कुछ लोगों की जहालत की कोई हद नहीं रहती है मसलन लड़का बीमार हो तो उसकी नजर मान ली जाती है कि ऐ वली अल्लाह अगर मेरे लड़के को आराम हो जाएगा तो तेरे नाम की इतनी नजर यानी मन्नत करेंगे आज हम आपको बताएँगे islam Me Mannat Kya Hai
अब अगर लड़के को अल्लाह ताला ने रहमों करम से आराम दे दिया तो नजर व नेयाज लेकर बड़ी खुशी से उस दरगाह शरीफ पर चढ़ाने लगते हैं और अगर अल्लाह ताला ने उस लड़के को दुनिया से उठा लिया यानी मौत दे दी तो सारी बदनामी अल्लाह ताला के सिर पर आती है
और उस वली को कुछ नहीं कहते हैं अगर कोई पूछे की तुम्हारे लड़के को आराम नहीं हुआ आप लोगों ने तो कोशिश बहुत की यानी कुफर भी किया शिर्क भी किया और कुछ बाकी नहीं छोड़ा फिर भी आपके बच्चे को आराम नहीं हुआ तो जवाब में कहेंगे कि भाई अल्लाह को मंजूर नहीं था तो हमारे वलियों से आराम कैसे मिलता
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देखिए कि किस कदर बेवकूफी और जहालत है जानते हैं कि अल्लाह ताला के सिवा कोई भी आराम नहीं दे सकता फिर भी ऐसी ऐसी हरकतें करते हैं
“अर्ज यह है कि अल्लाह के सिवा किसी की भी नजर यानी मन्नत माननी जायज नहीं है चाहे फरिश्ते हो या नबी हो या और कोई हो।”
सिरक की किस्मों में से एक किस्म यह है कि अल्लाह ताला के अलावा किसी और से अपनी जरूरत में मदद तलब करें ,जैसे मरीज के लिए शिफा या मोहताज के लिए मालदारी के लिए उसकी मन्नत माने और उम्मीद रखें कि हमारी नजर से मुरादें पूरी होगी।
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मन्नत की कुछ शर्तें
शरीयत में मन्नत मांगना जायज है मगर उसकी कुछ शर्ते हैं,
एक यह कि मन्नत अल्लाह के नाम की मानी जाए अल्लाह के सिवा किसी और की मन्नत जायज नहीं बल्कि गुनाह है।
दूसरा यह कि मन्नत सिर्फ इबादत के काम की सही है जो काम इबादत नहीं उसकी मन्नत भी नहीं।
तीसरा यह कि इबादत भी ऐसी हो कि उस तरह की इबादत भी फर्ज या वाजिब होती है जैसे नमाज रोजा हज और कुर्बानी वगैरा ऐसी इबादत की उसकी जैसी फर्ज या वाजिब नहीं उसकी मन्नत भी सही नहीं।
सिर्फ किसी बात का दिल में ख्याल आने से मन्नत नहीं होती बल्कि जबान से अदा करने के साथ होती है।
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काम होने से पहले मन्नत अदा करना कैसा है
अगर कोई इंसान मन्नत माने कि फलां काम होने पर रोजा रखूंगा या नफ़ल पढ़ लूंगा तो यह शख्स काम पूरा होने पर मन्नत पूरी करेगा उससे पहले नहीं।
मन्नत मांगना जायज है मगर आप सल्लल्लाहो अलै वसल्लम ने उसको पसंद नहीं फरमाया इसलिए बजाय मन्नत मानने के नकद सदका करना ठीक है नगद सदका करना चाहिए मगर सदका पाक माल से हो यह जरूरी है नापाक और हराम माल में से किया हुआ सदका अल्लाह ताला की बारगाह में कबूल नहीं होता।
हराम माल से सदका कबूल नहीं होता बल्कि उल्टा गुनाह होती है हदीस में है कि अल्लाह ताला पाक है और वह पाक चीजें कबूल करते हैं हराम और नाजायज माल से सदका करने की मिसाल ऐसी है जैसे कोई शख्स गंदगी का टोकरा किसी बादशाह को हदिया करें जाहिर है कि इससे बादशाह खुश नहीं होगा बल्कि उल्टा नाराज होगा
सदका का और मन्नत में क्या फर्क है
मन्नत अपने जिम्मा किसी चीज को लाजिम करने का नाम है मसलन कोई शख्स मन्नत मान ले कि मेरा फलां काम हो जाए तो मैं उतना सदका करूंगा काम होने पर मन्नत मानी हुई चीज पूरी कि जाती है(पूरा करना जरूरी होता हैं)
और अगर कोई शख्स बगैर लाजिम किए हुए अल्लाह के रास्ते में खैरात करें तो उसको सदका कहते हैं वह मन्नत भी सदका ही है मगर वह सदका वाजिब है जबकि आम सदकात मन्नत नहीं होते हैं।
गलत मन्नत का हुकुम
कुछ लोग गुनाह की मन्नत मान लेते हैं जैसे किसी ने मन्नत मानी कि मेरा बेटा अच्छा हो जाए तो नाच गाने का जलसा करूंगा यह बहुत ही बेहुदा मन्नत है और इस का पूरा करना जायज नहीं है।
कुछ लोग बिदत की मन्नत मान लेते हैं जैसे अपने बेटे को इमाम हुसैन का फकीर बनाना, किसी के नाम की चोटी रखना ,या कान में बाली पहनना ,या किसी मजार पर गिलाफ भेजना, या अपने शेख को बकरा खैरात करना ,मुश्किल कुशा का रोजा रखना इत्यादि।
औरतें मन्नत मानती हैं कि अगर मेरी फला मुराद पूरी हो जाए तो मस्जिद में जाकर सलाम करूंगी या कुछ कहती हैं कि मस्जिद का ताख भँरूगी वगैरह, मुराद पूरी होने पर मस्जिद में जाकर अपनी मन्नत पूरी करती है
यह गलत है मस्जिद का सलाम यह है कि कुछ नवाफिल पढ़ लो और दिल से शुक्र अदा कर लो और यह काम घर भी मुमकिन है और ताख भी भरना यह है कि जो तौफीक हो मोहताजो को तक्सीम कर दो और यह काम घर में बैठे कर भी हो सकता है मस्जिद जाने की जरूरत नहीं है।
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बूतों के नाम का प्रसाद खाना
गैर मुस्लिमों के त्योहारों पर प्रसाद तक्सीम की जाती है जिसमें फल और पके पकाए खाने भी होते हैं और यह मुख्तलिफ बूतों की नजर करके तक्सीम की जाती है
तो इसका खाना हराम है बूतों के नाम की नजर की की हुई चीज सरन हराम है किसी मुसलमान को इसका खाना जायज नहीं है।
नोट : इस आर्टिकल को लिखने में मसाइल शिर्क व बिदात किताब की मदद ली गई है
Very nice
Mere ko parsonal massag karna ho to?
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