वज़ू करने का तरीका तो अक्सर हमें मालूम होता है। लेकिन वज़ू कब टूट जायेगा कब बाकि रहेगा इसके बारे में जानने को Vazu ke Masaile कहते है। वज़ू के मसाइल जानना इस लिए भी जरुरी है की अगर किसी वजह से वज़ू नहीं होगा तो उसके बाद, की गई इबादत भी नहीं होगी।
वुज़ू के कुछ ज़रूरी मसाइल
वुज़ू के लिए कुछ ज़रूरी मसाइल जो अक्सर पेश आते है वो यहाँ पर बतायेगे, जिनका जानना बहुत ज़रूरी क्योंकि थोड़ी सी गफलत से वुज़ू सही तरह से नहीं होगा। जिसकी वजह से नमाज़ या और दीगर इबादत अदा नहीं हो पायेंगी।
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- कुछ लोग वुज़ू करते वक़्त पानी को मल लेते हैं इससे वुज़ू नही होता क्योंकि वुज़ू में किसी उज़्व (अंग) के धोने का यह मतलब है कि उस उज़्व के हर हिस्से पर कम से कम दो-दो बूँदें पानी बह जाये। भीग जाने या तेल की तरह पानी चुपड़ लेने से वुज़ू अदा नहीं होता। इस बात का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है।
- बदन में कुछ जगहें ऐसी हैं कि जब तक उनका ख़ास ख़्याल न रखा जाये तो उन पर पानी नहीं बहता जैसे कि हाथ-पाँव की उंगलियों की घाइयाँ, कोहनियाँ, आँखों के कोये, नाक और होठों के बीच का हिस्सा पाँव के टख़ने, गट्टे और तलवे वग़ैरा।
- मूँछो और दाढ़ी के बाल अगर घने न हों तो चेहरे की जिल्द (Skin) का धोना फ़र्ज़ है।
- बाल अगर घने हों तो गले की तरफ़ दबाने से जितने चेहरे के घेरे में आयें उनका धोना फ़र्ज़ है, जो घेरे से नीचे हों उनका धोना ज़रूरी नहीं। जड़ों का धोना फ़र्ज़ नहीं। अगर बाल कुछ हिस्से में छिदरे हों तो उस जगह चेहरे की जिल्द को धोना फ़र्ज़ है।
- नथ का सुराख़ बन्द न हो तो उसमें पानी बहाना फ़र्ज़ है। तंग हो तो पानी डालते में नथ को हिलाना चाहिये।
- गहने जैसे छल्ले, अँगूठियाँ, कंगन और चूड़ियाँ वग़ैरा अगर इतने तंग हों कि नीचे पानी न बह सके तो उतार कर धोना फ़र्ज़ है, अगर सिर्फ़ हिलाकर धोने से पानी बह जाए तो हिलाना ज़रूरी है।
- वुज़ू में बदन के जिन हिस्सों का धोना फ़र्ज़ है उन पर पानी बह जाना शर्त है, चाहे वह इरादे से हो या बिना इरादे के। जैसे बारिश में भीगने पर वुज़ू में धुलने वाले हर हिस्से से दो क़तरे बह गये और सिर का चौथाई हिस्सा भीग गया तो वुज़ू की शर्तें पूरी हो गईं, या कोई आदमी तालाब में गिर पड़ा और वुज़ू के हिस्सों पर पानी गुज़र गया तो भी वुज़ू हो गया।
- ऐसा काम करने वाले लोग जिससे उनके हाथ-पाँव वग़ैरा में कुछ लगा रह जाता है और उसका छुटाना आसान न होता उसे “जिर्म” कहते हैं, जैसे रोटी पकाने वालों के लिये आटा, रंगरेज़ के लिये रंग का जिर्म, औरतों के लिये मेंहदी का जिर्म, लिखने वालों के लिये रौशनाई (Ink) का जिर्म, मज़दूर के लिये गारा मिट्टी, आम लोगों के लिये कोए या पलक में सुर्मे का जिर्म वग़ैरा। इसके लगे रहने से वुज़ू हो जाता है।
