Surah Juma जैसा की नाम से जाहिर है, इस सूरा में नमाज़-ए-जुमा के अहकाम का बयान हैं, आज हम बताएँगे Surah Juma in Hindi.
Surah Juma के दो रुकू दो अलग ज़मानों में नाज़िल हुए हैं। इसी लिए दोनों के मौज़ू अलग हैं और मुख़ातब भी अलग।
पहला रुकू ग़ालिबन ये फ़तह ख़ैबर के मौक़ा पर या उस के बाद क़रीबी ज़माने में नाज़िल हुआ है
दूसरारुकू हिज्रत के बाद क़रीबी ज़माने ही में नाज़िल हुआ है। क्योंकि हुजूर सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम ने मदीना तैयबा पहुंचते ही पाँचवें रोज़ जुमा क़ायम कर दिया था
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Surah Juma in Hindi
युसब्बिहु लिल्लाहि माफ़िस्समावाति वमा फिल अर्ज ।
मलिकिल कुदूसिल अज़ीज़िल हकीम ।
हुवल्लज़ी बअसा फ़िल उममय्यीन रसूलम मिन्हुम यतलू अलैहिम आयातिही व युज़क्कीहिम व युअल्लिमुहुमुल किताबा वल हिकमता व इन कानू मिन कब्लु लफ़ी जलालिम मुबीनंव ।
व आखिरीन मिन्हुम लम्मा यल्हकू बिहिम वहुवल अज़ीजुल हकीम |
जालिका फज्लुल्लाही यू तीहि मंय्यशाउ वल्लाहु जुल फर्जलिल अज़ीम।
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म-स-लुल्लज़ीन हुम्मितुत्तौरा-त सुम्मा लम यहमिलूहा कमस्वल्लि हिमारि यहमिलु अस्फारा।
बिअसा मसलुल कौमिल्लज़ी-न कज्जबु बि-आयातिल्लाहि वल्लाह ला-यह दिल कौमज्जालिमीन।
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कुल या अय्युहल्लज़ीन हादू इन ज़अमतुम अन्नकुम औलियाउ लिल्लाहि मिन दूनिन्नासि फ़तमन्नवुल मौता इन कुन्तुम सादिकीन ।
वला यतमन्नौहु अबदम बिमा कद्वमत ऐदीहिम वल्लाहु अलीमुम बिज्जालिमीन ।
कुल इन्नल मौतल लज़ी तफिररूना मिन्हु फइन्नहु मुलाकीकुम सुम्मा तुरदूना इला आलिमिल गैबि वश्शहादह, फयुनब्बिउकुम बिमा कुन्तुम तामलून।
या अय्युल्लज़ीन आमनू इजा नूदिया लिस्सलाति मिय्यौमिल जुमु-अति फ़सऔ इला ज़िकरिल्लाहि वजरुल बैइ, जालिकुम खैरुल्लकुम इन कुन्तुम तामलून।
फ़इज़ा कुज़ियतिस्सलातु फन्तशिरू फिल अर्जि, वब तगू मिन फज्लिल्लाहि, वज्कुरुल्लाहा कसीरल लअल्लकुम तुफलिहून ।
वइज़ा रअव तिजारतन अव लहवा निन फज्जू इलैहा वतरकूका काइमा, कुल मा इन्दल्लाहि खैरुम मिनल्लहवि व मिनत्तिजारह, वल्लाहु खैरुर्राजिकीन।
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Surah Juma in Hindi with Tarjuma
तर्जुमा: आसमान व जमीन की तमाम चीजें अल्लाह पाक की पाकी बयान देती है जो बादशाह है पाक और ग़ालिब है और हिकमत वाला है|
तर्जुमा: बस वही एक खुदा है जिसने जिसने अनपढ़ लोगो में से एक नबी को भेजा जो अल्लाह ताला को आयतें पढ़ कर सुनाते है उनको अक़ीदा वा अमल के गन्दगी से पाक व साफ़ बनाते है और उनलोगो को किताब और हिकमत की तालीम भी देते है हाला की उससे पहले ये लोग गुमराही के अँधेरे में थे|
तर्जुमा: और हमने उन दूसरे लोगो के तरफ भी भेजा है जो अभी मुसलमानो के साथ लेकिन आइंदा ईमान लायंगे बेसक अल्लाह तआला ग़ालिब और हिकमत वाला है|
तर्जुमा: ये अल्लाह बआरक तआला का फज्लो करम है जिसे चाहते है अता फरमाते है अल्लाह तआला बहुत करम वाले है
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तर्जुमा: जिन जिन लोगो को तौरात दिया गया है और उन्होंने उसको नहीं उठाया यानि के उसपर अमल नहीं क्या है उन लोगो की मिसाल उन गधो के जैसे ही है जो बहुत सारे किताबें लादे हुवे हों कितनी बुरी मिसाल उन लोगो के लिए जिन लोगो ने अल्लाह तआला के आयतों को झूठ लाया है और अल्लाह तआला जुल्म करने वालो को कभी भी हिदायत नहीं देते है.
