इस्लाम में परदे की अहमियत – Islam Me Parde Ki Ahmiyat

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Islam Me Parde Ki Ahmiyat

आज के इस  पैग़ाम में आप यह  जानेंगे कि इस्लाम में  परदे  की अहमियत क्या है आप भी ज़रूर जानते ही होंगे की इस मज़हब यानी मज़हब ए इस्लाम की खूबसूरती में नमाज़, रोज़ा, हज,  के साथ साथ इसका आदाब और कानून  का भी इसकी  प्रशंसा में बहुत ही बड़ा योगदान है।

नोट : ये पोस्ट एक गेस्ट ऑथर के द्वारा लिखी गई है।

इसी वजह से पूरी कायनात में मज़हब ए इस्लाम का सबसे ऊंचा झंडा है, लेकीन  आज कल के मुआशरे में न जाने लोगों  में कौन सी मर्ज लग गई है जिससे वो जहन के साथ साथ जिस्मानी  तौर पे भी बीमार नज़र आ रहे हैं इस चार दिन की  चकाचौंध  दुनियां में कुछ भी नहीं है सिवाय अल्लाह और उसके  रसूल के  इबादत के सिवा।

अपने  अल्लाह  और अल्लाह के रसूल के  फ़रमान  के मुताबिक जिन्दगी गुजारना एक इबादत ही है तो आज आप यहां पर  इसी  इबादत  यानी इस्लाम  में परदे की अहमियत से जुड़ी  सभी बात जानेंगे तो इस पैग़ाम को अव्वल से अंत तक ध्यान  से  पूरी बात को पढ़ें और इल्म में इज़ाफा करें।

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इस्लाम में परदे की अहमियत

इस पाक मज़हब यानी इस्लाम में परदे की  अहमियत  बहुत  ही ख़ास है हम सभी का रब  अल्लाह तबारक  व  तआला  इरशाद फ़रमाया कि ऐ मेरे बन्दों अपना  इज्जत  ख़ुद छुपाए  रखो और अपनी निगाहों को नीची रखो।

अपने निगाह को हर एक बुराई चीज़ को देखने से बचाव तुम्हारा यह अमल तुझे हर बुराई से बचाएगा अपने आप को हर बुराई से दूर रखो।

इस्लाम में न की सिर्फ औरतों को परदे का हुक्म है बल्कि मर्दों को भी अपनी निगाहें बुरी चीज़ को देखने से रोकना चाहिए और अपना इज्ज़त हमेशा महफूज़ रखना चाहिए।

सभी को चाहिए कि अपने आप को परदे में हमेशा रखें जिससे उनके जिस्म पर किसी गैर महरम का बुरा नज़र न पढ़े और आप भी गुनाहों से बाज़ रहें।

अगर आप खुद को परदे में रखेंगे तो आप हर तरह के बुरी बला से महफूज़ रहेंगे ना ही आप पर किसी की गंदी नज़र पड़ेगी और नाही कोई आपकी ओर तवज्जो होगा।

जब आप हर बुरी बात से बचे रहेंगे तो अल्लाह तबारक व तआला के फरमा बरदार बंदा होंगे और अपने ज़िंदगी से रुखसत होने के बाद अपना मकाम हासिल कर लेंगे।

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कुरान में पर्दे का हुक्म

मज़हब ए इस्लाम की  सबसे उम्दा किताब की पारा  18 के  सूरह नूर में तर्जुमा कंजूल ईमान के मुताबिक़ अल्लाह तआला इरशाद  फरमाता है कि मुसलमान मर्दों को हुक्म दो अपनी निगाहें  कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाह की हिफाज़त करे  ये उनके लिए बहुत सुथरा है।

बेशक अल्लाह को उनके कामों की ख़बर है और हर मुसलमान औरत को हुक्म दो अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और पारसाई की हिफाज़त करे और अपना बनाव को न दिखाए मगर जितना खुद ही जाहिर है और दुपट्टा अपने गिरेबान पर डाले रखे और अपना सिंगार जाहिर न करे मगर अपने शौहरों पर।