- मछली की सेलन अगर वुज़ू के हिस्से पर लगी रह गई तो वुज़ू नहीं होगा।
- नाख़ूनों पर से नेल पालिश को वुज़ू या गु़स्ल के वक़्त छुटा लेना ज़रूरी है। इससे वुज़ू नहीं होता।
- नाबालिग़ पर वुज़ू फ़र्ज़ नहीं है मगर उन्हें वुज़ू कराना चाहिये ताकि आदत हो और वुज़ू करना आ जाये और वुज़ू के मसअले भी उनको मालूम हो जायें।
- अगर वुज़ू के दरमियान किसी उज़्व के धोने में शक हो जाये और यह ज़िन्दगी का पहला वाक़िया हो तो उसको धो लें और अगर अक़्सर शक पड़ता है तो उसकी तरफ़ ध्यान न करें। अगर वुज़ू के बाद शक हो तो उसका भी कुछ ख़्याल न करें।
- कोई शख़्स वुज़ू से था लेकिन उसे शक है कि वुज़ू है या टूट गया तो वुज़ू करना ज़रूरी नहीं, मगर कर लेना बेहतर है। लेकिन यह शक, वसवसे के तौर पर हुआ हो तो दोबारा वुज़ू न करें क्योंकि वसवसे शैतान की तरफ़ से आते हैं।
- अगर बेवुज़ू था लेकिन शक है कि वुज़ू किया या नहीं तो वुज़ू करना ज़रूरी है।
- अगर यह याद है कि वुज़ू के लिये बैठा था लेकिन यह याद नहीं कि वुज़ू किया या नहीं तो वुज़ू करना ज़रूरी है।
- यह याद है कि पाख़ाना/पेशाब के लिये बैठा था, मगर करना याद नहीं तो वुज़ू फ़र्ज़ है।
- यह याद है कि कोई उज़्व धोने से रह गया मगर मालूम नहीं कि कौन सा था तो बायाँ पाँव धो लें।
वुज़ू कब-कब करना चाहिए?
कुछ कामों के लिये वुज़ू करना फ़र्ज़ है यानि इसको छोड़ना गुनाहे कबीरा है और इसका इन्कार कुफ़्र है। कुछ कामों के लिये सुन्नत है और कुछ के लिये मुस्तहब।
यहाँ पर हमने इबादत के एतबार से कब वज़ू फ़र्ज़ है कब सुन्नत है और कब मुस्तहब है बताया है।
इबादत जब वुज़ू करना फ़र्ज़ है
- नमाज़
- सजदा ए तिलावत
- नमाज़े जनाज़ा
- क़ुरआन शरीफ़़ की तिलावत (कुरान शरीफ हाथ से छू कर )
- तवाफ़ के लिये वुज़ू वाजिब है।
इबादत जब वुज़ू करना सुन्नत है
- ग़ुस्ले जनाबत यानि सोहबत के बाद पाकी के लिए नहाने से पहले।
- जुनूब यानि जो सोहबत के बाद पाक नहीं हुआ उसको खाने, पीने और सोने के लिये।
- अज़ान और इक़ामत के लिये।
- जुमा और ईद के ख़ुतबे के लिये।
- रौज़ा-ए-मुबारक हुज़ूर گ की ज़ियारत के लिये।
- अरफ़ा में ठहरने और सफ़ा और मरवा के दरमियान सई के लिये।
इबादत जब वुज़ू करना मुस्तहब है
- सोने के लिये और सोने से उठने के बाद।
- मय्यत के नहलाने या उठाने के बाद।
- सोहबत से पहले।
- जब ग़ुस्सा आ जाये उस वक़्त।
- ज़बानी क़ुरआन शरीफ़़ पढ़ने पढ़ाने के लिये।
- जुमा ईद बक़रईद के अलावा बाक़ी ख़ुतबों के लिये।
- दीनी किताबों को छूने के लिये।