तर्जुमा: आप कह दीजिये : ए यहूदियों ! अगर तुम्हारा गुमान है कि तमाम लोगों को छोड़ कर तुम ही अल्लाह के दोस्त हो, तो अगर तुम सच्चे हो तो मौत की तमन्ना करो
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तर्जुमा: वो अपनी हरकतों की वजह से जो पहले कर चुके हैं कभी मौत की तमन्ना नहीं करेंगे और अल्लाह इन जालिमों से खूब वाकिफ हैं|
तर्जुमा: आप कह दीजिये जिस मौत से तुम भागते हो वो ज़रूर ही तुम पर आकर रहेगी, फिर तुम उस खुदा की तरफ लौटा दिए जाओगे, जो पोशीदा को भी जानता है और ज़ाहिर को भी जानता है , फिर वो तुम को तुम्हारे किये हुए काम भी बता देगा
तर्जुमा: ए मुसलमानों ! जब जुमा के दिन नमाज़ के लिए अज़ान दी जाये तो अल्लाह के ज़िक्र की तरफ़ दौड़ पड़ो और ख़रीद फ़रोख्त छोड़ दिया करो, अगर तुम समझ रखते हो तो तुम्हारे हक़ में ज्यादा बेहतर है
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तर्जुमा: जब नमाज़ मुकम्मल ही जाए तो अल्लाह तआला के जमीन पर फ़ैल जाओ और अल्लाह की रोजी को तलाश करो और उसको अपनी कसरत से याद करते रहो ताकि इसमें कामयाबी पाओ
तर्जुमा: और जब ये तिजारत या खेल तमाशा देखते हैं तो उस की तरफ दौड़ पड़ते हैं और आप को खड़ा छोड़ जाते हैं, आप फरमा दीजिये कि जो कुछ अल्लाह के पास है, वो खेल तमाशा और खरीद फरोख्त से बेहतर है और अल्लाह सब से बेहतर रोज़ी देने वाले हैं|
Surah Juma in English
Bismillaahir Rahmaanir Raheem
Yusabbihu lilaahi maa fis samaawaati wa maa fil ardil Malikil Quddoosil ‘Azeezil Hakeem
Huwal lazee ba’asa fil ummiyyeena Rasoolam min hum yatloo ‘alaihim aayaatihee wa yuzakkeehim wa yu’allimuhumul Kitaaba wal Hikmata wa in kaanoo min qablu lafee dalaalim mubeen
Wa aakhareena minhum lammaa yalhaqoo bihim wa huwal ‘azeezul hakeem
Zaalika fadlul laahi yu’teehi many-yashaaa; wallaahu zul fadlil ‘azeem
Masalul lazeena hum milut tawraata summa lam yahmiloonhaa kamasalil himaari yah milu asfaaraa; bi’sa masalul qawmil lazeena kaazzaboo bi aayaatil laah; wallaahu laa yahdil qawmazzaalimeen
Qul yaaa ayyuhal lazeena haadoo in za’amtum annakum awliyaaa’u lilaahi min doonin naasi fatamannawul mawta in kuntum saadiqeen
Wa laa yatamannaw nahooo abadam bimaa qaddamat aydeehim; wallaahu ‘aleemum biz zaalimeen
Qul innal mawtal lazee tafirroona minhu fa innahoo mulaaqeekum summa turaddoona ilaa ‘Aalimil Ghaibi wash shahaadati fa yunabbi’ukum bimaa kuntum ta’maloon
Yaaa ayyuhal lazeena aamanoo izaa noodiya lis-Salaati miny yawmil Jumu’ati fas’aw ilaa zikril laahi wa zarul bai’; zaalikum khayrul lakum in kuntum ta’lamoon
