Podcast क्या है
आपको मालूम होगा शायद जो भी आप कंटेंट पढ़ते हैं अगर उस कंटेंट को ऑडियो फॉर्म में रिकॉर्ड कर लिया जाए तो उसे Podcast के नाम से जाना जाता है। एक उदाहरण से समझते हैं आइए पॉडकास्ट को अगर मान लीजिए कि आप कोई आर्टिकल पढ़ रहे हो तो वह टेक्स्ट के फॉर्म में होता है अगर उसी आर्टिकल को आप को सुनना है और आपने अपनी आवाज से उस आर्टिकल को रिकॉर्ड कर लिया है तो वह पॉडकास्ट कहलाएगा।
आप Podcast को आप कही भी कभी भी इंटरनेट की मदद से इसे प्ले करके सुन सकते है और किसी जानकारी को अपनी खुद की आवाज में रिकॉर्ड करके उसे दूसरे लोगो तक पहुंचा सकते है।
आपकी आसानी के लिए हम लोगों ने आर्टिकल को Podcast के जरिए से अब तक पहुंचाने की कोशिश किया है आप कभी भी कहीं भी अपनी मनचाहे आर्टिकल को आप सुन सकते हैं Podcast के जरिए जिससे आपकी वक्त की बचत होगी और आप उसी वक्त में दूसरा कोई काम भी कर सकते हैं। आसानी से Podcast को आपको बस सुनना होता है इसमें देखना नहीं होता तो आप सुन सकते साथ ही साथ आप अपने काम को भी आसानी से कर सकते हैं।
बीवी को खुश करने का तरीका
बीवी को खुश करने का तरीका, बीवी को खुश करने का तरीका से यह पूछें ” क्या मैं तुम्हारी मदद के लिए कुछ करूँ ” यह सिर्फ पूछना नहीं है अगले दस मिनट तक वही करना है जो पत्नी कहे। कुछ लोग पत्नी से पूछते तो है लेकिन बताने पर या तो करते नहीं हैं या आधा अधूरा काम करके छोड़ देते हैं।
पत्नी को पता होता है कि कौनसा काम आपसे हो सकता है। इसलिए वही काम आपको मिलेगा। इसलिए ईमानदारी से वो काम पूरा कर दें। आपके ये दस मिनट पत्नी को देना उन्हें खुश कर देगा ।
जानिए इस्लाम में किन चीजों को बिदअत कहा जाता है
बिदअत क्या है, जो काम आप हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा रजि अल्लाह ताला अनहो ने नहीं किया बल्कि दीन के नाम पर बाद में इजाद हुआ उसे इबादत समझकर करना बिदत कहलाता है।
इस उसूल की रोशनी में आप अपने हिसाब से खुद भी किसी मसले को समझ सकते हैं कुफ्र और शिर्क के बाद बिदत बड़ा गुनाह है और बिदत उन चीजों को कहते हैं जिनकी असल शरीयत से साबित ना हो यानी कुरान और हदीस में उनका कोई सबूत ना मिले और रसूल सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम और सहाबा रजि अल्लाह ताला अनहो के जमाने में उसका वजूद ना हो और उसको दीन का काम समझ कर किया और छोड़ा जाए।
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जानिए इस्लाम में जकात का हिसाब कैसे करते हैं Part-05
ज़कात एक फर्ज इबादत है जिसको की माल के द्वारा अदा की जाती है इसमें हम अपने माल का कुछ हिस्सा ग़रीबों को देते हैं। ज़कात सिर्फ साहिबे निसाब पर फर्ज होती है, यह सभी के लिए फर्ज नहीं है इसका मतलब यह कि शरीयत में बताई गई मिक़्दार तक उनका माल पहुंच जाता है वही जकात अदा करेंगे।
जो लोग साहिबे निसाब नहीं है उनके लिए ज़कात फ़र्ज़ नहीं है। वह चाहे तो सदका दे सकते है। जकात गरीब का हक है जिसे की हर साहिबे निसाब को देना जरूरी है अगर वह नहीं देगा तो गुनहगार होगा और उसके माल की बरकत चली जाएगी और यह अल्लाह का हुकुम है। ज़कात साहिबे निसाब होने के बाद एक साल गुजर जाये तब अदा की जाती है।
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जानिए इस्लाम में जकात का हिसाब कैसे करते हैं Part-04
