आज कल लोग रस्मो रिवाज के नाम पर तरह तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे है जिसको वो जरूरी समझते है जिसकी कोई भी हकीकत नहीं होती है हम बता रहे है islam-me-rasmo-rivaj की हकीकत।
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इस्लाम में किसी भी रसम की कोई हकीकत नहीं है
जितनी रस्मे दुनिया में आने के वक्त से लेकर मरते दम तक की जाती है उनमें से अक्सर बल्कि तमाम रस्में इस किस्म कि है जो बड़े-बड़े समझदार और अकल मंद लोगों में तूफान बरपा कर रही हैं और आम और खास सभी तरह के लोगों में फैल रही हैं जिसके बारे में लोगों का यह ख्याल है कि इसमें गुनाह की कौन सी बात है?
इस गलत अंदाजे की वजह सिर्फ यह होती है कि आमतौर से यह रसम फैल चुकी होती है जिसकी वजह से अकल पर पर्दे पड़ गए हैं
इसलिए इन रस्मों रिवाजों के अंदर जो खराबी है और बारीक बुराइयां हैं वहां तक अकल नहीं पहुंच पाती जैसे कोई नादान छोटा बच्चा मिठाई का मजा और रंग देखकर समझता है कि यह तो बड़ी अच्छी चीज है
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और उस नुकसान और खराब हो पर नजर नहीं करता जो उसके खाने से पैदा होगी जिनको मां-बाप ही समझते हैं और उसी की वजह से उसको रोकते हैं और बच्चा उन खैरखाही को नहीं समझता
रस्मों में खराबी इतनी ज्यादा बारीक और छुपी हुई भी नहीं, बल्कि हर इंसान इन रस्मो की वजह से परेशान और तंग है और हर शख्स चाहता है कि अगर यह रसमें ना होती तो बहुत ही अच्छा होता लेकिन यह दस्तूर पड़ जाने की वजह से खुशी-खुशी करते हैं
और यह किसी की भी हिम्मत नहीं होती कि सब को एकदम से छोड़ दें बल्कि किसी को समझाओ तो उल्टे नाखुश होते हैं
शादी में चावल देना
रिश्तेदारों के साथ अच्छा सलूक करना यह बहुत अच्छी बात है लेकिन जिस तरह शादी में भात यानी कि चावल देने का रिवाज है वह महज गैर मुस्लिमो की रसम है और नुमाइश है इसका इस्लाम में तसव्वुर तक नहीं
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कुछ गलत रस्में में जो की मशहूर है
निकाह के वक्त कलमा पढ़ाना, दूल्हे को कलमा पढ़ आए बगैर भी निकाह सही हो जाएगा क्योंकि वह पहले से ही मुसलमान है निकाह के वक्त मुसलमान हो कलमा पढ़ा ना कोई जरूरी नहीं
निकाह शादी के मौके पर तारीख रखते हैं और कहते हैं कि महीने की 3, 13 और 23 तारीख ना हो होना चाहिए और बाकी तारीख कोई भी हो जाए यह रवाज इस्लाम में बे असल है इसकी पाबंदी लाजिम नहीं है
मेहंदी की रसम में जो लंबी चौड़ी कबा हत की जाती है उसकी भी कोई जरूरत नहीं है
सेहरा बांधना
शादी के मौके पर सेहरा बांधना गैर मुस्लिमों की रसम है जोकि हमारे माश्रे में फैली हुई है इसको छोड़ना लाजिम है
औरतों का सिर की मांग में सिंदूर लगाना भी इसी हुकुम में शामिल है बल्कि कुछ बढ़कर है औरतों का मेहंदी लगाना दुरुस्त है बल्कि उनके लिए अच्छा है कि हाथ पैरों को मेहंदी लगाएं मर्दों को उनकी मूसाबेहत अख्तियार करना सही नहीं है
सालगिरह मनाना
यह रसम खास तौर पर गैर मुस्लिमों की है मुसलमानों पर जरूरी है कि वह इस रसम को छोड़ दें वरना इसकी नाहुसत से ईमान खतरे में पड़ने का अंदेशा है