Fa-izaa qudiyatis Salaatu fantashiroo fil ardi wabtaghoo min fadlil laahi wazkurul laaha kaseeral la’allakum tuflihoon
Wa izaa ra’aw tijaaratan aw lahwanin faddooo ilaihaa wa tarakooka qaaa’imaa; qul maa ‘indal laahi khairum minal lahwi wa minat tijaarah; wallaahu khayrur raaziqeen
Surah Juma in Arabic
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Surah Juma With Urdu Translation
شروع اللہ کے نام سے جو بڑا مہربان نہایت رحم والا ہے
﴿۱﴾ جو چیز آسمانوں میں ہے اور جو چیز زمین میں ہے سب خدا کی تسبیح کرتی ہے جو بادشاہ حقیقی پاک ذات زبردست حکمت والا ہے
﴿۲﴾ وہی تو ہے جس نے ان پڑھوں میں ان ہی میں سے (محمدﷺ) کو پیغمبر (بنا کر) بھیجا جو ان کے سامنے اس کی آیتیں پڑھتے اور ان کو پاک کرتے اور (خدا کی) کتاب اور دانائی سکھاتے ہیں۔ اور اس ے پہلے تو یہ لوگ صریح گمراہی میں تھے
﴿۳﴾ اور ان میں سے اور لوگوں کی طرف بھی (ان کو بھیجا ہے) جو ابھی ان (مسلمانوں سے) نہیں ملے۔ اور وہ غالب حکمت والا ہے
﴿۴﴾ یہ خدا کا فضل ہے جسے چاہتا ہے عطا کرتا ہے۔ اور خدا بڑے فضل کا مالک ہے
﴿۵﴾ جن لوگوں (کے سر) پر تورات لدوائی گئی پھر انہوں نے اس (کے بار تعمیل) کو نہ اٹھایا ان کی مثال گدھے کی سی ہے جن پر بڑی بڑی کتابیں لدی ہوں۔ جو لوگ خدا کی آیتوں کی تکذیب کرتے ہیں ان کی مثال بری ہے۔ اور خدا ظالم لوگوں کو ہدایت نہیں دیتا
﴿۶﴾ کہہ دو کہ اے یہود اگر تم کو دعویٰ ہو کہ تم ہی خدا کے دوست ہو اور لوگ نہیں تو اگر تم سچے ہو تو (ذرا) موت کی آرزو تو کرو
﴿۷﴾ اور یہ ان (اعمال) کے سبب جو کرچکے ہیں ہرگز اس کی آرزو نہیں کریں گے۔ اور خدا ظالموں سے خوب واقف ہے
﴿۸﴾ کہہ دو کہ موت جس سے تم گریز کرتے ہو وہ تو تمہارے سامنے آ کر رہے گی۔ پھر تم پوشیدہ اور ظاہر کے جاننے والے (خدا) کی طرف لوٹائے جاؤ گے پھر جو کچھ تم کرتے رہے ہو وہ سب تمہیں بتائے گا
﴿۹﴾ مومنو! جب جمعے کے دن نماز کے لئے اذان دی جائے تو خدا کی یاد (یعنی نماز) کے لئے جلدی کرو اور (خریدو) فروخت ترک کردو۔ اگر سمجھو تو یہ تمہارے حق میں بہتر ہے
﴿۱۰﴾ پھر جب نماز ہوچکے تو اپنی اپنی راہ لو اور خدا کا فضل تلاش کرو اور خدا کو بہت بہت یاد کرتے رہو تاکہ نجات پاؤ
﴿۱۱﴾ اور جب یہ لوگ سودا بکتا یا تماشا ہوتا دیکھتے ہیں تو ادھر بھاگ جاتے ہیں اور تمہیں (کھڑے کا) کھڑا چھوڑ جاتے ہیں۔ کہہ دو کہ جو چیز خدا کے ہاں ہے وہ تماشے اور سودے سے کہیں بہتر ہے اور خدا سب سے بہتر رزق دینے والا ہے
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Surah Juma Ki Fazilat
जैसा कि ऊपर हम बयान कर चुके हैं, इस सूरा के दोरुकू दो अलग ज़मानों में नाज़िल हुए हैं। इसी लिए दोनों के मौज़ू अलग हैं और मुख़ातब भी अलग है