ज़कात एक फर्ज इबादत है जिसको की माल के द्वारा अदा की जाती है इसमें हम अपने माल का कुछ हिस्सा ग़रीबों को देते हैं। ज़कात सिर्फ साहिबे निसाब पर फर्ज होती है, यह सभी के लिए फर्ज नहीं है इसका मतलब यह कि शरीयत में बताई गई मिक़्दार तक उनका माल पहुंच जाता है वही जकात अदा करेंगे।
जो लोग साहिबे निसाब नहीं है उनके लिए ज़कात फ़र्ज़ नहीं है। वह चाहे तो सदका दे सकते है। जकात गरीब का हक है जिसे की हर साहिबे निसाब को देना जरूरी है अगर वह नहीं देगा तो गुनहगार होगा और उसके माल की बरकत चली जाएगी और यह अल्लाह का हुकुम है। ज़कात साहिबे निसाब होने के बाद एक साल गुजर जाये तब अदा की जाती है।
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जानिए इस्लाम में जकात का हिसाब कैसे करते हैं Part-03
ज़कात एक फर्ज इबादत है जिसको की माल के द्वारा अदा की जाती है इसमें हम अपने माल का कुछ हिस्सा ग़रीबों को देते हैं। ज़कात सिर्फ साहिबे निसाब पर फर्ज होती है, यह सभी के लिए फर्ज नहीं है इसका मतलब यह कि शरीयत में बताई गई मिक़्दार तक उनका माल पहुंच जाता है वही जकात अदा करेंगे।
जो लोग साहिबे निसाब नहीं है उनके लिए ज़कात फ़र्ज़ नहीं है। वह चाहे तो सदका दे सकते है। जकात गरीब का हक है जिसे की हर साहिबे निसाब को देना जरूरी है अगर वह नहीं देगा तो गुनहगार होगा और उसके माल की बरकत चली जाएगी और यह अल्लाह का हुकुम है। ज़कात साहिबे निसाब होने के बाद एक साल गुजर जाये तब अदा की जाती है।
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जानिए इस्लाम में जकात का हिसाब कैसे करते हैं Part-02
ज़कात एक फर्ज इबादत है जिसको की माल के द्वारा अदा की जाती है इसमें हम अपने माल का कुछ हिस्सा ग़रीबों को देते हैं। ज़कात सिर्फ साहिबे निसाब पर फर्ज होती है, यह सभी के लिए फर्ज नहीं है इसका मतलब यह कि शरीयत में बताई गई मिक़्दार तक उनका माल पहुंच जाता है वही जकात अदा करेंगे।
जो लोग साहिबे निसाब नहीं है उनके लिए ज़कात फ़र्ज़ नहीं है। वह चाहे तो सदका दे सकते है। जकात गरीब का हक है जिसे की हर साहिबे निसाब को देना जरूरी है अगर वह नहीं देगा तो गुनहगार होगा और उसके माल की बरकत चली जाएगी और यह अल्लाह का हुकुम है। ज़कात साहिबे निसाब होने के बाद एक साल गुजर जाये तब अदा की जाती है।
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जानिए इस्लाम में जकात का हिसाब कैसे करते हैं Part-01
ज़कात एक फर्ज इबादत है जिसको की माल के द्वारा अदा की जाती है इसमें हम अपने माल का कुछ हिस्सा ग़रीबों को देते हैं। ज़कात सिर्फ साहिबे निसाब पर फर्ज होती है, यह सभी के लिए फर्ज नहीं है इसका मतलब यह कि शरीयत में बताई गई मिक़्दार तक उनका माल पहुंच जाता है वही जकात अदा करेंगे।
जो लोग साहिबे निसाब नहीं है उनके लिए ज़कात फ़र्ज़ नहीं है। वह चाहे तो सदका दे सकते है। जकात गरीब का हक है जिसे की हर साहिबे निसाब को देना जरूरी है अगर वह नहीं देगा तो गुनहगार होगा और उसके माल की बरकत चली जाएगी और यह अल्लाह का हुकुम है। ज़कात साहिबे निसाब होने के बाद एक साल गुजर जाये तब अदा की जाती है।
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उधार लेन-देन कैसे करें जानिए इस्लामिक तरीके से
उधार लेन देन कैसे करें (Udhar Len Den Kaise Kre) में हम लोग जानेगे की कैसे इसको सही तरीके से कर के किसी की मदद भी कर सकते है और अपने पैसो की हिफाज़त भी कर सकते है, जैसा कि हम सब लोग जानते हैं कि किसी से थोड़े समय के लिए कोई चीज लेना और फिर उसको वापस कर देना इसको उधार लेन देन (Udhar Len Den) कहते हैं।