इस आयत करीमा में अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने साफ़ साफ़ हुक्म दिया है की पुरुष अपना निगाह नीची रखे यानी बदनिगाही से बचे और अपनी शर्मगाह की हिफाज़त करे यानी जिना बुराई की तरफ़ न जाए।

इसी तरह अल्लाह तआला औरतों को भी हुक्म फरमाता है कि वह अपनी निगाहें नीची रखें अपना बनावा और शिंगार शौहर के लिए ही करें गैर मर्दों के लिए नहीं और सीने व सर पर हमेशा दुपट्टा डाले रहे।

याद रखिए की मज़हब ए इस्लाम ने कभी भी उनको सजने या सवरने के लिए मना नहीं फरमाई है बल्कि एक हदीस के मुताबिक बगैर गहने नमाज़ भी नहीं पढ़ना चाहिए सिर्फ और सिर्फ इस्लाम बेपर्दगी और बेहूदगी के खिलाफ मना किया है।

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बेपर्दगी का दुन्यावी असर

आज इस दुनियां में अक्सर  नौजवानों में तरह तरह की  बुराइयां जन्म ले चुकी है और इस की सबसे खास और बड़ी वजह है कि इस मुआशरे में दीन की तालीम और इल्म से दूर हैं साथ ही  इस के सिवा ऑनलाइन कॉन्टेंट फ़िल्म देखने की फ़ैशन गंदी  फ़ोटो से लेकर अखबार और भी न जानें कितने चीज़ों में मशगूल रहने लगे हैं।

आज के मुआशरे  के  नौजवान  गैर औरत गैर औरत को देखने छूने और छेड़छाड़ गुनाहों की गुनाह नहीं समझते बल्कि इससे तो फ़ैशन मान चुके हैं जिस तरह कुंवारी लड़कियां और  औरतें बेपर्दा सड़कों पर खुले आम चल रहे हैं इससे भी इस कल्चर के मुताबिक फैशन मान रहे हैं।

इस जाल में आज कल लगभग आधे  से  भी  अधिक  यूं कहे  तो कुछ ही लोग ऐसे जहनी बीमारियों से बाज़ हैं इसका असर आप  खुद ब खुद अपने अगल बगल देख सकते हैं की तरह  तरह  के अफ़राद बढ़ रहे हैं कही किसी की ज़िंदगी जा रही है  तो  कहीं कोई सुरक्षित नहीं है इसका मुख्य वजह यही है कि हम  अपने बच्चों को बचपने के आलम में इल्में तरबियत नहीं दी।

फिर बड़े होने के बाद आप के संतान आप से दूर रहने लगे  जिसे उन्हें और भी मौका मिला बुराई में हांथ बढ़ाने का फिर हुआ  यूं की घर के साथ साथ  अपने अगल बगल भी  मां बहने  सुरक्षित नहीं हैं ऐसे बुराइयों में इंसान  एक वक्त पर इतना डूब जाता  है कि उसे अच्छाई दूर दूर तक दिखाई नहीं  देती  जिसका असर आप खुद भी देख रहे होंगे।

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इस्लाम में परदे से जुड़ी हदीस

इमाम बुखारी ने अपनी सही में हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का यह इरशाद नकल किया है जो शख्स मुझे दो बातों की ज़मानत दे कि जो उसके दोनों पैरों के दरमियान है यानी शर्मगाह है तो मैं उसे जन्नत का जमानत देता हूं।

जिस गैर औरत को जान बूझकर देखा जाय और जो औरत अपने आप को जान बूझ कर गैर मर्दों को दिखाए उस मर्द और औरत पर अल्लाह की लानत।

