़ीका नहीं करवा सकता है तो ऐसे ही हालात में जब बच्चे बड़े हो जाए और तब उनके पास पैसे आए तो उस वक्त भी अपने बच्चों का अक़ीक़ा करवा सकता है अल्लाह पाक ने इसका हुकुम दिया है।
कहा जाता है ना कि जिस तरह फर्ज चीजें जरूरी है उसी तरह सुन्नत चीजें भी जरूरी है क्योंकि अगर यह जरूरी नहीं होती तो अल्लाह पाक सुन्नत जैसी चीजें दुनिया में कभी नाजिल नहीं करते।
इसलिए अक़ीक़ा करना भी सुन्नत है और इसे दिल से करें और अगर आपके पास पैसे ना हो तो किसी से कर्ज ना लें बल्कि पैसे आने का इंतजार करें और जब आपके पास पैसे आ जाए तो खुशी-खुशी अपने बच्चों का अक़ीका करें।