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जानिए जुम्मे के दिन और उसके फजीलत क्या-क्या है इस्लाम में
जुम्मे का दिन एक अज़ीम दिन है, अल्लाह तआला ने इस के साथ इस्लाम को अज़मत दी और येह दिन मुसलमानों के लिये ख़ास कर दिया, फ़रमाने इलाही है : जब जुम्मे के दिन नमाज के लिये पुकारा जाए पस जल्दी करो अल्लाह के ज़िक्र की तरफ़ और खरीदो फरोख्त छोड़ दो।
इस आयत से मालूम हुवा कि अल्लाह तआला ने जुम्मे के वक्त दुन्यावी शगल हराम करार दिये हैं और हर वो चीज़ जो जुमा के लिये रुकावट बने ममनूअ करार दे दी गई है।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फरमान है कि तहक़ीक़ अल्लाह तआला ने तुम पर मेरे इस दिन और इस मकाम में जुमा को फ़र्ज़ करार दे दिया है। एक और इरशाद है कि जो शख्स बिगैर किसी उज्र के तीन जुम्मे की नमाजें छोड़ देता है अल्लाह तआला उस के दिल पर मोहर लगा देता है।
जानिए इस्लाम में रस्मो रिवाज और उनकी हकीकत क्या है
आज कल लोग रस्मो रिवाज के नाम पर तरह तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे है जिसको वो जरूरी समझते है जिसकी कोई भी हकीकत नहीं होती है हम बता रहे है रस्मो रिवाज और उनकी हकीकत क्या है इस्लाम में।
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जानिए मिस्वाक और इसके क्या क्या फायदे होते हैं
मिस्वाक करना सवाब है बल्कि इससे बहुत सारे जिस्मानी फायदे हासिल होते हैं | आप इंटरनेट पर मिस्वाक सर्च करके देखें बेशुमार मेडिकल और हेल्थ वेबसाइट्स पर इसके बेनेफिटस मिलेंगे तो चलीये जानते हैं मिस्वाक के फायदे के बारे में।
- 1.मिस्वाक करने में अल्लाह की खुशनुदी हैं
- 2.मिस्वाक मुंह को साफ करती है
- 3.मिस्वाक मसूड़ों को मजबूत करती हैं
- 4.मिस्वाक आवाज को खूबसूरत करती है
- 5.मिस्वाक खाना हज्म करती है
- 6.मिस्वाक फरिश्तों को खुश रखती हैं
- 7.मिस्वाक चेहरे को बा रोनक बनाती हैं
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जानिए सुबह उठने के क्या-क्या फायदे होते हैं
सुबह जल्दी उठने से होंगे ये फायदे, आप रहेंगे सेहतमंद और लाइफ बनेगी हैप्पी सुबह का समय दिन का सबसे अधिक बेहतर समय होता है।
जब आप तरोताजा महसूस करते हैं और आपको अपने लिए इतना समय मिलता है कि जिसमें आपको किसी काम के लिए जल्दबाजी न करनी पड़े।
सुबह के समय आप बिना विचलित हुए अपने किसी भी काम को तेजी से पूरा कर सकते हैं. वहीं आप अपने दिन के लिए कोई योजना बनाने के लिए भी बेहतर ढंग से सोच सकते हैं. सुबह के समय मानसिक रूप से आप बेहतर महसूस करते हैं।
फज़र की नमाज़ के लिए कैसे उठे
ख़ास तौर से फज्र की नमाज़, जिसे हम में से कई लोग अक्सर इसे छोड़ देते हैं और और इसकी वजह बताया करते हैं कि हम फज्र के वक़्त उठ नहीं पाते, तो यहाँ पर हम कुछ 10 tips बताते हैं अगर आप उन पर अमल करें तो इंशाल्लाह हम इतनी अहम् नमाज़ से महरूम नहीं होंगे।
- 1. सोने से पहले अल्लाह SWT याद करें
- 2. सोने से पहले वुजू कर लें
- 3. सोने से पहले कुरान पढ़ें
- 5. रात को जल्दी सो जाओ
- 6. दोपहर में नैप लें
- 7. अच्छी नियत
- 8. हर सुबह अलार्म सेट करें
- 9. दूसरों को आप जागने के लिए कहें
- 10. इसे अपने दिल में कहें