एक बंदा जो खुद सालगिरह नहीं बनाता लेकिन उसका कोई करीबी रिश्तेदार सालगिरह में शिरकत करने की दावत देता है तो उसमें शिरकत नहीं करनी चाहिए क्योंकि फिजूल चीजों में शिरकत भी फिजूल है
तोहफा देना अच्छी बात है लेकिन सालगिरह के उपलक्ष पर देना सही नहीं है
इंग्लिश कैलेंडर के नए साल आने की खुशी मनाना ईसाईयों की रसम है और मुसलमान यह ना जानकारी की वजह से मनाते हैं जो की नाजायज है
यह एक रिवाज है कि जब बच्चा पहला रोजा रखता है तो इफ्तार के वक्त उसके गले में हार पहनाते हैं खाने पकाकर दोस्त रिश्तेदार को खिलाते हैं इस रसम का शरीयत में कोई सबूत नहीं इसको सवाब समझ कर करना दीन में अपनी तरफ से नई बात जोड़ने के जैसा है यह बीदात है और इसको छोड़ देना चाहिए
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खतने की रसम
खतने में भी कई तरह की रस्में लोगों ने निकाल ली है जो कि बिल्कुल खिलाफ नकल और गैर जरूरी है मसलन लोगों को जमा करना यह बिल्कुल ही गलत है
हदीस से मालूम होता है कि जिस चीज का मशहूर करना जरूरी ना हो उसके लिए लोगों को बुलाना जमा करना सुन्नत के खिलाफ है इसमें बहुत सी रस्में में आ गई हैं जिनके लिए लंबे चौड़े एहतमाम करने पड़ते हैं
मसलन कई जगह इन रस्मो की बदौलत खतना में इतनी देरी हो जाती है कि लड़का बड़ा हो जाता है और सब जमा होने वाले उसका बदन देखते हैं हालांकि सिर्फ खतना करने वाले के अलावा और किसी को उसका बदन देखना सही नहीं है और यह गुनाह इस बुलाने और देर करने की वजह से हुआ है,
जरूरी तो यह है कि जब बच्चे में बर्दाश्त की कूवत देखें चुपके से खतना करवा दें
दरिया में सदका की नियत से पैसे डालना यह मशहूर है की दरिया के पास से गुजरते हुए मुसाफिर पानी में रुपए पैसे बहा देते हैं यह अमल सदका नहीं है बल्कि माल को जाया करना है इसलिए यह सवाब का काम नहीं है बल्कि इसको छोड़ देना चाहिए
नए मकान और दुकान की खुशी मनाना
मिठाई बांटना नए मकान की खुशी में कोई गलत बात नहीं मगर इसको बढ़ा चढ़ाकर करना और लोगों को दिखावा करना यह सही नहीं है अल्लाह के शुकराने में गरीबों को सदका देना और दोस्तों को खिलाना पिलाना ठीक है
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पूजा पाठ के लिए चंदा देना
कई बार ऑफिस दुकान और घर पर गैर मुस्लिम हजरत पूजा के लिए चंदा इकट्ठा करते हैं और ना दे तो दुश्मनी बढ़ने की अंदेशा रहता है, अगर पैसे दिए बगैर छुटकारा नहीं तो जो लोग मांगने आए हैं
उनको मालिक बनाने की नीयत से दे दे (जो लोग मांगने आए हैं उनको दे रहे हैं यह नियत दिल में रखें) फिर वह अपनी तरफ से जहां चाहे खर्च करें और मिठाई वगैरा भी अगर लेना जरूरी है तो उसको ले ले फिर किसी जानवर वगैरह को खिला दें पूजा और चढ़ावे की मिठाई वगैरा ना खाएं
बिस्मिल्लाह के बजाय 786 लिखना
बिस्मिल्लाह बिस्मिल्लाह के बजाय 786 लिखने का रिवाज चला आ रहा है शायद यह रिवाज इसलिए शुरू हुआ कि जिस पर बिस्मिल्लाह लिखा हुआ है अगर किसी ने फाड़ कर फेंक दिया तो बेअदबी हो जाएगी लेकिन बिस्मिल्लाह के बदले 786 लिखने पर बिस्मिल्लाह का सवाब नहीं मिलेगा
यह तो सिर्फ बिस्मिल्लाह का नंबर है जिससे इशारा हो सकता है
नोट : इस आर्टिकल को लिखने में मसाइल शिर्क व बिदात किताब की मदद ली गई है