अपने शौहर के सिवा दूसरों के लिए जिनन के साथ दामन घसीटते हुए इतरा कर चलने वाली औरत कयामत के अंधेरों की तरह है जिसमे कोई रोशनी नहीं।

जब कोई औरत खुशबू लगा कर लोगों में निकलती है ताकि उन्हें खुशबू पहुंचे तो वह औरत जानिया यानी जिना करने वाली पेशावर है।

किसी गैर महरम से तन्हाई में रूबरू होने से बचो जब गैर मर्द और औरत तन्हाई में किसी जगह एक साथ होते हैं तो उनमें तीसरा शैतान होता है।

चंद नबवी इरशादें

अबू अमामा रादियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं की रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अगर तुम मेरे साथ इन 6 बातों का वादा करो तो मैं तुम्हारे लिए जन्नत का जामिन हूं:-

  • अगर कोइ तुम में से बात करे तो झूठ न बोले।
  • जब उसे अमीन बनाया जाय तो ख्यानत न करे।
  • जब वादा करे तो वादा खिलाफी न करे।
  • अपनी निगाहों को नीची रखे।
  • अपने हाथों को रोके रखो।
  • अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करो।

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आज के दुनियां और पर्दा

जहां इस्लाम में यह बोला गया है कि जब भी घर से बाहर निकलो तो हमेशा परदे में निकले ताकि किसी गैर महरम का बुरा नज़र तुम पे न पड़े लेकीन आज का मुआमला ही उल्टा नज़र आ रहा है कि अक्सर औरतें घर में तो किसी तरह बैठी रहेंगी लेकिन जब बाहर निकलना होता है तो खूब बन सवर कर निकलती है घर के लिए किसी तरह लेकीन सिंगार और सफाई गैर मर्दों के लिए।

आज कल के नौजवानों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी ना जानें हर रोज कितने गुनाह बनाते यानी करते हैं और अच्छाई को ख़त्म करते हैं जब भी रास्ते पर चलते हैं तो राह देखने के बजाय अपने आंखों को जिन्ना में मुब्तिला करा देते हैं और उनकी आंख हर वक्त यही देखने की ख्वाहिश भी रखने लगती हैं और वह फिर इंटरनेट का भी सहारा लेने लगते हैं फिर धीरे धीर यह आदत बन जाता है और एक रोज हद भी पार कर देते हैं।

पहली नजर जो बगैर कसद अचानक और गैर इरादा तौर पर पड़ती है उसमें इंसान बड़ी हद तक बेबस होता है इसीलिए यह माफ है मगर फिर दोबारा निगाह नहीं डाली जा सकती यह मतलब हरगिज़ नहीं है कि पहली नज़र इतना हो गया कि दोबारा देखने की जरुरत ही न रहे डालने की इजाजत है अगर किसी वक्त इरादतन डाली गई तो वह भी हराम ही होगी लिहाज़ा इन बुरी बालाओं से दूर रहें।

अधिक जानकारी के लिए पढ़ें : इस्लाम में परदे की अहमियत हिंदी में

आखिरी बात

आप ने इस पैग़ाम में बहुत ही इल्म भरी बात यानी इस्लाम में परदे की अहमियत जानी यकीनन आप इस पैग़ाम को ज़रूर पुरा ध्यान से पढ़े होंगे इसके बाद आप इन सभी बातों पर गौर भी करेंगे अगर अभी भी इस्लाम की पर्दे से ताल्लुक कोई सवाल आपके जहन में हो तो पूछ सकते हैं।

अगर यह पैगाम इस्लाम में परदे की अहमियत पर लिखी आप को अच्छा लगा हो तो इससे दूर दूर तक पहुंचाएं जिससे सब अपने रब के फ़रमान के मुताबिक़ अपना ज़िंदगी बसर कर सके और रुखसत के बाद जन्नत पा सके साथ ही आप भी अपने नामाए आमाल में नेकियों का इज़ाफा करें।

https://www.youtube.com/watch?v=knyXn0wH7Ok

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