- सत्रे ग़लीज़ यानि पेशाब पख़ाने की जगह को छूने के बाद।
- झूठ बोलने, गाली देने, बुरी बात कहने और ग़ीबत करने पर।
- काफ़िर से बदन छू जाने, सलीब या बुत छूने, कोढ़ी या सफ़ेद दाग़ वाले से छू जाने पर।
- बग़ल खुजाने से जबकि उसमें बदबू हो।
- क़हक़हा लगाने यानि ज़ोर से हँसने के बाद।
- बेहूदा शेर पढ़ने के बाद।
- ऊँट का गोश्त खाने के बाद।
- किसी औरत के बदन से अपना बदन बिना रुकावट के छू जाने से।
- वुज़ू होने के बावजूद नमाज़ पढ़ने के लिये।
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वुज़ू तोड़ने वाली चीज़ें
वह नापाकी जिसकी वजह से हम जिस्म और कपड़ों से पाक व साफ़ होने के बावजूद नमाज़ वग़ैरा अदा नहीं कर सकते उसे “हदस “कहते है।
हदस से पाकी हासिल करने के लिए वुज़ू, ग़ुस्ल या तयम्मुम की ज़रूरत होती है इसलिए इनके बारे में जानना बहुत ज़रूरी है।
इस बारे में थोड़ी सी बेएहतियाती हमारी़ नमाज़ें और दूसरी इबादतें ख़राब कर सकती है और जान बूझ कर छोड़ने पर कुफ़्र तक पहुँचा सकती है।
हदस की दो क़िस्में हैं।
- हदस-ए-असग़र जिनसे वुज़ू टूट जाता है और नमाज़ वग़ैरा के लिये वुज़ू करना फ़र्ज़ हो जाता है।
- हदस-ए- अकबर वह हालतें जिनसे “ग़ुस्ल” (नहाना) फ़र्ज़ हो जाता है।
हदस ए असग़र
जिनसे वुज़ू टूट जाता है। इसको छोटी नापाकी भी कहते है। यहाँ पर हम तफ्सील से बतायेगे
- पेशाब, पाख़ाना, करने से।
- वदी, मज़ी, मनी के निकलने से।
- कीड़ा और पथरी मर्द या औरत के आगे पीछे से निकलने से।
- मर्द या औरत के पीछे से हवा निकलने से, जिसको ‘रियाह‘ कहते हैं।
- ख़ून, पीप या पीला पानी कहीं से निकल कर बहने से।
- अगर ज़ख़्म से ख़ून वग़ैरा निकलता रहा और यह बार-बार पोंछता रहा, मिट्टी या राख डाल कर सुखाता रहा कि बहने नहीं दिया तो यह ध्यान करे कि अगर न पोंछता या सुखाता तो बह जाता तो वुज़ू टूट गया वरना नहीं।
- फोड़ा या फुन्सी के निचोड़ने या दबाने पर ख़ून के बहने से।
- छाला नोचने से अगर उसमें का पानी बह गया तो वुज़ू टूट गया वरना नहीं।
- थूक के साथ मुँह से ख़ून निकलने पर अगर ख़ून थूक से ज़्यादा हो तो वुज़ू टूट जायेगा वरना नहीं। थूक के ज़्यादा और कम होने की पहचान यह है कि थूक का रंग अगर सुर्ख़ हो जाये तो ख़ून ज़्यादा समझा जाएगा और अगर पीला रहे तो कम।
- ग़फ़लत की नींद सो जाने से वुज़ू टूट जाता है।
- अगर नमाज़ में जान बूझ कर सोया तो वुज़ू भी गया और नमाज़ भी गई वुज़ू करके दोबारा पढ़े, अगर बिना इरादा सोया तो वुज़ू टूटा नमाज़ नहीं गई, वुज़ू करके जिस रुक्न में सोया था वहाँ से अदा करेगा और नमाज़ का दोबारा पढ़ना बेहतर है।