अगरचे उनके दरमयान एक नौह की मुनासबत है जिसकी बिना पर इन्हे एक सूरा में जमा किया गया है , लेकिन मुनासबत समझने से पहले हमें दोनों के मौज़ूआत को अलग अलग समझ लेना चाहिए।
पहला रुकू उस वक़्त नाज़िल हुआ जब यहूदीयों की वो तमाम कोशिशें नाकाम हो चुकी थीं जो इस्लाम की दावत का रास्ता रोकने के लिए पिछले छः साल के दौरान में उन्होंने की थीं।
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पहले मदीना में उनके तीन तीन ताक़तवर क़बीले रसूल अल्लाह सल्ललहु अल्लेवास्सलम को नीचा दिखाने के लिए एड़ी चोटी तक का ज़ोर लगाते रहे और नतीजा ये देखा कि एक क़बीला पूरी तरह तबाह हो गया और दो क़बीलों को जिला-वतन होना पड़ा।
फिर वो साज़िशें कर के अरब के बहुत से कबीलो को मदीने पर चढ़ा लाए , मगर ग़ज़वा एहज़ाब में इन सबने मुँह की खाई। इस के बाद उनका सबसे बड़ा गढ ख़ैबर रह गया था जहां मदीना से निकले हुए यहूदीयों की भी बड़ी तादाद जमा हो गई थी।
इन आयात के नुज़ूल के वक़्त वो भी बग़ैर किसी ग़ैरमामूली ज़हमत के फ़तह हो गया, और यहूदीयों ने ख़ुद दरख़ास्त कर के वहां मुस्लमानों के काश्तकारों की हैसियत से रहना क़बूल कर लिया।
इस आख़िरी शिकस्त के बाद अरब में यहूदी ताक़त का बिलकुल ख़ातमा हो गया। वादी अलक़रा, फ़दक, तीमा, तबूक, सब एक एक कर के हथियार डालते चले गए।
यहां तक कि अरब के तमाम यहूदी इसी इस्लाम की रियाया बन कर रह गए जिसके वजूद को बर्दाश्त करना तो दरकिनार, जिसका नाम सुनना तक उन्हें गवारा ना था।
ये मौक़ा था जब अल्लाह ताला ने इस सूरा में एक मर्तबा फिर उनको ख़िताब फ़रमाया, और ग़ालिबन ये आख़िरी ख़िताब था जो क़ुरआन-ए-मजीद मैं उनसे किया गया।
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इस में उन्हें मुख़ातब कर के तीन बातें फ़रमाई गई हैं
1)۔ तुमने उस रसूल को इसलिए मानने से इनकार किया कि ये इस क़ौम में मबऊस हुआ था जिसे तुम हक़ारत के साथ ‘ उम्मी ‘ कहते हो।
तुम्हारा ज़ाम-ए-बातिल ये था कि रसूल लाज़िमन तुम्हारी अपनी क़ौम ही का होना चाहिए। तुम ये फ़ैसला किए बैठे थे कि तुम्हारी क़ौम से बाहर का जो शख़्स रिसालत का दावा करे वो ज़रूर झूटा है, क्योंकि ये मन्सब तुम्हारी नसल के लिए मुख़तस हो चुका है और ‘ उम्मीयों’ मैं कभी कोई रसूल नहीं आ सकता।
लेकिन अल्लाह ने इन्ही उम्मीयों में से एक रसूल उठाया है जो तुम्हारी आँखों के सामने उस की किताब सुना रहा है, नफ़्स का तज़किया कर रहा है, और उन लोगों को हिदायत दे रहा है जिनकी गुमराही का हाल तुम ख़ुद जानते हो। ये अल्लाह का फ़ज़ल है जिसे चाहे दे।
इस के फ़ज़ल पर तुम्हारा इजारा नहीं है कि जिसे तुम दिलवाना चाहो उसी को वो दे और जिसे तुम महरूम रखना चाहो उसे वो महरूम रखे।