- ज़ोर से हँसने से वुज़ू टूट जाता है रुकू और सजदे वाली नमाज़ में अगर बालिग़ आदमी इतनी ज़ोर से हँसे कि आस पास वाले सुन लें तो वुज़ू टूट जायेगा और नीयत भी टूट जायेगी और अगर इतनी ज़ोर से हँसा कि ख़ुद उसने ही सुना और आस पास वाले न सुन सकें तो वुज़ू नहीं जायेगा नमाज़ जाती रहेगी।
- मुँह भर के उल्टी आने से वुजू़ टूट जाता है।
- पागल हो जाने पर।
- बेहोशी से चाहे बीमारी से हो या नशे से।
- नशा जिससे पाँव लड़खड़ाते हों।
- नमाज़ वग़ैरा के इंतज़ार में कभी कभी नींद आ जाती है और नमाज़ी नींद को दूर करना चाहता है तो कभी ऐसा ग़ाफ़िल हो जाता है कि उस वक़्त जो बातें हुईं उनकी उसे बिल्कुल ख़बर नहीं बल्कि दो तीन आवाज़ों में उसकी आँख खुली और अपने ख़्याल में वह यह समझता है कि सोया न था तो उसके इस ख़्याल का एतबार नहीं अगर कोई मोतबर आदमी कहे कि तू ग़ाफ़िल था यहाँ तक कि तू ऐसा ग़ाफ़िल था कि तुझे पुकारा गया लेकिन तूने जवाब नहीं दिया या बातें पूछी जायें और वह न बता सके तो उस पर वुज़ू लाज़िम है।
- दुखती आ़ँख से पानी बहने पर वुज़ू टूट जाता है। आँख दुखते में जो आँसू बहता है नजिस है और उससे वु़ज़ू टूट जाता है इससे बचना बहुत ज़रूरी है। इस मसअले से बहुत से लोग ग़ाफ़िल हैं, अक़्सर देखा गया है कि कुर्ते वग़ैरा से इस हालत में आँख पोंछ लिया करते हैं अगर ऐसा किया तो कुर्ता वग़ैरा नापाक हो जायेगा।
- वुज़ू के दरमियान में अगर रियाह यानि गैस निकले या कोई ऐसी बात हो जिससे वुज़ू टूट जाता है तो नये सिरे से फिर वुज़ू करे।
- चुल्लू में पानी लेने के बाद अगर हदस हुआ यानि पेशाब पाख़ाना या रियाह वग़ैरा चीज़ें निकलीं तो वह पानी बेकार हो गया और वह किसी उज़्व के धोने के काम नहीं आ सकता।
- मुँह में इतना ख़ून निकला कि थूक लाल हो गया अगर लोटे या कटोरे को मुँह से लगाकर कुल्ली के लिए पानी लिया तो लोटा कटोरा और सब पानी नापाक हो गया। चुल्लू से पानी लेकर कुल्ली करे और फिर हाथ धोकर कुल्ली के लिये पानी लें।
- बीमार लेट कर नमाज़ पढ़ रहा था अगर नींद आ गई तो वुज़ू टूट जायेगा।
हदस ए अकबर
जब ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो जाता है उसको हदस-ए- अकबर कहते है। इस के मुतालिक पूरी तफ्सीन यहाँ पढ़े : Gusal Ka Tarika
जिनमें वुज़ू नहीं टूटता
कुछ इस तरह के हालात हो जाते है जब हमें लगता है की वज़ू टूट गया लेकिन असल में नहीं टूटता इस बारे में हम यहाँ पर लिख रहे है कि इन हालतों में वुज़ू नहीं टूटता
- ऊँघने या बैठे-बैठे झपकी लेने से वुज़ू नहीं जाता। नींद में झूम कर गिर पड़ा और फ़ौरन आँख खुल गई तो वुज़ू नहीं टूटेगा।
- इन हालतों में सोने से वुज़ू नहीं टूटता। नमाज़ में यह सूरतें पेश आईं तो न वुज़ू जाये गा न नमाज़, लेकिन अगर पूरा अरकान सोते ही में अदा किया तो उसका लौटाना ज़रूरी है।