2)۔ तुमको तौरात का हामिल बनाया गया था, मगर तुमने उस की ज़िम्मेदारी ना समझी, ना अदा की। तुम्हारा हाल उस गधे का सा है जिसकी पीठ पर किताबें लदी हुई हूँ और उसे कुछ नहीं मालूम कि वो किस चीज़ का बार उठाए हुए है।
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बल्कि तुम्हारी हालत गधे से भी बदतर है। वो तो समझ बोझ नहीं रखता, मगर तुम समझ बूझ रखते हो और फिर किताब-उल-ल्लाह के हामिल होने की ज़िम्मेदारी से फ़रार ही नहीं करते , दानिस्ता अल्लाह की आयात को झटलाने से भी बाज़ नहीं रहते। और इस पर तुम्हारे नाम लिख दी गई है।
गोया तुम्हारी राय ये है कि ख़ाह तुम अल्लाह के पैग़ाम का हक़ अदा करो या ना करो, बहर-ए-हाल अल्लाह उस का पाबंद है कि वो अपने पैग़ाम का हामिल तुम्हारे सिवा किसी को ना बनाए 3)۔ तुम अगर वाक़ई अल्लाह के चहेते होते और तुम्हें अगर यक़ीन होता कि
इस के हाँ तुम्हारे लिए बड़ी इज़्ज़त और क़दर-ओ-मंजिलत का मुक़ाम महफ़ूज़ है तो तुम्हें मौत का ऐसा ख़ौफ़ ना होता कि ज़िल्लत की ज़िंदगी क़बूल है मगर मौत किसी तरह क़बूल नहीं। यही मौत का ख़ौफ़ ही तो है जिसकी बदौलत पिछले चंद सालों में तुम शिकस्त पर शिकस्त खाते चले गए हो।
तुम्हारा ज़मीर ख़ूब जानता है कि इन करतूतों के साथ मर्वगे तो अल्लाह के हाँ इस से ज़्यादा ज़लील-ओ-ख़ार होगे जितने दुनिया में हो रहे हो। ये है पहले रुकवा का मज़मून। इस के बाद दूसरा रुकवा, जो कई साल पहले नाज़िल हुआ था
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ये मौज़ू , Surah Juma में ला कर इसलिए शामिल किया गया है कि अल्लाह ताला ने यहूदीयों के सब के मुक़ाबला में मुस्लमानों को जुमा के साथ वो मुआमला ना करें जो यहूदीयों ने सबुत के साथ किया था।
दूसरा रुकू उस वक़्त नाज़िल हुआ था जब मदीने में एक रोज़ ऐन नमाज़-ए-जुमा के वक़्त एक तिजारती काजला आया और इस के ढोल ताशों की आवाज़ सुनकर 12 आदमीयों के सिवा तमाम हाज़िरीन मस्जिद नबवी से क़ाफ़िले की तरफ़ दौड़ गए।
हालाँकि उस वक़्त रसूल अल्लाह सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-सल्लम ख़ुतबा इरशाद फ़र्मा रहे थे। इस पर ये हुक्म दिया गया कि जुमा की अज़ान होने के बाद हर किस्म की ख़रीद-ओ-फ़रोख़त और हर दूसरी मस्रूफ़ियत हराम है।
अहल ईमान का काम ये है कि इस वक़्त सब काम झोड़ छाड़ कर अल्लाह के ज़िक्र की तरफ़ दौड़ें। अलबत्ता जब नमाज़ ख़त्म हो जाये तो उन्हें हक़ है कि अपने कारोबार चलाने के लिए ज़मीन में फैल जाएं।
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अहकाम जुमा के बारे में ये रुकू एक मुस्तक़िल सूरत भी बनाया जाया सकता था, और किसी दूसरी सूरत में भी शामिल किया जा सकता था। लेकिन ऐसा करने के बजाय खासतौर पर उसे यहां इन आयात के साथ ला कर मिला गया
व अखिरू दावाना अलाह्म्दुलिल्लाही रब्बिल आलमीन