- ज़मीन, कुर्सी या बैंच पर बैठा है दोनों सुरीन (कूल्हे) जमे हैं और दोनों पाँव एक तरफ़ फैले हुए।
- दोनों सुरीन पर बैठा है, घुटने खड़े हैं और हाथ पिंडलियों को घेरे हों चाहे ज़मीन पर हों।
- दो ज़ानू सीधा बैठा हो या चार ज़ानू पालथी मार कर।
- जानवर पर सवार हो ज़ीन या नंगी पीठ पर और रास्ता हमवार हो या चढ़ाई वाला।
- खड़े खड़े सो गया या रुकू की सूरत पर या मर्दों के मसनून सजदे की शक्ल पर।
- औरतों को जो सफ़ेद पानी बिना ख़ून की मिलावट के निकलता है उससे न तो वुज़ू टूटता है और न ही कपड़े नापाक होते हैं।
- अगर नाक साफ़ करने पर उसमें से जमा हुआ ख़ून निकला तो वुज़ू नहीं टूटेगा।
- अगर ख़ून सिर्फ़ चमका या उभरा और बहा नहीं जैसे सुई की नोंक या चाक़ू का किनारा लगने से ख़ून उभर या चमक जाता है या ख़िलाल किया या मिस्वाक की या उंगली से दाँत माँझा या दाँत से कोई चीज़ काटी उस पर ख़ून का असर पाया या नाक में उंगली डाली उस पर ख़ून की सुर्ख़ी आ गई मगर वह ख़ून बहने के लायक़ नहीं था तो वुज़ू नहीं टूटा ऐसे ही जख़्म में गड्ढा पड़ गया और उसमें से कोई रुतूबत चमकी मगर बही नहीं तो वुज़ू नहीं टूटेगा।
- अगर मुस्कुराया कि दाँत निकले और आवाज़ बिल्कुल नहीं निकली तो इससे न तो नमाज़ जायेगी और न वुज़ू टूटेगा।
- घुटना या सत्र (वह जगह जिसका छुपाना फ़र्ज़ है) खुलने, अपना या पराया सत्र देखने से वुज़ू नहीं टूटता है। वुज़ू के आदाब में से है कि नाफ़ से ज़ानू के नीचे तक सब सत्र छुपा हो बल्कि इस्तंजे के बाद फ़ौरन छुपा लेना चाहिये। बिना ज़रूरत सत्र का खुला रहना मना है और दूसरों के सामने सत्र खोलना हराम है।
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वुज़ू में शैतानी वसवसे
कई बार हमारा वज़ू होता है लेकिन हमें लगता है की हमारा वज़ू टूट गया इस हालत को शैतानी वसवसा कहते है यहाँ पर हम उनसे बचने के कुछ तरीके बता रहे है।
वुज़ू में शैतानी वसवसे एक शैतान डालता है जिसका नाम “वलहान” है। उसके वसवसों से बचने के लिये बेहतरीन तरीक़ा यह हैं कि अल्लाह तआला की तरफ़ रुजू करें और यह पढ़ें
- اَعُوۡذُ بِاللّٰہِ مِنَ الشَّیۡطٰنِ الرَّجِیۡمِ
- (मैं अल्लाह की पनाह माँगता हूँ शैतान मरदूद से।)
- وَلَا حَوۡلَ وَلَا قُوَّۃَ اِلَّا بِاللّٰہِ
- (और नहीं है कोई ताक़त और .कुव्वत अल्लाह के सिवा।)
- सूरह अननास पढ़ें
इन दुआओं के पढ़ने से वसवसा जड़ से कट जायेगा और वसवसे का बिल्कुल ख़्याल न करने से भी वसवसा दूर हो जाता है। यानि शैतान जो बार बार दिल में वसवसे डाले तो जब तक यक़ीन न हो उन वसवसों की तरफ़ ध्यान न दें।
(Source : Sunnah.com )